सिवास और उडसर: अनोखी परंपराओं और आस्थाओं के गांव
सिवास और उडसर: अनोखी परंपराओं और आस्थाओं के गांव
राजस्थान के कई गांव अपनी अनूठी धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं के लिए जाने जाते हैं, जिनमें दो नाम सिवास और उडसर के हैं। ये दोनों गांव सदियों पुरानी मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं के चलते अपने-अपने ढंग से एक विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं, जहाँ दो मंजिला घर बनाने की परंपरा नहीं है।
सिवास: महाकाली मंदिर की आस्था से जुड़ी परंपरा
पाली जिले का सिवास गांव राजस्थान का एक ऐसा गांव है, जहाँ लोगों के बड़े बड़े घर हैं, लेकिन किसी के भी घर के अग्र भाग में दो मंजिला निर्माण नहीं है। पूछने पर पता चला कि गांव स्थित महाकाली मंदिर के अग्र भाग पर झरोखा होने के कारण गांव में कोई भी व्यक्ति अपने घर के अग्र भाग पर दुमंजिला निर्माण नहीं कराता। यह परंपरा 17वीं शताब्दी में शुरू हुई, जब वाणी गांव के ठाकुर शिवनाथसिंह अपनी पलटन के साथ जोधपुर जा रहे थे। सिवास गांव में विश्राम के दौरान ठाकुर को देवी काली मां का दिव्य स्वप्न आया, जिसमें उन्हें मंदिर निर्माण का आदेश मिला। 1760 ईस्वी में ठाकुर ने देवी के आदेश पर महाकाली मंदिर का निर्माण कराया और तब से गांव में यह मान्यता है कि मंदिर के झरोखे के कारण अग्र भाग पर दूसरी मंजिल का निर्माण नहीं होना चाहिए।
वैज्ञानिक युग में भी सिवास गांव के लोग अपनी आस्था में अडिग हैं। यहां के निवासी देश के विभिन्न भागों में व्यापार और कृषि से समृद्ध हैं, लेकिन धार्मिक निष्ठा के चलते वे अपने घरों के अग्र भाग पर दूसरी मंजिल का निर्माण नहीं कराते। महाकाली मंदिर में मूर्ति के स्थान पर यंत्र की पूजा की जाती है, जो 1779 ईस्वी में सिद्ध पंडितों के निर्देश पर स्थापित की गई थी। यह यंत्र पूजा आज भी गांव की गहरी धार्मिक आस्था का प्रतीक है।
उडसर: 700 वर्ष पुराने श्राप का डर
इसी प्रकार चूरू जिले के सरदारशहर तहसील के उडसर गांव में भी पिछले 700 बरसों से किसी ने दूसरी मंजिल का निर्माण नहीं कराया है। गांववासियों का मानना है कि यह गांव एक श्राप का शिकार है। कहा जाता है कि 700 वर्ष पहले, भोमिया नाम का एक व्यक्ति चोरों का सामना करते हुए घायल हो गया था और बचने के लिए अपने ससुर के घर की दूसरी मंजिल पर जा छिपा। लेकिन चोरों ने उसे वहीं मार डाला। इसके बाद से यह मान्यता बन गई कि यदि कोई व्यक्ति दूसरी मंजिल बनाएगा, तो उसके परिवार पर विपदा आ जाएगी।
यह मान्यता आज भी गांव में बनी हुई है, और लोग इसे एक श्राप मानते हैं। इस डर और परंपरा के कारण गांव के लोग अपने घरों की दूसरी मंजिल बनाने से बचते हैं। यह परंपरा अब भी गांव के जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग बनी हुई है, जो आस्था और भय के बीच संतुलन बनाए रखती है।