उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के बाद जम्मू कश्मीर में बढ़ीं आतंकी घटनाएं
उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के बाद जम्मू कश्मीर में बढ़ीं आतंकी घटनाएं
जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगने और धारा 370 हटने के बाद जो शांतिपूर्ण वातावरण बना था, उस पर फिर ग्रहण लगता दिखायी दे रहा है। चुनावों के बाद उमर अब्दुल्ला सरकार को शपथ लिए अभी दस दिन हुए हैं और प्रदेश चार आतंकी घटनाओं का सामना कर चुका है। इन घटनाओं में सेना के जवानों, गैर कश्मीरियों सहित 13 लोगों की मौत हो चुकी है। आतंकवादी चुन चुनकर गैर कश्मीरियों को निशाना बना रहे हैं।
ताजी घटना 24 अक्टूबर की है। बारामूला जिले के गुलमर्ग क्षेत्र में सेना के एक वाहन पर आतंकियों ने शाम के समय घात लगाकर हमला किया। यह हमला बोटापाथरी के नागिन चौक क्षेत्र में हुआ, जो आमतौर पर शांतिपूर्ण वातावरण और पर्यटकों की आवाजाही के लिए जाना जाता है। इस आतंकी हमले में 2 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके अतिरिक्त सेना के लिए काम करने वाले 2 पोर्टर (कुलियों) की भी मौत हो गई। इसमें हमले में घायल हुए तीन जवानों को श्रीनगर के 92 बेस अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन शुक्रवार सुबह एक और जवान बलिदान हो गया। 24 अक्टूबर को बलिदान हुए जवानों की पहचान राइफलमैन कैसर अहमद शाह और राइफलमैन जीवन सिंह के रूप में हुई है। वहीं, इस हमले की जिम्मेदारी पीपल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) ने ली है। संगठन ने हमले की जिम्मेदारी वाली पोस्ट और हमले के पहले की एक तस्वीर भी जारी की।
24 अक्टूबर की ही सुबह आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल क्षेत्र में एक प्रवासी मजदूर को गोली मार दी थी। उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के शुभम कुमार को बटगुंड में गोली मारी गई। इस दौरान वह घायल हो गया और अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है, जहां उसकी हालत खतरे से बाहर है।
इससे पहले 20 अक्टूबर को आतंकवादियों ने गांदरबल के सोनमर्ग में निर्माणाधीन जेड मोड टनल में हमला किया था। यह हमला तब किया गया, जब गांदरबल के गुंड में जेड मोड़ टनल परियोजना पर काम कर रहे मजदूर और अन्य कर्मचारी देर शाम अपने शिविर में लौट आए थे। यह हमला ऐसे क्षेत्र में हुआ है, जहां पिछले एक दशक में आतंकवादियों की उपस्थिति बहुत कम रही है। इस हमले में बडगाम के एक डॉक्टर, मध्यप्रदेश के इंजीनियर और पंजाब-बिहार के पांच मजदूरों की मौत हो गई, जबकि पांच अन्य घायल हो गए। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर के संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली थी। यह हमला श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहाड़ों और घने जंगलों से घिरे गगनगीर गांव में हुआ था। गांदरबल जिले में 6.5 किलोमीटर लंबी जेड-मोड़ सुरंग लगभग पूरी हो चुकी है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के पिछले तीन दशकों में किसी प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना स्थल पर इस तरह की पहली घटना है।
18 अक्टूबर की घटना भी बेहद दर्दनाक थी, जब आतंकियों ने बिहार के रहने वाले श्रमिक अशोक चौहान को गोली मार दी और उसका शव दक्षिण कश्मीर जिले में जैनापुरा के वाची क्षेत्र से बरामद किया गया। अशोक चौहान अनंतनाग के संगम क्षेत्र में रहता था। उस के शरीर पर दो गोलियां लगने के निशान थे।
जम्मू- कश्मीर में नए बने हालातों पर जम्मू निवासी आर्कीटेक्ट अंकित रैना कहते हैं, पिछले दस दिनों में प्रदेश में घटी इन आतंकी घटनाओं को संयोग नहीं कहा जा सकता। स्थानीय कश्मीरियों में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो आतंकियों से सहानुभूति रखते हैं। हाल में जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में जिस तरह से वहां की जनता ने घरों से निकलकर वोट दिया, उससे आतंकी संगठनों की तिलमिलाहट भी स्वाभाविक है। उन्हें यह हजम ही नहीं हो रहा कि जम्मू कश्मीर की जनता भारतीय लोकतंत्र में इतनी निष्ठा रखती है और वो नई सरकार चुनने के लिए इतनी आतुर थी। सेवा निवृत्त कर्नल प्रमोद कहते हैं, जम्मू कश्मीर में हुए शांतिपूर्ण मतदान से आतंकी, जम्मू कश्मीर की अस्थिरता के लिए लगातार प्रयास करने वाला पड़ोसी देश और उसके कट्टरपंथी संगठन बुरी तरह बौखला गए हैं। ये हमले उमर अब्दुल्ला सरकार की टैस्टिंग है। अब आतंक और आतंकियों के प्रति सरकार के रुख पर निर्भर करेगा कि ऐसी घटनाएं बढ़ेंगी या उन पर अंकुश लगेगा। प्रदेश में विकास और शांति की जो बयार बहनी शुरू हुई थी, वह गति पकड़ेगी या थम जाएगी।