संघ के कार्य का आधार उसकी शाखा है- बाबूलाल
संघ के कार्य का आधार उसकी शाखा है- बाबूलाल
रतनगढ़, 7 नवंबर। विजयादशमी 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। किसी भी संगठन की महत्ता उसकी आयु से नहीं बल्कि इस बात से है कि इतने समय कैसे जिए और किन के लिए जिये। संघ के कार्य का आधार उसकी शाखा है। एक घंटे की शाखा में समाज में हम क्या काम करना चाहते हैं यह सीखते हैं। ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, रतनगढ़ जिला इकाई द्वारा आयोजित “शारीरिक प्रधान कार्यक्रम” में उपस्थित स्वयंसेवकों व आमंत्रित जनसमूह को सम्बोधित करते हुए जयपुर प्रान्त प्रचारक बाबूलाल ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा, भारत भूमि की ख्याति पूरी दुनिया में उसके आचरण को लेकर है। भारत भूमि पर अनेक प्रकार के पंथ, पूजा पद्धतियां, भोजन, रीतियां और त्योहार आदि हैं। जितने अधिक मन हैं, उतने अधिक मत भी यहां हैं। इतनी भिन्नता होते हुए भी भारत भूमि में आचरण की एकात्मता रही है। यहॉं रहने वाले हम सभी हिंदू हैं। ऐसा हिंदू पूजा पद्धति, मंदिर, त्योहार और गाय को माता मानने के कारण नहीं है। हिंदुत्व इन सब बातों में नहीं है। ये सभी तो इस के केवल अंग-उपांग हैं। जिस प्रकार आकाश से गिरा हुआ जल अनेकों मार्ग से होता हुआ अंत में समुद्र में मिल जाता है। उसी प्रकार पूजा पद्धति, भोजन, भाषा, वेशभूषा, त्योहार आदि की विविधता होते हुए भी हम सभी को उस एक परमात्मा के पास ही जाना है, इस एकात्मता के भाव में हिंदुत्व है। हिंदुत्व को किसी रंग, आहार, वेश, भाषा, पूजा पद्धति में हम नहीं बांध सकते। इसको केवल एक ही बात से बांधा जा सकता है और वह है आचरण की शुद्धता। उन्होंने कहा, हिंदुत्व के आचरण को सुदृढ़ करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने शताब्दी वर्ष में समाज के समक्ष पांच बातों को रखा है। हम सभी इन पांच बातों को अपने आचरण में लेकर आएं, जिससे हिंदुत्व की प्राण प्रतिष्ठा में हमारा भी योगदान होने वाला है।
उन्होंने अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान करते हुए कहा कि अभी देश देवी अहिल्याबाई होल्कर का 300 वां जन्म जयंती वर्ष मना रहा है। जिस समय में अन्य मत पंथों में महिलाओं को हीनता की दृष्टि से देखा जाता था। उस समय आज से 300 वर्ष पूर्व अनुसूचित जाति-जनजाति में जन्मी महिला अहिल्याबाई होल्कर अल्पायु में जब विधवा हो गईं और महारानी बनकर राज-पाठ संभाला तो उन्होंने भारत के 119 तीर्थ स्थानों को चिन्हित कर उनका जीर्णोद्धार करवाया। जिसमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, पुरी, रामेश्वरम, काशी विश्वनाथ, हरिद्वार आदि सम्मिलित थे। ऐसी देवी को पुण्य श्लोक कहा गया, जिन्होंने हिंदुत्व की प्राण प्रतिष्ठा को गौरवान्वित किया। इस अवसर पर उन्होंने रतनगढ़ की तीन विभूतियों- गीता प्रेस के संस्थापकों का स्मरण करते हुए कहा, इसी भूमि से निकले तीन महापुरुषों ने 1923 में गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना की, जिसका आज शताब्दी वर्ष बीत चुका है। आज अगर हिंदुओं के घरों से गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकों को निकाल दिया जाए तो उनके घरों में हिंदुत्व के नाम पर कुछ नहीं बचता है। पिछले 100 वर्षों में गीता प्रेस गोरखपुर ने अपनी ख्याति बनाई है उन्होंने हिंदुत्व की सेवा के क्षेत्र में बहुत बड़ा कार्य किया है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में थलसेना के सेवानिवृत्त कमांडेंट विजय सिंह बैनाथा उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जिस प्रकार भारतीय सेना अपने अनुशासन और देश प्रेम के लिए पूरे विश्व में जानी जाती है, उसी प्रकार संघ के स्वयंसेवक भी अपने अनुशासन और देश प्रेम के लिए विश्व भर में विख्यात हैं और हर कठिन परीक्षा के लिए हर समय तैयार रहते हैं।
जिला संघचालक डॉ. बनवारीलाल शर्मा ने कार्यक्रम की सफलता के लिए सभी स्वयंसेवकों और समाज के गणमान्य व्यक्तियों का आभार प्रकट किया और बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण में युवाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना है।
पोद्दार गेस्ट हाउस मैदान, रतनगढ़ में आयोजित इस कार्यक्रम में स्वयंसेवकों ने दंड, दंड युद्ध, समता, सामूहिक समता, नियुद्ध, कल्लरी, पदविन्यास, व्यायाम- योग, दण्ड योग, योगासन और घोष का मनोहारी प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में जिले के सभी खण्डों व नगरों के स्वयंसेवकों ने इस सामूहिक प्रदर्शन में भाग लिया। कार्यक्रम में स्वयंसेवकों के साथ-साथ अनेक गणमान्य नागरिकों और मातृशक्ति के साथ सैकड़ों की संख्या में जनसमूह की उपस्थिति रही।