क्यों जिस डाल पर बैठा है, उसी को काट रहा है तू?
डॉ. नीलप्रभा नाहर
क्यों जिस डाल पर बैठा है, उसी को काट रहा है तू?
ऐ मनुज, मत भूल
खाद्य शृंखला की एक
कड़ी है तू
अन्य प्राणियों की भाँति
मात्र प्राणी है तू।
क्यों मदमस्त हो
पर्वतों को काट रहा है?
बैठा है जिस डाल पर
क्यों उसी को काट रहा है?
बुद्धि का अभिमान न कर
मूर्ख!
अपने ही हाथों
अपनी मौत का सामान बाँट
रहा है तू।
चरने वाला
चरता है, घास को
उखाड़ता नहीं
समझदार हाथी
अपने ही
जंगल को उजाड़ता नहीं
शेर भी खाता
क्षुधा हो जितनी ही
जलचर कोई
जलाशय को सुखाता नहीं
तेरी बुद्धि को क्या कहूँ
अपनी ही साँसों में
ज़हर घोलता जा रहा है तू।
टिका है वजूद जिस पर
उस नींव को ही
हिला रहा है तू
जानवर भी भोगों को
भोगते नहीं
मिलन करते हैं
करने को सृजन
यूँ व्यर्थ भी मिलते नहीं
फिर तू क्यों प्रकृति के नियम तोड़ रहा है?
क्यों लगता है तुझे
तू विशेष है
याद रख, यह सृष्टि
विधाता ने बनायी है
जिसके अपने नियम हैं
क्यों उन्हें तोड़ कर
कांटे बो रहा है
और जीवन को नहीं
अपने विनाश को
बुला रहा है।
भोगों को भोगने वाले
भोग तुझे भोग रहे हैं
सुख के साधन
तुझे दुखों से तोल रहे हैं
सृष्टि से न खेल यूँ
कि जड़ मूल से
उखड़ जाएगा तू
संभल जा, संभल जा
नहीं तो
जीवाश्म में बदल
जाएगा तू।
Excellent