महाकाल मंदिर में रासायनिक गुलाल के कारण लगी थी आग
महाकाल मंदिर में रासायनिक गुलाल के कारण लगी थी आग
एक समय था जब भारत में वनस्पतियों से रंग बनाए जाते थे, कपड़ा रंगने और होली खेलने में भी उन्हीं रंगों का प्रयोग होता था। गुलाल, अबीर भी प्राकृतिक ही होते थे। लेकिन जैसे जैसे पूंजीवाद बढ़ा, पैसा स्वास्थ्य पर भी भारी पड़ने लगा। कम लागत में रसायनों का उपयोग कर अधिक आकर्षक चमकीले रंग व गुलाल बनाए जाने लगे। ये रंग व गुलाल एलर्जी का कारण तो बने ही, इस बार उज्जैन के महाकाल मंदिर में भस्म आरती के समय लगी आग का कारण भी अमानक गुलाल का प्रयोग बताया जा रहा है। जांच रिपोर्ट आ चुकी है। जांच में बताया गया है कि मंदिर के गर्भगृह में आरती के समय अत्यधिक मात्रा में रासायनिक गुलाल उड़ाया गया था।
NCBI के एक शोध में गुलाल बनाने में मैलाकाइट ग्रीन, ऑरामाइन, मिथाइल वायलेट, रोडामाइन, ऑरेंज II और मेलासाइट जैसे सिंथेटिक रंग प्रयोग करने की बात कही गई है। ये फोटोटॉक्सिक होते हैं। इन रंगों को स्टार्च / अरारोट जैसी आधार सामग्री में मिलाया जाता है। उनकी चमक बढ़ाने के लिए, उनमें अभ्रक (mica), एस्बेस्टॉस और सिलिका की डस्ट मिलाई जाती है। सुगंध के लिए भी रसायन मिलाए जाते हैं। शोध में कहा गया है कि यूं तो स्टार्च से बने गुलाल में आग लगने का अभी तक कोई मामला सामने नहीं आया है। लेकिन गुलाल में उपयोग किए गए स्टार्च पार्टिकल बहुत छोटे (10 माइक्रॉन से भी छोटे) होते हैं, उड़ाने पर वह बादल जैसे फैल जाते हैं, तब आग के सम्पर्क में आने पर विस्फोट की सम्भावना बनती है। फिर इसमें मिलाए रासायनिक तत्व इस सम्भावना को और बढ़ा देते हैं। अभ्रक ऊष्मा का सुचालक और बिजली का कुचालक होता है। ये फोटोटॉक्सिक केमिकल ज्वलनशील तो होते ही हैं, त्वचा की एलर्जी का कारण भी बनते हैं। अभ्रक की धूल से त्वचा पर कई सूक्ष्म आघात हो सकते हैं और पीड़ित व्यक्ति को संक्रमण होने का खतरा हो सकता है। इसके अलावा, दूषित स्टार्च के उपयोग से त्वचा या नेत्र संबंधी संक्रमण की संभावना भी बनी रहती है।
अपने त्यौहारों को पूरी आस्था और सुरक्षा से मना सकें, इसके लिए अब हमें ही जागरूक होना होगा। हम क्या खरीद रहे हैं, इसकी समझ रखनी होगी।