विक्रम संवत को राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप नहीं अपनाना क्या कोई षड्यंत्र था?

विक्रम संवत को राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप नहीं अपनाना क्या कोई षड्यंत्र था?

कर्नल देव आनंद लोहामरोड़

विक्रम संवत को राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप नहीं अपनाना क्या कोई षड्यंत्र था?विक्रम संवत को राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप नहीं अपनाना क्या कोई षड्यंत्र था?

2025 की शुरुआत हो गई। मुझे विश्वास है, बड़ी संख्या में भारत के नागरिक भारतीय नववर्ष के बारे में या तो भूल चुके हैं या फिर चर्चा करने में हीन भावना का अनुभव करते हैं। विक्रम संवत भारत का एक प्राचीन और समृद्ध कैलेंडर है। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में विक्रम संवत का विशेष स्थान है। यह न केवल एक समय को मापने का एक तरीका तथा कैलेंडर है बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान भी है। भारतीय संवत (संवत्सर) एक हिन्दू कालगणना प्रणाली है, जिसे भारतीय पंचांग या हिन्दू कैलेंडर भी कहते हैं। यह प्रणाली प्राचीनकाल से भारतीय उपमहाद्वीप में धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और त्योहारों, व्रतों व विशेष धार्मिक अवसरों की तिथियों को निर्धारित करने में उपयोग होती है। इसके बावजूद भारत की स्वाधीनता के उपरांत 22 मार्च 1957 (भारांग: १ चैत्र १८७९) के दिन विक्रम संवत के स्थान पर शक संवत को भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ (संक्षिप्त नाम – भारांग) के रूप में अपनाया गया। जिसके फलस्वरूप भारत में यह भारत का राजपत्र, आकाशवाणी द्वारा प्रसारित समाचार और भारत सरकार द्वारा जारी संचार विज्ञप्तियों मे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ प्रयोग किया जाने लगा। आईए जानते हैं विक्रम संवत तथा शक संवत में क्या अंतर है और भारत सरकार ने 1957 में विक्रम संवत को क्यों नजर अंदाज किया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि……
विक्रम संवत भारत की प्राचीन कालगणना प्रणाली में से एक है, यह संवत राजा विक्रमादित्य के नाम पर आधारित है। इसकी शुरुआत 57 ईसा पूर्व में हुई मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने के उपरांत राजा विक्रमादित्य के नाम पर इस संवत की शुरुआत की थी। विक्रम संवत एक चंद्र-सौर कालगणना प्रणाली है, जिसमें चंद्र मास (लूनर मंथ) और सौर वर्ष (सोलर ईयर) का संयोजन होता है। प्रत्येक चंद्र मास चंद्रमा की गति पर आधारित होता है और लगभग 29.5 दिनों का होता है।

धार्मिक महत्व
विक्रम संवत हिंदू धर्म के कई धार्मिक ग्रंथों और विधियों में उल्लिखित है। इसे विभिन्न पूजा-पाठ, व्रत और त्योहारों की तिथियों को निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है। विक्रम संवत का उपयोग धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए प्रमुख रूप से होता है। यह हिंदू पंचांग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विक्रम संवत हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) तिथि से शुरू हो जाती है, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल में आता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया वर्ष मनाया जाता है, जिसे गुड़ी पड़वा या उगादी भी कहते हैं। इस संवत को गणितीय दृष्टिकोण से एकदम सटीक कालगणना माना जाता है।

विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत माना गया है, लेकिन दुर्भाग्य से सदियों से भारतीय संस्कृति का केंद्र बिंदु रहने के बावजूद भी स्वाधीनता के उपरांत 22 मार्च 1957 को इसे भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर नहीं माना गया। भारतीय कैलेंडर की शुरुआत नव संवत्सर या विक्रम संवत से होती है, जिसमें 12 महीने होते हैं तथा कैलेंडर की शुरुआत चैत्र माह से होती है और फाल्गुन माह में समाप्त हो जाती है। इस कैलेंडर के 12 माह चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन हैं। सभी 12 माह के नाम नक्षत्रों के नाम पर हैं।

शक संवत….
‘शक’ शब्द मध्य एशिया में रहने वाले विदेशी मूल के शक लोगों से जुड़ा है। इतिहासकारों का मानना है कि शक भारत में आक्रांता के रूप में आए और अपना शासन स्थापित किया। उन्होंने अपने शासन के दौरान भारत की मूल संस्कृतिक विरासत को समाप्त करने एवं धीरे-धीरे भुलाने के उद्देश्य से पूर्व में चले आ रहे “भारतीय संवत” को बदलकर शक संवत की 78 ई. से शुरुआत की। जिन लोगों ने भारतीय मूल संस्कृति को बदलने का प्रयास किया, उन्हीं को प्राथमिकता देते हुए 1957 में भारत सरकार द्वारा शक संवत को अपनाया गया।

विदेशी आक्रांताओं का दबाव या सम्मान….
भारत के भौगोलिक क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर पूर्व में समय-समय पर विदेशी आक्रांताओं का कब्जा रहा है। इस कब्जे के दौरान आक्रांताओं ने भारत की संस्कृति को एक रणनीति के अंतर्गत बदलने के अथक प्रयास किये। कुछ सीमा तक वे सफल भी रहे। 1947 आते-आते देश के अंदर एक ऐसी हीन भावना एवं मानसिकता बन गई, जहां पर हमारी सनातनी संस्कृति और हजारों वर्ष पुरानी परंपराओं को इस तरह प्रस्तुत किया गया कि आने वाली पीढ़ी आक्रांताओं एवं पाश्चात्य विचार और संस्कृति से प्रभावित होने लगी। अंग्रेजों ने देश छोड़ने पर विवश होने के बाद रणनीति के अंतर्गत इस प्रकार से पावर ऑफ ट्रांसफर किया, जिससे पश्चिमी विचारधारा एवं परंपराओं को प्राथमिकता देने वाले उनके विश्वासपात्रों के हाथ में देश की बागडोर आ गई। उन्होंने विशेष आदेशों के अंतर्गत अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को ही ऐसा रूप दिया, कि भारत के विज्ञान, संस्कृति, इतिहास एवं सच्चे स्वतंत्रता सेनानियों को भुलाने का पूरा-पूरा प्रयास किया गया। आने वाली पीढ़ियों को वह इतिहास बताया गया, जो आक्रांताओं का महिमा मंडन एवं भारतीय इतिहास को छोटा दिखाने का काम करता रहा।

समकालीन उपयोग…
आज भी विक्रम संवत का उपयोग भारत के कई भागों में होता है। यह विशेष रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में उपयोग होता है। पंचांगों और कैलेंडरों में विक्रम संवत की तिथियों का उल्लेख होता है, जो विभिन्न त्योहारों और शुभ मुहूर्तों को निर्धारित करने में सहायता करता है। तो क्या कारण रहा कि सांस्कृतिक एवं धार्मिक भावनाओं की अनदेखी करते हुए सरकारी संवत में भारत के आक्रांताओं द्वारा स्थापित शक संवत अपनाया गया? देश के नागरिक एवं सरकारों को भारतीय संस्कृति एवं धार्मिक धरोहर को बचाने के साथ-साथ उसे पुन: स्थापित करने की ओर काम करते हुए आने वाली पीढ़ियों को सम्मान एवं सच्चाई से रूबरू कराना चाहिए।

विक्रम संवत भारत की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण कालगणना प्रणाली है, जिसका इतिहास राजा विक्रमादित्य के समय से जुड़ा हुआ है। यह संवत भारतीय समाज और संस्कृति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। विक्रम संवत का अध्ययन न केवल हमारे प्राचीन इतिहास और परंपराओं को समझने में सहायक है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है।

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ऐतिहासिक कदम
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा विक्रम संवत को आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो राज्य की सांस्कृतिक पहचान और इतिहास के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह निर्णय न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। मध्य प्रदेश सरकार से प्रेरणा लेते हुए भारत की केंद्र सरकार एवं दूसरे प्रदेशों की सरकारों को भी ऐसा निर्णय लेते हुए देश के नागरिकों की भावना का सम्मान करना चाहिए।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *