षड्यंत्रों का शिकार तिरुपति बालाजी मंदिर
षड्यंत्रों का शिकार तिरुपति बालाजी मंदिर
भारत का तिरुपति बालाजी मंदिर (आंध्र प्रदेश) विश्वभर में प्रसिद्ध है और यहां प्रसाद के रूप में मिलने वाले लड्डू भी। यहां के लड्डुओं को स्वाद के लिए जाना जाता है। हाल ही में तिरुपति बालाजी मंदिर के इन्हीं प्रसाद लड्डुओं में पशु चर्बी की मिलावट के आरोपों ने सनातन धर्म के अनुयायियों के मध्य गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है।
18 सितंबर को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए आरोप लगाया कि जगन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी सरकार ने तिरुपति लड्डू बनाने में गाय और सुअर की चर्बी तथा मछली के तेल का उपयोग किया था। मामला सामने आने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इस मामले में आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू से रिपोर्ट मांगी और तिरुपति मंदिर ट्रस्ट ने प्रसाद की जांच के लिए 4 सदस्यीय कमेटी बना दी। प्रसाद के सैम्पल गुजरात स्थित राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के “पशुधन एवं खाद्य विश्लेषण एवं अध्ययन केंद्र” (CALF) भेजे गए। जांच में प्रसाद में उपयोग होने वाले घी में सोयाबीन, सूरजमुखी, जैतून, रेपसीड, अलसी, गेहूं के बीज, मक्का के बीज, कपास के बीज, नारियल, पाम कर्नेल फैट और पाम ऑयल जैसे वनस्पति तेलों के साथ-साथ बीफ टैलो (गाय की चर्बी), लार्ड (सुअर की चर्बी) और मछली का तेल भी पाया गया है।
जैसे ही रिपोर्ट आयी, पूरा देश उसे देख कर सन्न रह गया। कोई विश्वास नहीं कर पा रहा कि हिन्दू आस्था का इतना बड़ा केंद्र तिरुपति मंदिर इतने बड़े षड्यंत्र का शिकार होगा। इसी बीच लेफ्ट-लिबरल गैंग ने इसे हिन्दुओं के खानपान से जोड़कर इसका सामान्यीकरण करना आरम्भ कर दिया। उनका कहना है, हिन्दू मांस भी तो खाते हैं, फिर प्रसाद में चर्बी थी तो ऐसा क्या हो गया। इस मुद्दे को तूल नहीं देना चाहिए।
ऐसे लोगों को प्रत्युत्तर देते हुए X पर शशांक लिखते हैं, “यहीं पर हम पीछे रह जाते हैं। उदारवाद, छद्म हिंदुत्व और कुछ विभाजनकारी विचारधाराओं ने हमें कमज़ोर कर दिया है। जो लोग इन विचारधाराओं का समर्थन करते हैं और गोमांस खाते हैं, वे लंबे समय से यही परिणाम चाहते हैं। उनका अंतिम उद्देश्य हिंदुओं को अपना धर्म त्याग कर अन्य धर्मों में परिवर्तित होते देखना है, और अक्सर ही वे सरकार द्वारा समर्थित होते हैं।”
इसी प्रकार ट्रु इंडोलॉजी X पर लिखते हैं, “क्या आप जानते हैं?
1932 तक तिरुपति पर हिंदुओं का स्वामित्व था। स्वामी हाथी रामजी मठ का पूरा नियंत्रण था।
1932 में अंग्रेजों ने जबरन कब्जा करके टीटीडी की स्थापना की। द्वितीय विश्व युद्ध में, मंदिर से मिलने वाले धन को ब्रिटिश सैन्य अभियानों के वित्त पोषण के लिए प्रयोग किया गया। आज भी मंदिर पर टीटीडी का ही स्वामित्व है। आज, यह पता चला है कि टीटीडी एक समझौतावादी संस्था है, जिसकी निगरानी में मंदिर के खाने में गोमांस मिलाया जाता है। हमें राजनीतिक स्वतंत्रता 1947 में ही मिली है। हमारे मंदिर अभी भी अंग्रेजों द्वारा बनाए गए निकायों के अधीन हैं।”
वह आगे लिखते हैं, “सबसे पहले उन्होंने तिरुपति पर कब्ज़ा किया और ईसाई अधिकारियों को नियुक्त किया। फिर उन्होंने तिरुपति में सैकड़ों चर्च बनवाए। अब पता चला है कि ईसाई कट्टरपंथी जगन ने हिंदुओं के धर्मभ्रष्ट होने के लिए चुपके से तिरुपति के खाने में गोमांस मिला दिया। यह हिंदू धर्म के विरुद्ध खुला ईसाई युद्ध नहीं तो और क्या है?”
अचल लिखते हैं, “जगन और तिरुपति ट्रस्ट को इसका उत्तर देना चाहिए। यह लंबे समय में हिंदू धर्म पर सबसे गंभीर हमला है। हिंदू मंदिर को हिंदुओं को चलाना चाहिए, न कि सरकार को। मोदी सरकार को तिरुपति ट्रस्ट के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए और ट्रस्ट को तुरंत निलंबित करना चाहिए।
लोगों का कहना है, एक समय ऐसा भी था जब गोमांस के सहारे ब्रिटिशों ने भी हिंदुओं की आस्था भंग करनी चाही थी, जब उन्हें गाय की चर्बी लगे कारतूस मुंह से खोलने के लिए दिए थे। तब हिंदू उनके विरुद्ध इतनी मजबूती से खड़े हुए थे कि उनके पांव उखड़ने लगे थे।
अब YSR के बेटे जगन रेड्डी भले कुछ भी कहें, लेकिन ईसाई मिशनरीज के प्रति उनकी श्रद्धा किसी से छिपी नहीं। तिरुपति मंदिर तो जगन रेड्डी के पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी के समय से ही षड्यंत्रों का शिकार रहा है।
2007 में जब वाईएसआर की सरकार थी, तब उन्होंने मिशनरियों के प्रभाव में मंदिर के वार्षिक ब्रम्होत्सव के लिए 250 स्तम्भों का ऑर्डर दिया था, जो बिल्कुल ईसाइयों के लिए पवित्र क्रॉस जैसे दिखते थे। यह ऑर्डर बेंगलुरु की एक कम्पनी को दिया गया था। ये स्तम्भ महोत्सव के दौरान सौन्दर्यीकरण के लिए लगाए जाने थे। इनका निर्माण प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से होना था और इन पर नक्काशी की जानी थी। लेकिन, जब इन स्तम्भों का एक नमूना तिरुपति पहुँचा तो लोगों के कान खड़े हो गए। हिन्दू संगठनों का कहना था कि इनकी बनावट ईसाई क्रॉस जैसी है।
इसी प्रकार 1988 में मंदिर में गैर हिंदुओं को नौकरी पर नहीं रखने का नियम लागू हुआ। 2007 में सरकार ने मंदिर और उससे जुड़े शिक्षण संस्थानों में गैर हिंदुओं की नियुक्ति न करने का आदेश दिया था। लेकिन फिर भी उन्हें नौकरी पर रखा जाता रहा। जनवरी 2018 में 44 गैर हिंदुओं को चिन्हित किया गया था।
इस बार भी चर्बी वाले घी की शुरुआत तब हुई, जब जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने महंगी कीमतों का हवाला देते हुए 15 वर्षों से मंदिर को सप्लाई देने वाले कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (नंदिनी ब्रांड वाला गाय का घी) से घी लेना बंद कर दिया और तमिलनाडु की एआर डेयरी फूड्स को घी सप्लाई करने का ठेका दे दिया।
रेड्डी सरकार के रहते एक लड्डू घोटाला 2018 में भी हो चुका है। तब टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, नवरात्र ब्रह्मोत्सव की भीड़ को देखते हुए मंदिर प्रशासन तिरुमाला तिरुपति देवास्थानम (टीटीडी) ने गरुड़ सेवा के लिए अलग से व्यवस्था की थी और इसके लिए अस्थाई तौर पर कर्मचारी नियुक्त किए थे। उस वर्ष 14, 15 और 16 अक्टूबर को लड्डुओं के 30 हजार टोकन दिए गए थे, जिनमें 100 और 50 रुपए वाले टोकन शामिल थे। ये टोकन लड्डू प्रसादम टिकट (एलपीटी) पर तैनात कर्मचारियों द्वारा बांटे गए थे। बाद में पता चला कि कर्मचारियों ने पुराने टोकन के आधार पर ही लड्डू बेच डाले, यानी लड्डू तो बिक गए लेकिन पैसा टीटीडी के खजाने में ना जाकर कर्मचारियों की जेब में चला गया।
वर्तमान मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तो जगन मोहन रेड्डी के कार्यकाल पर निशाना साधते हुए यहॉं तक कहा कि,’जगन सरकार ने इस धार्मिक स्थल को गांजा, शराब और मांसाहारी भोजन का केंद्र बना दिया। अब तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम की शुद्धि की शुरुआत होगी।’
बार बार के इन विवादों के बाद हिन्दू संगठनों ने ‘सनातन धर्म रक्षा बोर्ड’ की स्थापना की माँग की है। इस प्रस्तावित बोर्ड का उद्देश्य हिंदू धर्म और मंदिरों की पवित्रता की रक्षा करना और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोकना है।आंध्र प्रदेश के डिप्टी मुख्यमंत्री पवन कल्याण ने भी इस माँग का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि तिरुपति लड्डू में बीफ मिलावट का मामला बहुत गंभीर है, इससे हिंदुओं की भावनाओं को गहरा आघात पहुंचा है। उन्होंने कहा, “यह समय है कि हिंदू एकजुट हों और अपने धर्म की रक्षा के लिए खड़े हों। सनातन धर्म की पवित्रता बनाए रखने के लिए एक मजबूत और सक्षम बोर्ड की आवश्यकता है।”
उल्लेखनीय है, वाईएसआर 2004 से 2009 के बीच राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। उनकी 2009 में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। उनके बेटे जगन ने इसके बाद उनकी राजनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी पार्टी बनाई और 2019 में मुख्यमंत्री बने। इन पिता पुत्र के राज में तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट बोर्ड (टीटीडी) को करुणाकर रेड्डी, सुब्बाराव रेड्डी और चंद्रशेखर रेड्डी जैसे ईसाई चेयरमैन मिले।