तुलसी काव्य में सामाजिक समरसता

तुलसी काव्य में सामाजिक समरसता

तुलसी काव्य में सामाजिक समरसतातुलसी काव्य में सामाजिक समरसता

तुलसीदास संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। उन्होंने पन्द्रह वर्षों तक वेद, वेदाङ्ग, दर्शन, इतिहास, पुराण, ज्योतिष आदि का गहन अध्ययन किया। इस बीच वे रामभक्ति में ऐसे रमे कि घर छोड़ दिया और चारों धामों की यात्रा पर निकल पड़े। उन्होंने देशभर के हिन्दू समाज की दशा का गहराई से चिन्तन किया और पुनः काशी आकर रहने लगे। अपने जीवन काल में उन्होंने दोहावली, कवित-रामायण, गीतावली, रामचरितमानस, रामाज्ञा प्रश्नावली, विनयपत्रिका, रामललानहछू, पार्वतीमंगल, जानकीमंगल, बरवैरामायण, वैराग्यसंदीपनी और कृष्णगीतावली आदि रचनाएं लिखीं। इनमें रामचरितमानस सर्वाधिक लोकप्रिय हुई। रामचरितमानस सामाजिक समरसता के प्रति उनकी गहरी समझ और दृष्टिकोण को उजागर करती है। उनकी काव्य-रचनाओं में विभिन्न समाजिक वर्गों, जातियों और समुदायों के बीच समानता का संदेश दिया गया है।

मानस में तुलसीदास ने श्रीराम को एक आदर्श व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है। तुलसी के राम जाति या वर्ग के भेदभाव से परे हैं। उन्होंने समाज के हर वर्ग का सम्मान किया और उनके साथ समान व्यवहार किया। अहिल्या एक ब्राह्मणी थीं और शापित स्थिति में थीं, उनका उद्धार श्रीराम द्वारा किया गया। इस कथा के माध्यम से तुलसीदास ने यह संदेश दिया कि किसी व्यक्ति का असली मूल्य उसके गुण और चरित्र पर निर्भर करता है, जाति या वर्ग पर नहीं।

विभिन्न पात्रों के बीच सहयोग

रामचरितमानस में विभिन्न पात्रों जैसे वानर, भालू, और राक्षसों के बीच सहयोग और भाईचारे का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। सुग्रीव और श्रीराम की मित्रता, रावण और उसकी सेना के विरुद्ध संयुक्त प्रयास और सभी पात्रों का मिलकर कार्य करना एकता तथा सहयोग का आदर्श उदाहरण है। श्रीराम व उनके अनुयायियों का विभिन्न जातियों और वर्गों के साथ सहयोग यह दर्शाता है कि समाज में किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए एकता और सामंजस्य आवश्यक है।

सर्वधर्म समभाव

तुलसीदास ने विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक तत्वों को एक साथ लाकर यह दिखाया कि सभी धर्म और पंथ एक ही मूल सत्य की ओर इशारा करते हैं। इन सभी का सम्मान किया जाना चाहिए।

राजधर्म का पालन

श्रीराम के चरित्र में राजा होने के नाते सामाजिक जिम्मेदारियों का पालन करने की प्रेरणा दी गई है। उन्होंने अपने कर्तव्यों को निभाते हुए समाज के सभी वर्गों के प्रति समान न्याय और दया का व्यवहार किया।

समान अधिकार और अवसर

तुलसीदास ने अपने काव्य में यह दिखाया कि हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए। उनके अनुसार, व्यक्ति की स्थिति और स्थिति का मूल्य उसकी अच्छाई और कर्म पर निर्भर करता है।

सच्चे प्रेम का आदर्श

तुलसीदास ने भक्ति और प्रेम को सामाजिक समरसता के महत्वपूर्ण तत्वों के रूप में प्रस्तुत किया। श्रीराम की भक्ति में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल होते हैं, और यह प्रेम और भक्ति सभी को एक साथ लाने का कार्य करती है।

मानवता की महत्ता

उन्होंने अपने काव्य में मानवता और करुणा को प्रमुखता दी। यह दिखाता है कि एकजुट समाज और सामाजिक समरसता के लिए सबसे महत्वपूर्ण मूल्य मानवता और दया हैं।

तुलसीदास की रचनाएँ समाज में एकता, समानता और समरसता की भावना को प्रोत्साहित करती हैं। उनके काव्य में जाति और वर्ग के भेदभाव को समाप्त करने, सामाजिक भाईचारे को बढ़ावा देने और नैतिकता व मानवता के महत्व को दर्शाने के स्पष्ट प्रयास किए गए हैं। उनकी काव्य-रचनाएँ आज भी सामाजिक समरसता और एकता के आदर्श मानक के रूप में देखी जाती हैं।

 

#तुलसीदास_जयंती

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