उदयपुर का मेला, जिसमें सिर्फ महिलाएं भाग लेती हैं

उदयपुर का मेला, जिसमें सिर्फ महिलाएं भाग लेती हैं

उदयपुर का मेला, जिसमें सिर्फ महिलाएं भाग लेती हैंउदयपुर का मेला, जिसमें सिर्फ महिलाएं भाग लेती हैं

उदयपुर। महाराणा प्रताप की नगरी उदयपुर शौर्य और पराक्रम के साथ ही झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है, यह फैक्ट तो आज लगभग सभी लोग जानते हैं। परंतु उदयपुर की एक और पहचान भी है, वह है यहॉं का अनूठा मेला, जो श्रावण मास की हरियाली अमावस्या पर लगता है। इस दो दिवसीय मेले में पहले दिन स्त्री पुरुष दोनों, तो दूसरे दिन सिर्फ स्त्रियां ही भाग लेती हैं, पुरुषों का प्रवेश प्रतिबंधित होता है। यह मेला उदयपुर के दो प्रमुख स्थानों, फतेहपुर की पाल और सहेलियों की बाड़ी पर आयोजित होता है। इसकी शुरुआत महाराणा फतेह सिंह ने 1898 में की थी। 

मान्यता है कि एक दिन महाराणा महारानी चावड़ी के साथ फतेहसागर झील पर घूमने गए। लबालब भरे फतेहसागर को देखकर वे इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने पूरे शहर को वहॉं बुला लिया और उत्सव मनाया। तब चावड़ी रानी ने महाराणा फतेह सिंह से मेले में केवल महिलाओं को जाने की अनुमति देने को कहा। इस पर महाराणा ने मेले का दूसरा दिन केवल महिलाओं के लिए रखने की घोषणा कर दी। महारानी चाहती थीं कि महिलाओं को मेले में एक ऐसा वातावरण मिले, जहां वे बिना किसी झिझक और सामाजिक बाधाओं के स्वतंत्र रूप से आनंद मना सकें। इसीलिए उन्होंने महाराणा से केवल महिलाओं के प्रवेश का अनुरोध किया था और महाराणा ने भी महारानी की इच्छा का सम्मान करते हुए इसकी अनुमति दे दी।

तब से मेले के पहले दिन तो स्त्री और पुरुष दोनों शामिल होने लगे और दूसरे दिन केवल महिलाएं। 1898 से यह परम्परा ऐसे ही चलती आ रही है। इस परम्परा का पालन बहुत कड़ाई से होता था। यदि कोई पुरुष मेले में प्रवेश कर लेता था तो उसे महाराणा के क्रोध का शिकार होना पड़ता था। मेले में पुरुषों का प्रवेश न हो, अब यह नगर निगम और प्रशासन सुनिश्चित करता है।

इस मेले की शुरुआत की कहानी पर गौर करें तो हमें पता चलता है कि महिला सम्मान और सशक्तिकरण भारतीय संस्कृति के मूल में है। महाराणा और महारानी के इस निर्णय का उद्देश्य भी महिलाओं को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाना था। वे एक दूसरे से मिलें, अपनी संस्कृति का आदान-प्रदान करें और इस अवसर पर बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के पूरा आनंद मनाएं। यही कारण है कि यह मेला महिलाओं में बहुत लोकप्रिय है। यहॉं वे न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि अपनी पारंपरिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजती हैं।

मेले में पारंपरिक नृत्य, संगीत, और खेलों का आयोजन होता है, जिसमें महिलाएं बढ़ चढ़ कर भाग लेती हैं। इस प्रकार यह मेला न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण और उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करता है

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *