अनुशासन व संस्कारों की पाठशाला हैं संघ शिक्षा वर्ग

अनुशासन व संस्कारों की पाठशाला हैं संघ शिक्षा वर्ग

अनुशासन व संस्कारों की पाठशाला हैं संघ शिक्षा वर्गअनुशासन व संस्कारों की पाठशाला हैं संघ शिक्षा वर्ग

गर्मी की छुट्टियां आते ही आमतौर पर लोग कहीं ठंडे स्थान पर सैर सपाटे के लिए जाने की योजना बनाने लगते हैं। लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो राष्ट्रभक्ति, समाज संगठन और समर्पण की दीक्षा लेने संघ शिक्षा वर्गों में पहुंच जाता है और स्वरुचि से भौतिक संसाधनों से दूर, कड़ा परिश्रम करते हुए अपना पसीना बहाता है। चाणक्य ने कहा था, किसी भी देश में शांति काल में जितना पसीना बहेगा, उस देश में, युद्ध काल में उससे दूना रक्त बहने से बचेगा। आरएसएस के इन संघ शिक्षा वर्गों में आए शिक्षार्थी, चाणक्य की इसी कल्पना पर देश के शांति काल में एक सैनिक की भांति शारीरिक व बौद्धिक ट्रेनिंग लेते हुए अपना पसीना बहाते हैं और सतत कर्मशील रहने का संकल्प लेते हैं। इसी कारण संघ शिक्षा वर्गों को अनुशासन व संस्कारों की पाठशाला भी कहा जाता है।

संघ शिक्षा वर्गों का इतिहास

संघ शिक्षा वर्ग की शुरुआत 1927 में नागपुर में हुई थी। उस दौरान ये तीन सप्ताह तक चले थे और इन्हें ग्रीष्मकालीन वर्ग कहा गया। फिर कुछ वर्षों बाद इनका नाम ‘अधिकारी शिक्षा वर्ग’ हो गया। बाद में वर्ष 1950 में इन वर्गों को ‘संघ शिक्षा वर्ग’ के नाम से जाना जाने लगा।

कई वर्षों तक प्रारंभिक व्यवस्था में भोजन आसपास के घरों से आता था और स्थानीय पाठशालाओं में शिक्षार्थियों का निवास रहता था। ये सभी निशुल्क उपलब्ध होते थे। इसके अलावा वर्गों के दौरान चिकित्सा, बिजली, जल इत्यादि के खर्चों के लिए वर्ग में शामिल शिक्षार्थियों से शुल्क भी लिया जाता था।

शुरुआती वर्गों में शारीरिक कार्यक्रम समाप्त होने पर डॉ. हेडगेवार वर्ग में आये सभी स्वयंसेवकों को चिटणीसपुरा की एक बावड़ी पर तैरने के लिए ले जाया करते थे। आगे चलकर संख्या बढ़ने पर बावड़ी पर जाना बंद हो गया।

1939 के आसपास ये वर्ग हेडगेवार स्मृति मंदिर रेशमबाग, नागपुर में आयोजित होने लगे।

नागपुर के बाद विस्तार

नागपुर में वर्गों की सफलता के बाद ये 1934 में पुणे में आयोजित होने लगे। फिर अगले वर्ष से पुणे में प्रथम और द्वितीय वर्ष के वर्ग शुरू हो गये। ग्रीष्मकालीन छुट्टियों की सुविधा के अनुसार पुणे का वर्ग 22 अप्रैल से 2 जून तक और नागपुर का वर्ग 1 मई से 10 जून तक हुआ करता था। डॉ. हेडगेवार 15 मई तक पुणे में और उसके बाद नागपुर में प्रवास करते थे।

पुणे के बाद ये वर्ग नासिक में शुरू हुए। वर्ष 1942-43 में इन वर्ग में हिस्सा लेने वाले स्वयंसेवकों की संख्या पौने तीन हजार तक पहुंच गयी थी। इस बीच 1938 में महाराष्ट्र से बाहर लाहौर में भी वर्गों की शुरुआत हुई। इसके बाद जैसे-जैसे कार्य बढ़ता गया, अन्य प्रान्तों में प्रथम और द्वितीय वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग आयोजित होने लगे। अब केवल तृतीय वर्ष की शिक्षा के लिए स्वयंसेवकों का नागपुर आना अनिवार्य किया गया।

देशव्यापी विस्तार

वर्ष 1940 में नागपुर में हुए संघ शिक्षा वर्ग में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक के सब प्रान्तों से शिक्षार्थी स्वयंसेवक उपस्थित थे। दुर्भाग्यवश इसी वर्ष के शिक्षा वर्गों की समाप्ति के कुछ दिनों के बाद ही यानि 21 जून 1940 को संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का देहावसान हो गया। 

इस प्रवाह में रुकावटें

1927 में शुरू हुए संघ शिक्षा वर्गों में अब तक 5 बार रुकावटें आ चुकी हैं। पहली तीन बार जब संघ पर प्रतिबंध लगा

(1948-1949 में, 1976-1977 में आपातकाल के दौरान और 1993 में अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बनाए गए इस्लामिक ढांचे को गिरा दिए जाने के बाद)। एक और रुकावट 1991 में आयी, जब राजीव गांधी की हत्या हो गई। इसके अलावा कोविड महामारी के दौरान 2020-2021 में भी इन शिक्षा वर्गों को स्थगित करना पड़ा था।

वर्ग मई-जून में ही क्यों?

विद्यालयों और महाविद्यालयों में इन महीनों में ग्रीष्मावकाश के चलते संघ शिक्षा वर्गों के लिए यह समय चुना गया था। वही व्यवस्था आज तक चल रही है।

संघ शिक्षा वर्गों का वर्तमान स्वरूप

संघ ने शिक्षण कार्य में काफी बदलाव किया है। नए पाठ्यक्रम तैयार किए हैं। स्वयंसेवकों को सामान्य शिक्षा के साथ उनकी रुचि अनुसार क्षेत्र में विशेष प्रशिक्षण देने का प्रावधान किया है। संघ शिक्षा वर्ग की अवधि भी कम की गई है। पहले संघ का प्रथम वर्ग 20 दिन का होता था, अब 15 दिन का होता है। तृतीय वर्ष की अवधि 25 दिन कर दी गई है, पहले यह 40 दिन थी। तृतीय वर्ष के प्रशिक्षण के लिए व्यक्ति को प्रथम व द्वितीय वर्ष प्रशिक्षित होना चाहिए। प्रथम शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण प्रांत स्तरीय, द्वितीय का क्षेत्र स्तरीय और तृतीय शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण राष्ट्रीय स्तर का होता है और नागपुर में आयोजित होता है।

इसमें देशभर से जिला स्तर पर चुने हुए कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए आते हैं। प्रशिक्षण के बाद स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ता के तौर पर तैयार हो जाते हैं। बाद में उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने का दायित्व दिया जाता है।

नागपुर में आयोजित होने वाले वर्ग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक का उद्बोधन होता है जो कि मूल रूप से तात्कालिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों पर संघ के दृष्टिकोण का सारगर्भित विवरण होता है। वे सामाजिक मुद्दे, जिनसे भारत और उसके नागरिकों का सीधा सरोकार होता है, पर सरसंघचालक संघ के विचार रखते हैं। इसमें संघ के स्वयंसेवकों को भी व्यापक दृष्टि प्राप्त होती है।

क्या विशेष होता है इन वर्गों में :

1. सामाजिक समरसता का भाव – संघ शिक्षा वर्गों में हर जाति-वर्ग के शिक्षार्थी बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं।

2. सामूहिक भोजन – वर्गों में स्वयंसेवक एक साथ भोजन करते हैं, इससे भी समरूपता का भाव आता है।

3. सामूहिक जीवन का भाव जागृत – एक साथ मिलकर रहने और वर्गों की सभी गतिविधियों में एक साथ सहभागिता करने से सामूहिक जीवन का भाव जागृत होता है।

4. शिक्षार्थियों को अखिल भारतीय दृष्टि का व्यापक बोध होता है।

5. अनुशासन के प्रति जागरूकता पैदा होती है।

6. विविध जानकारियों का ज्ञान – संघ की भौगोलिक रचनाओं और संरचनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव होता है।

7. समाज और राष्ट्र के समक्ष पैदा हुई चुनौतियों के समाधान का बोध होता है।

8. स्वयंसेवकों में कार्यकुशलता का निर्माण होता है।

9. संगठन का भाव – सबके प्रति अपनेपन की भावना पैदा होती है।

10. स्वावलंबन – वर्गों के दौरान सभी स्वयंसेवक अपने कार्य स्वयं करते हैं, इससे उनमें अपने कार्यों को स्वयं करने का भाव पैदा होता है।

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