पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने का समय

पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने का समय

डॉ. सौरभ मालवीय  

पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने का समयपर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने का समय

पर्यावरण समस्या और समाधान 

भारत सहित विश्व के अधिकांश देश पर्यावरण संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। ग्रीष्मकाल में भयंकर गर्मी पड़ रही है। प्रत्येक वर्ष निरंतर बढ़ता तापमान पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ रहा है। देश में गर्मी के कारण प्रत्येक वर्ष हजारों लोग दम तोड़ रहे हैं। यह सब ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है। यह पृथ्वी की सतह का दीर्घकालिक ताप है, जो मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न हुआ है। विगत कुछ दशकों में जिस तीव्र गति से जलवायु परिवर्तन हो रहा है वह चिंता का विषय है। इसके भयंकर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। कहीं सूखा पड़ रहा है तथा भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है। लोग पेयजल के लिए त्राहिमाम कर रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली के निवासी भी जल संकट से जूझ रहे हैं। कहीं अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। दिल्ली के अनेक क्षेत्र भी बाढ़ की चपेट में आते रहते हैं। देश की राजधानी की इस स्थिति से पता चलता है कि समस्या कितनी गंभीर है। इससे देश के अन्य क्षेत्रों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त वायु प्रदूषण भी मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है।    

स्वार्थ से बढ़ा संकट 

मानव अपने स्वार्थ के लिए निरंतर प्रकृति को हानि पहुंचा रहा है। वनों से वृक्ष काटकर उन्हें समाप्त किया जा रहा है। विकास के नाम पर भी वृक्ष काटे जा रहे हैं। पर्वतों में खनन किया जा रहा है। मानव ने वन समाप्त करके वन्य प्राणियों के लिए आश्रय एवं भोजन का संकट उत्पन्न कर दिया है। कृषि भूमि पर कॉलोनियां बसाई जा रही हैं। इससे कृषि भूमि कम हो रही है। अत्यधिक रसायनों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से उपजाऊ भूमि बंजर होती जा रही है। इससे निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो सकता है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक जल स्रोत तालाब, जोहड़ व अन्य जलाशय समाप्त हो रहे हैं। नदियां अत्यधिक दूषित एवं विषैली हो रही हैं। इससे जलीय जीवों के लिए संकट उत्पन्न हो गया है। प्लास्टिक कचरे से भी प्रदूषण बढ़ रहा है। इसलिए समस्त जीवों को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। 

पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता  

पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के ‘परि’ एवं ‘आवरण’ से मिलकर बना है अर्थात जो चारों ओर से घेरे हुए है वही पर्यावरण है। जिस पर्यावरण में हम रहते हैं, हमें उसे संरक्षित करना होगा अर्थात हमें अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करना होगा तथा इसे जीवन के अनुकूल बनाना होगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए जल संरक्षण, मृदा संरक्षण, वन संरक्षण, वन्य जीव संरक्षण तथा जैव विविधता संरक्षण पर गंभीरता से कार्य करना होगा। यह सर्वविदित है कि मानव शरीर पंचमहाभूत से निर्मित है, जिनमें आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी सम्मिलित है। प्राणियों के लिए वायु एवं जल अत्यंत आवश्यक है। उन्हें जीवित रहने के लिए भोजन भी चाहिए, जो भूमि से प्राप्त होता है। वनों से हमें जीवनदायिनी औषधियां प्राप्त होती हैं। इसलिए हमें वायु, जल, वन एवं मृदा को संरक्षित करना होगा। 

जल संरक्षण के लिए प्राकृतिक रूप से बने जलाशयों को संरक्षित करना होगा। नए तालाब बनाने होंगे। जल संग्रहण करना होगा अर्थात वर्षा के जल को विभिन्न विधियों से संचित करना होगा। तालाब एवं जोहड़ों के अतिरिक्त भूमि के नीचे बनाए गए टैंक के माध्यम से भी वर्षा जल संचयित किया जा सकता है। इसके साथ-साथ जल को व्यर्थ बहने से रोकना होगा। जितनी आवश्यकता हो, उतने ही जल का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त नदियों एवं अन्य जलाशयों को प्रदूषित होने से भी बचाना होगा। 

मृदा का संरक्षण भी अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए रिक्त पड़ी भूमि पर पौधारोपण किया जा सकता है। इससे एक ओर हरियाली में वृद्धि होगी, तो दूसरी ओर मृदा कटाव रुकेगा तथा भूमि ऊसर होने से भी बचेगी। इसके अतिरिक्त हानिकारक औद्योगिक कचरे को समाप्त करके भी भूमि को दूषित एवं ऊसर होने से बचाया जा सकता है। प्लास्टिक की थैलियों के स्थान पर कपड़े के थैलों का उपयोग करके प्लास्टिक कचरे को कम किया जा सकता है। 

वनों का संरक्षण करके भी पर्यावरण को स्वच्छ बनाया जा सकता है। वन संरक्षण का उद्देश्य यह कि वनों को कटने से बचाया जाए तथा अधिक से अधिक पौधारोपण किया जाए। यदि कहीं विकास कार्यों के कारण वृक्ष काटने अति आवश्यक हों, तो उनसे अधिक संख्या में पौधारोपण किया जाए, जिससे उनकी कमी को पूर्ण किया जा सके। वन विभिन्न प्राणियों के आश्रय स्थल हैं। इन्हें सुरक्षित रखकर वन्य जीवों के आश्रय स्थल की भी रक्षा की जा सकती है।    

पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में कई अधिनियम हैं। इनमें भारतीय वन अधिनियम-1927, वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम- 1972, जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम- 1974 तथा 1977, वन संरक्षण अधिनियम- 1980, वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण) अधिनियम- 1981, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986, जैव-विविधता संरक्षण अधिनियम- 2002, राष्ट्रीय जलनीति- 2002, राष्ट्रीय पर्यावरण नीति- 2004 एवं 

वन अधिकार अधिनियम- 2006 प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं। 

सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए कई योजनाएं चला रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2021 में घोषित पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अभियान को आगे बढ़ाने के लिए, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो अग्रणी पहल की हैं। प्रथम ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम है, जो पर्यावरणीय गतिविधियों को प्रोत्साहन प्रदान करता है। विगत 13 अक्टूबर, 2023 को अधिसूचित ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम एक अभिनव बाजार-आधारित व्यवस्था है जिसे व्यक्तियों, समुदायों, निजी क्षेत्र के उद्योगों और कंपनियों जैसे विभिन्न हितधारकों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसका शासन ढांचा एक अंतर-मंत्रालयी संचालन समिति द्वारा समर्थित है तथा भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के प्रशासक के रूप में कार्य करता है। यह कार्यक्रम कार्यान्वयन, प्रबंधन, निगरानी और संचालन के लिए उत्तरदायी है। यह प्रोग्राम अपने प्रारंभिक चरण में दो प्रमुख गतिविधियों जल संरक्षण और वनीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है। ग्रीन क्रेडिट देने के लिए प्रारूप पद्धति विकसित की गई है और हितधारक परामर्श के लिए इसे अधिसूचित किया जाएगा। ये पद्धतियां प्रत्येक गतिविधि अथवा प्रक्रिया के लिए मानक निर्धारित करती हैं, जिससे सभी क्षेत्रों में पर्यावरणीय प्रभाव और प्रतिस्थापना सुनिश्चित की जा सके। एक उपयोगकर्ता- अनुकूल डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म परियोजनाओं के पंजीकरण, उसके सत्यापन और ग्रीन क्रेडिट जारी करने की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा। विशेषज्ञों के साथ भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद द्वारा विकसित किया जा रहा ग्रीन क्रेडिट रजिस्ट्री और ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म, पंजीकरण और उसके बाद ग्रीन क्रेडिट के क्रय एवं विक्रय की सुविधा प्रदान करेगा।

द्वितीय ईकोमार्क योजना है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों को प्रोत्साहन प्रदान करना है। पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली के पीछे का दर्शन व्यक्तिगत विकल्पों और व्यवहार को स्थिरता की ओर ले जाना है। इस दृष्टिकोण के अनुरूप, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपनी ईकोमार्क अधिसूचना को फिर से तैयार किया है, ताकि उपभोक्ता उत्पादों के बीच चयन करने में सक्षम हो सकें और इस तरह उन उत्पादों को चुन सकें जो उनके डिजाइन, प्रक्रिया आदि में पर्यावरण के अनुकूल हैं। जो जलवायु परिवर्तन, स्थिरता और पर्यावरण के प्रति जागरूक प्रथाओं को प्रोत्साहन देने के लिए देश के सक्रिय दृष्टिकोण का संकेत देती हैं। ये योजनाएं परंपरा एवं संरक्षण में उपस्थित पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करती हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली की अवधारणा के विचारों को प्रदर्शित करती हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं- “हमारे लिए पर्यावरण की रक्षा आस्था का विषय है। हमारे पास प्राकृतिक संसाधन हैं क्योंकि हमारी पिछली पीढ़ियों ने इन संसाधनों की रक्षा की। हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ऐसा ही करना चाहिए।” 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी प्रयासों से भारत पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की दिशा में ठोस पहल करने वाला अग्रणी देश बना है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों को दर्शाने वाली एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा था कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब गुजरात ‘जलवायु परिवर्तन विभाग’ वाला देश का प्रथम राज्य बना था। यह एक अनूठा प्रयास था, जबकि तब केंद्रीय स्तर पर पर्यावरण मंत्रालय ने भी जलवायु परिवर्तन की अवधारणा को एकीकृत नहीं किया था।

लोकसभा चुनाव के भारतीय जनता पार्टी के ‘भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024’ नामक घोषणा पत्र में पर्यावरण का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दी गई पर्यावरण के लिए जीवन शैली की अवधारणा को विश्व ने स्वीकार किया है। इस मंत्र को साकार करने के लिए हमने पर्यावरण प्रबंधन के सभी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है। हम पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली में विश्व का नेतृत्व करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक प्रथाओं का उपयोग करके एक स्वस्थ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध हों। हमने कई ऐसी योजनाएं क्रियान्वित की हैं, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी। जैसे प्रधानमंत्री सूर्य का घर योजना, रेलवे का विद्युतीकरण, ई-बस, इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रसार एथेनॉल और बॉयो फ्यूल का उपयोग इत्यादि। इन सब योजनाओं से हम नेट जीरो के लक्ष्य की प्राप्ति की ओर तीव्र गति से अग्रसर हैं तथा इन योजनाओं से हमारे नागरिकों के लिए वातावरण सुनिश्चित होगा।        

विगत विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में पीपल का पौधा लगाकर ‘एक पौधा मां के नाम’ नामक अभियान प्रारंभ किया। उन्होंने एक्स पर लिखा था- ‘मैंने प्रकृति मां की रक्षा करने और सतत जीवन शैली अपनाने की हमारी प्रतिबद्धता के अनुरूप एक पेड़ लगाया। मैं आप सभी से यह आग्रह करता हूं कि आप भी हमारे ग्रह को बेहतर बनाने में योगदान दें।’

इसमें दो मत नहीं है कि सरकारी प्रयास एवं जनभागीदारी से पर्यावरण को संरक्षण किया जा सकता है। हमें अपने बच्चों को भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ वातावरण मिल सके।  

(लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *