झंडा गीत के रचयिता श्यामलाल गुप्त, जो प्रतिज्ञावश स्वाधीनता मिलने तक नंगे पांव रहे

झंडा गीत के रचयिता श्यामलाल गुप्त, जो प्रतिज्ञावश स्वाधीनता मिलने तक नंगे पांव रहे

रमेश शर्मा

10 अगस्त 1977 : श्यामलाल गुप्त की पुण्यतिथि

झंडा गीत के रचयिता श्यामलाल गुप्त, जो प्रतिज्ञावश स्वाधीनता मिलने तक नंगे पांव रहेझंडा गीत के रचयिता श्यामलाल गुप्त, जो प्रतिज्ञावश स्वाधीनता मिलने तक नंगे पांव रहे

भारत को स्वतंत्रता सरलता से नहीं मिली। इसके लिये असंख्य बलिदान हुए हैं। ये बलिदानी दो प्रकार के थे। एक वे जिन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया और दूसरे वे, जिन्होंने देश व स्वाधीनता का जन जागरण करने के लिये अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। श्यामलाल गुप्त वे महामना थे, जो देश के लिए जिए। उन्होंने स्वाधीनता आँदोलन में तो सक्रिय भागीदारी की ही, अपने गीतों और लेखों के माध्यम से भी जन जागरण किया। 

सुप्रसिद्ध झंडा गीत “विश्व विजयी तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा” इन्हीं की रचना है। लोग उन्हें भले न जानें पर उनकी रचना को सब जानते हैं। वे केवल रचनाकार ही नहीं बल्कि एक समर्पित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। वे कुल आठ बार जेल गये, दस वर्ष फरारी में रहे और लगातार अपने लेखन से स्वाधीनता की अलख जगाते रहे। 

ऐसे समर्पित श्यामलाल गुप्त का जन्म कानपुर में हुआ था। इनके पिता विश्वेश्वर प्रसाद एक मध्यमवर्गीय व्यापारी थे। माता कौशल्या देवी धार्मिक विचारों की थीं। घर में रामायण का पाठ नियमित होता था। वे जब काम में व्यस्त होतीं तो बालक श्याम को रामायण सुनाने के काम में लगा देतीं थीं। इस कारण श्याम लाल का लगाव रामायण से जीवन भर रहा। वे मानस मर्मज्ञ भी थे। उन्हें कविता में बचपन से रुचि थी। पहली रचना पाँचवीं कक्षा में लिखी, जो सराही गयी। उनकी रचनाएं तीन प्रकार की होतीं थीं, एक तो राष्ट्र के लिये समर्पित, दूसरी समाज के लिये और तीसरी रामजी के लिये। वे पढ़ने में भी कुशाग्र बुद्धि के थे। आठवीं कक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। पिता इससे से प्रसन्न रहते थे, पर बालक के कविता प्रेम से असंतुष्ट। एक बार उनके पिता ने उनकी सारी रचनायें कुएं में फिकवा दी थीं। उनका तर्क था कि रचनाकार सदैव दरिद्र रहते हैं। वे अच्छा व्यापार नहीं कर सकते। घर की इस खींचतान से तंग आकर श्यामलाल अयोध्या चले गये और दीक्षा लेकर प्रभु सेवा में लग गये। तब परिवार के लोगों ने उन्हें मनाया। लौटने के लिए उनकी शर्त थी कि टोका टाकी न की जाये। लौटकर आये तो उनका परिचय सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ। वे अपनी रचना लेकर उनके पास गये थे। यहाँ से उनकी रचनाओं में राष्ट्र सेवा का आयाम जुड़ा।

श्यामलाल गुप्त ने सबसे पहले 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और गिरफ्तार हुए। उन्हें आगरा जेल में रखा गया। 1930 के नमक सत्याग्रह में भी गिरफ्तार हुए। वे 1921 से 1947 तक कुल आठ बार जेल गये। जबकि 1932 से 1942 तक वे अज्ञातवास में रहे। उन्होंने तीन जिलों कानपुर, फतेहपुर और आगरा में 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन किया। फतेहपुर में बंदी बनाये गये।

उन्होंने 1921 में जूता चप्पल न पहनने का व्रत लिया और घोषणा की थी कि जब तक देश स्वतंत्र नहीं होगा वे नंगे पाँव ही रहेंगे। और सचमुच उन्होंने 1947 में स्वतंत्रता के बाद ही चप्पलें पहनीं। उनका इतिहास प्रसिद्ध गीत झंडा ऊंचा रहे हमारा 13 अप्रैल 1924 को कानपुर अधिवेशन में नेहरू के सामने गाया गया। 

स्वतंत्रता के बाद वे समाज सेवा और शिक्षा के प्रसार में लग गये। उन्होंने स्वयं भी विद्यालय स्थापित किया और अन्यों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित किया। राष्ट्र और संस्कृति को अपना जीवन समर्पित करने वाले गुप्त का निधन 10 अगस्त 1977 को कानपुर में हुआ।

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