लोकसभा चुनाव और मुस्लिम वृत्ति
प्रशांत पोळ
लोकसभा चुनाव और मुस्लिम वृत्ति
मराठी में एक प्रख्यात चिंतक और लेखक हुए, डॉ. पु.ग. सहस्त्रबुद्धे। उन्होंने अनेक वैचारिक निबंध लिखे। भारत के परतंत्र रहने के बारे में भी उन्होंने लिखा है।
हिन्दू धर्म में एक अच्छी संत-परंपरा रही है। जहां जहां हिन्दू धर्म का फैलाव हुआ, वहां वहां संत – महंत हुए। इन्होंने समाज प्रबोधन का बहुत बड़ा काम किया है। लोगों से न्याय, नीति, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का आग्रह किया। भगवान की भक्ति की। समाज को सही दिशा में लेकर जाने की यह बयार, अखंड हिन्दुस्तान में सभी जगह बही, ऐसा दिखता है। हमारे समाज का नेतृत्व करने वाले राजा – महाराजाओं ने इस दिशा में चलने का पूरा प्रयास भी किया है। हमने कभी, किसी पर, स्वतः आक्रमण नहीं किया। कोई हिन्दू राजा कभी आक्रांता नहीं रहा। युद्ध में शत्रु पर क्रोध, बर्बरता या वीभत्सता का कोई भी उदाहरण हिन्दू राजा का नहीं मिलता। हम सहिष्णु रहे। आने वाले विदेशियों का स्वागत करते रहे।
धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने वाले हम हिन्दुओं को क्या मिला..?
हमें मिली गुलामी। हमें मिला दारिद्र्य। हमें मिले अत्याचार। हमें मिला अपमान।
हमारा ऐश्वर्य जाता रहा। हमारा स्वातंत्र्य जाता रहा। हमारा सम्मान जाता रहा। हमारी बहू-बेटियां भी जाती रहीं।
इसके ठीक विपरीत, हम पर आक्रमण करने वालों ने क्या किया..?
उन्होंने अनेक गलत, अनैतिक रास्ते अपनाए। छल, कपट, बलात्कार का सहारा लिया। क्रूरता की पराकाष्ठा की। युद्ध के सारे नियम तोड़ दिए। कन्वर्जन किया। बहू-बेटियों का शील भंग किया।
उन मुस्लिम आक्रांताओं को, उन अंग्रेज / पोर्तुगीज / फ्रेंच आक्रांताओं को क्या मिला..?
उनको मिला ऐश्वर्य। उनको मिला स्वातंत्र्य। उनको मिली सत्ता। उनको मिला उपभोग।
सारे पाप करने के बाद भी मुस्लिम और ईसाई आक्रांताओं को यह सब मिला और सारे पुण्य करने के बाद भी हमें गुलामी और दारिद्र्य मिला।
ऐसा क्यों..?
मुस्लिम और ईसाई आक्रांताओं ने केवल अपने रिलिजन का अनुसरण किया और हम हिन्दू, अपने धर्म का ‘मूल तत्व’ ही भूल गए..।
वह है – संघ धर्म। समष्टि का धर्म। जिसका अगला भाग है – ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’। हम यही भूल गए।
इस लोकसभा चुनाव में भी यही बात सामने आई। हमने अयोध्या में साढ़े पांच सौ वर्षों के बाद भगवान श्री रामलला को पुनर्स्थापित किया। उनका भव्य मंदिर बनाया। काशी में त्रिलोक के स्वामी, भगवान शंकर के विश्वेश्वर मंदिर को अतिक्रमण से मुक्त किया। सुंदर बनाया। उज्जैन में महाकाल लोक संवारा। हमने ईश्वर की मनोभाव से आराधना की। संतों का सम्मान किया। बुजुर्गों को तीर्थ स्थलों की यात्रा करवाई। चुनाव में राष्ट्रीय सोच के लोग जीतकर आएं, इसलिए मंदिरों में पूजा-अर्चना की। हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने पार्वती देवी की तपस्थली, कन्याकुमारी में अहोरात्र आराधना की। तप किया।
हमको क्या मिला..?
विजय मिली। किंतु अपेक्षा अनुसार नहीं।
हमारे विरोध में जो लड़े, वे आपस में भी लड़े। गलत व्यक्तियों के साथ लड़े। किंतु क्या उत्तर प्रदेश, क्या बंगाल, क्या महाराष्ट्र… हमें हमारी पिछली स्थिति से भी पीछे हटना पड़ा।
क्या कारण रहा ?
पराभव के अनेक कारण रहे। किंतु महत्व का था – ‘उन्होंने’ समष्टि धर्म निभाया। हमने नहीं। मुसलमानों का ‘वोटिंग पैटर्न’ यह एक प्रमुख कारण रहा..!
एक बात इस चुनाव से उभर कर आई है। इस देश का मुसलमान क्या कहना चाहता है, यह इस चुनाव से बहुत कुछ स्पष्ट हो रहा है और यह देश के भविष्य के लिए अत्यंत गंभीर विषय है।
इसी पोस्ट के साथ, इंडिया टीवी के रजत शर्मा का एक वीडियो दिया है। इसमें रजत शर्मा ने एक मौलवी का वीडियो दिखाया है, जिसमें वह मौलवी अत्यंत स्पष्टता के साथ, बिना लाग-लपेट के कह रहा है, “हमें कुछ भी करके, किसी भी हालात में, बीजेपी को हराना है। चाहे सामने मुस्लिम उम्मीदवार क्यों न हो, किंतु बीजेपी को हराने की उसकी क्षमता नहीं है, तो उसे भी वोट ना दें, जो प्रत्याशी बीजेपी को हरा सकता है, उसी को वोट देना है।
और गंभीर बात यह है कि देश भर के मुसलमानों ने, जहां-जहां भी बन सका, वहां ऐसा किया भी।
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र का धुले लोकसभा क्षेत्र लेते हैं। यहां भाजपा के प्रत्याशी थे, डॉक्टर सुभाष भामरे, जो 2019 में 2 लाख से भी अधिक मतों से विजयी हुए थे। कांग्रेस से शोभा बच्छाव प्रत्याशी थीं। धुले लोकसभा में 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से पांच विधानसभा क्षेत्रों में, भाजपा ने 1,90,000 से अधिक मतों की लीड ली थी। किंतु अकेले मालेगांव (मध्य) ने कांग्रेस को 1,94,000 की लीड दी और भाजपा के डॉक्टर सुभाष भामरे मात्र 3,831 वोटों से चुनाव हार गए। मालेगांव (मध्य) यह पूर्णत: मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहां का विधायक, ओवैसी के एमआईएम पार्टी का है। यहां कुल 2,05,000 वोट डाले गए, जिनमें से 1,98,869 वोट कांग्रेस के खाते में गए।
मजेदार बात यह है कि इस चुनाव में धुले लोकसभा क्षेत्र से डॉ. प्रकाश आंबेडकर के ‘वंचित बहुजन समाज अघाडी’ के जहूर अहमद मोहम्मद भी चुनाव मैदान में थे। किंतु उन्हें मुस्लिम वोटर्स ने सिरे से नकार दिया। उन्हें 5000 वोट भी नहीं मिले। रणनीति के अंतर्गत मुसलमानों ने अपने सारे वोट डॉ. शोभा बच्छाव को दिए और उनकी जीत सुनिश्चित की।
अकेला धुले लोकसभा क्षेत्र अपवाद नहीं है। लगभग सभी जगह ऐसा हुआ है।
महाराष्ट्र में मुसलमान सबसे अधिक ‘ठाकरे’ नाम से द्वेष करते थे, तिरस्कार करते थे, खौफ खाते थे। सन 1992 के दंगों के बाद मुसलमानों के लिए सबसे ज्यादा तिरस्करणीय व्यक्ति ‘बालासाहब ठाकरे’ थे। अभी तक, मुस्लिम शिवसेना से चिढ़ते थे। किंतु इस लोकसभा में चमत्कार हुआ। मुसलमानों ने अपने सारे वोट, जहां-जहां उद्धव ठाकरे की शिवसेना के प्रत्याशी थे, वहां उनको ‘ट्रांसफर’ किये। अर्थात उस मौलवी के आदेशों का पूर्णत: पालन किया गया। कारण एक ही था। उन्हें लगता था, उद्धव ठाकरे के प्रतियाशी, बीजेपी को हरा सकते हैं। मुंबई में मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भी उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार आगे रहे।
महाराष्ट्र में मुसलमानों की रणनीति एक ही लोकसभा क्षेत्र में गलत साबित हुई। वह है – संभाजी नगर (पुराना नाम – औरंगाबाद)। यहां 2019 में ओवैसी की एमआईएम पार्टी के इम्तियाज जलील चुनकर आए थे। उन्होंने भाजपा और अविभाजित शिवसेना के चंद्रकांत खैरे को हराया था। इसलिए इस बार मुसलमानों को मामला कुछ सरल लगा। उनका अनुमान था, यहां शिवसेना (शिंदे) और शिवसेना (ठाकरे) में वोटों का बंटवारा होगा और एमआईएम के इम्तियाज जलील आसानी से चुनकर आएंगे। इसलिए महाराष्ट्र का यह एकमात्र लोकसभा क्षेत्र है, जहां मुसलमानों ने अपने वोट उद्धव ठाकरे की शिवसेना को ट्रांसफर नहीं किये। किंतु यहां के हिन्दू समुदाय में, इम्तियाज जलील का जीत के आना चुभ रहा था। इसलिए बड़ी संख्या में हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण, शिंदे की शिवसेना के संदीपान भुमरे के पक्ष में हुआ और वह 1,35,000 मतों से चुनाव जीत गए।
मुसलमानों के इस रणनीतिक मतदान का एक और उदाहरण है, पश्चिम बंगाल की बहरामपुर लोकसभा सीट। यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अर्थात यहां 52% मुस्लिम वोटर हैं। सन 1999 से यहां पर कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी चुनाव जीतते आए हैं। वे लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता और भाजपा के प्रखर आलोचक रहे हैं। फिर भी, इस बार रणनीति के अंतर्गत, तृणमूल कांग्रेस ने, गुजरात के यूसुफ पठान को यहां से चुनाव लड़वाया। ‘मां, माटी, मानुष’ का नारा देने वाली तृणमूल कांग्रेस ने एक ऐसे प्रत्याशी को खड़ा किया, जिसे बंगाली का ‘ब’ भी नहीं आता। किंतु मुस्लिम समुदाय की रणनीति एकदम स्पष्ट थी। कोई संभ्रम नहीं। कोई कंफ्यूजन नहीं। किंतु-परंतु भी नहीं। उन्हें इस बार बहरामपुर से मुस्लिम प्रत्याशी चुनकर लाना था, वो लाए। वो भी, इतने वर्ष मुसलमानों की तरफदारी करते हुए, उनका तुष्टीकरण करते हुए राजनीति करने वाले अधीर रंजन चौधरी को हराकर।
ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं। किंतु पूरे देश में कमोबेश यही पैटर्न रहा। अनेक लोकसभा सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी आपस में भिड़े। किंतु मुस्लिम वोटर की मानसिकता स्पष्ट थी। संभाजी नगर जैसे एक – दो अपवाद छोड़ दें, तो वह जानता था कि कौन सा प्रत्याशी भाजपा को हरा सकता है। उसने वोट उसी को दिया।
अब यहां एक प्रश्न का निर्माण होता है। भाजपा का ऐसा विरोध क्यों..? भाजपा को हराने के लिए एड़ी चोटी एक क्यों की गई..?
उत्तर स्पष्ट है। भाजपा शक्तिशाली राजनीतिक दल है, और शायद एकमात्र दल है, जो मुसलमानों का तुष्टिकरण नहीं करता।
ये सारे प्रसंग, भारत के विभाजन के दिनों का स्मरण करा रहे हैं, जब मुस्लिम समुदाय एक होकर कांग्रेस को हराता था, और कांग्रेस को फिर भी लगता था, कि यह मुस्लिम समुदाय हमारे साथ है।
कहीं ऐसी गलतफहमी का शिकार भाजपा भी ना हो जाए।