कालजयी भारतीय ज्ञान : हिंदू ग्रंथों में समाए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भों की विवेचना करती एक पठनीय पुस्तक

कालजयी भारतीय ज्ञान : हिंदू ग्रंथों में समाए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भों की विवेचना करती एक पठनीय पुस्तक

सुकांत सौरभ

कालजयी भारतीय ज्ञान : हिंदू ग्रंथों में समाए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भों की विवेचना करती एक पठनीय पुस्तककालजयी भारतीय ज्ञान : हिंदू ग्रंथों में समाए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भों की विवेचना करती एक पठनीय पुस्तक

पुस्तक – कालजयी भारतीय ज्ञान

लेखक – भगवती प्रकाश शर्मा

प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन

मूल्य – ₹400

विश्व की प्राचीनतम संस्कृति यानि भारतीय संस्कृति ज्ञान प्रधान रही है। हमारा प्राचीन साहित्य भी किसी संप्रदाय विशेष के कर्मकांड पर केंद्रित नहीं है, बल्कि मानव के लिए उपयोगी ज्ञान का कोष है। अमेरिकी इतिहासविद मार्क ट्वेन के अनुसार, आज के आधुनिक ज्ञान विज्ञान की भी कई जानकारियां प्राचीन भारतीय हिंदू साहित्य में मिल जाती हैं और यह भी संभव है कि भविष्य में होने वाले नए अनुसंधानों और आविष्कारों के भी कई संदर्भ प्राचीन भारतीय शास्त्रों में मिल जाएं। इसका उद्देश्य हमेशा से विश्व मंगल और मानव कल्याण रहा है। लेखक भगवती प्रकाश शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘कालजयी भारतीय ज्ञान’ में हमारे प्राचीन साहित्य, वेदों, पुराणों, ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, आरण्यकों, रामायण, महाभारत एवं प्राचीन सनातन हिंदू ग्रंथों में विकसित आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के इन्हीं संदर्भों की विवेचना की गई है।

संस्कृत भाषा के प्रत्येक शब्द की रचना ही ज्ञान के कोष के रूप में की गई है। उदाहरणतः ‘वन’ शब्द का अर्थ प्रकृति में वर्षा कराने में सहायक होने वाला होता है। आधुनिक मौसम विज्ञान के अनुसार, वर्षा के लिए आवश्यक 40 प्रतिशत आर्द्रता वन ही प्रदान करते हैं।

इसी प्रकार हृदय में चार अक्षर ‘ह’, ‘र’, ‘द’, ‘य’ का सुनियोजित संयोजन किया गया है जो ‘हरते, ददाते, रयते, यमम्’ से लिया गया है। इसका अर्थ होता है, शरीर को रक्त देने वाला, रक्त लेने वाला, रक्त का संचार कराने वाला और धड़कनों को नियमित करने वाला। प्राचीन व्याकरण और निरुक्त ऐसे ही अर्थपरक शब्दों के भंडार हैं। पाणिनि की कृति ‘अष्टाध्यायी विश्व का प्राचीनतम ही नहीं, बल्कि पूर्ण वैज्ञानिक व्याकरण है। यही कारण है कि भारत के प्राचीन ग्रंथ व उनके प्रत्येक शब्द विज्ञान आधारित हैं। लेखक ने पुस्तक में इसका ध्यान रखा है और इसे समझाने का सफल प्रयास किया है। लेखक ने इस पुस्तक को तीन खंडों में बांटकर 43 अध्यायों में समेटने का अनूठा प्रयास किया है। प्रथम खंड में उन्होंने प्राचीन भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्रोत और प्रयोग के संदर्भ, वैदिक विमर्श, पौराणिक विमर्श, प्रकाश की गति और हृदय के विद्युत स्पंदनों के वैदिक संदर्भ आदि का आसान विवरण दिया है, वहीं दूसरे खंड में विश्वव्यापी एकता का वर्णन है। इसमें तिब्बत का वैदिक विमर्श, पवित्र कैलाश पर्वत केंद्रित एकता, संक्रांति की वैश्विक परंपराएं, वैदिक सूर्योपसना का वैश्विक प्रसार और अमेरिकी पुरावशेषों पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की गई है। वहीं, तृतीय व अंतिम खंड में लेखक शर्मा ने भारतीय प्राचीन साहित्य में वर्णित विकसित राजनीतिक और आर्थिक चिंतन, शास्त्र विमर्श, शासन पद्धतियों की अवधारणा, व्यावसायिक शब्दावली के संदर्भ, प्राचीन भारत के क्रय-विक्रय के विधान आदि का विश्लेषण भी किया है।

आज वैश्विक समस्याओं का निदान सभी देश एकजुट होकर निकालने के प्रयास में जुटे हैं। यह विचार हजारों वर्ष पूर्व हमारे ग्रंथों में भी मिलते हैं। हमारे ये प्राचीन शास्त्र व उनका अध्ययन समूची मानव जाति की साझी व अनादि संस्कृति के अंग रहे हैं। भारतीय संस्कृति का प्रभाव आज भी साइबेरिया से श्रीलंका और मेडागास्कर से अफगानिस्तान तक और प्रशांत महासागरीय दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से लेकर यूरोप तक स्पष्ट दिखाई देता है, परंतु हमारे साहित्य को हम ही निषिद्ध किए हुए हैं। दुख की बात यह है कि प्राचीन भारत के इस विकसित ज्ञान को पढ़ने, पढ़ाने और इन पर अनुसंधान को विद्यालयों के औपचारिक शिक्षण से बाहर करने से ये निष्प्राण हो रहे हैं। लेखक ने इस पुस्तक से इन संबंधों को उजागर कर हमारी वृहद संस्कृति और इसके ज्ञानकोश से साक्षात्कार कराया है।

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