मुसलमानों को आरक्षण क्यों चाहिए?
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
मुसलमानों को आरक्षण क्यों चाहिए?
मुसलमानों को आरक्षण क्यों चाहिए? आधार क्या है? भारत के संविधान निर्माताओं ने मुसलमानों के आरक्षण की व्यवस्था क्यों नहीं की? क्या उनको नहीं पता था कि मुसलमान गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं? और अगर मुसलमानों को यह लगता है कि संविधान निर्माताओं को नहीं पता था, तो वो उस समय नए नए बने पाकिस्तान में क्यों नहीं गए? जहां उनको लगता था कि वो हिन्दुओं द्वारा किए जा रहे कथित अत्याचार और सह अस्तित्व के सिद्धांत से अलग होकर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते थे और अपनी पीढ़ियों को सुरक्षित रख सकते थे।
मुस्लिम जनसंख्या का स्थानांतरण तो भारत के विभाजन के बाद लगभग 25 वर्ष बाद तक होता रहा। तब इस समाज को यह क्यों नहीं लगा कि भारत में उन्हें वह सुविधाएं नहीं मिल रहीं जो यहां के पिछडे़ और वंचित वर्ग को मिल रही हैं। इस देश में उनके और उनकी संतानों के लिए विकास के उतने अवसर नहीं हैं, जितने कि पाकिस्तान या बंगलादेश में होंगे, जहां उनके मजहब को सुरक्षित रखते हुए वे अपना और अपनी संतति का विकास कर पायेंगे।
दरअसल, सारी कहानी वोट बैंक की है। जो राजनीतिक दल मुस्लिम समुदाय को आरक्षण देने की बात कर रहे हैं, उनको सिर्फ सत्ता में वापसी चाहिए। उनको मुस्लिम समुदाय के विकास और समृद्धशील होने से कोई सरोकार नहीं है। हालांकि जितने भी मुस्लिम चिंतक और विचारक हैं, वो मुस्लिमों के वोट बैंक होने की अवधारणा को नकारते हैं और इसके लिए समुदाय के मतदाता के अनुपात में राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करते हैं। लेकिन सत्य यही है कि स्वाधीनता के 75 वर्ष बाद भी विभिन्न इस्लामी संस्थाएं अपने फतवे जारी करती हैं और मस्जिदों में बैठे मौलवी और उलेमा उन फतवों को लागू करने पर जोर देते हैं।
यह सब आम मुस्लिम मतदाता को मानसिक गुलामी में बांधे रखने के प्रयास के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण मदरसा शिक्षा व्यवस्था है जो मुस्लिम समाज के बड़े वर्ग को शेष समाज से ना केवल समरस होने से रोकता है अपितु अपनी अलग पहचान को बनाए रखने और अलगाववाद की शिक्षा भी देता है। इन मौलवियों और उलेमाओं द्वारा दी जा रही यह शिक्षा ही इस समाज के पिछडे़पन का सबसे बड़ा कारण है। सच यह है कि जिन लोगों को यह वर्ग हिन्दू समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव से छुटकारा दिलाने के नाम पर मुसलमान बना लेता है, उन लोगों को इस्लाम जगत इस भेदभाव से छुटकारा नहीं दिला पाता। जातिगत भेदभाव वहां पर भी जारी है। इसलिए वो लोग वापस अपने मूल धर्म में ना लौट जाएं, इसलिए मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ दिलाने की बात कही जा रही है।
कांग्रेस के साथ साथ अन्य दल और राजनेता भी मुस्लिम वोटों के लालच में मुस्लिमों को आरक्षण दिए जाने की वकालत करने में लगे हैं। ये वही राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आते ही मंदिरों की आरती, कांवड यात्रा या कोई धार्मिक रथ यात्रा को तो रोकने का दुस्साहस करते हैं लेकिन देश की संपत्तियों पर पहला अधिकार मुसलमानों का बताने से नहीं चूकते।
2024 के आम चुनावों में एक बार फिर मुसलमानों को आरक्षण देने की वकालत सारा विपक्ष कर रहा है। संविधान के अनुसार तो मजहब के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता, लेकिन कांग्रेस ने चोर दरवाजे से मुस्लिमों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर दिया। इससे दो बातें हुईं, एक तो संविधान की मूल भावना को वोटों के लालच में मार दिया गया और दूसरा जो हिन्दू समाज में अन्य पिछड़ा वर्ग में जो जातियां हैं, उनकी हिस्सेदारी पर भी डाका डाला गया।
यह बहुत खतरनाक और भारत को विघटित करने का षड्यंत्र है। संविधान मजहब के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता,?लेकिन वो राज्य सरकारों को इस बात की अनुमति अवश्य देता है कि राज्य सरकारें किन किन जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करें। संविधान के इसी प्रावधान की आड़ में गैर भाजपाई सरकारें मुस्लिम समाज को आरक्षण प्रदान कर रही हैं।
गैर भाजपाई सरकारों की यह हरकत ना केवल हिन्दू समाज को तोड़ने वाली है अपितु संविधान की मूल भावना का अपमान भी है। संविधान निर्माताओं ने मजहबी आधार पर आरक्षण का प्रावधान इसलिए नहीं रखा था, जिससे भारत में रिलीजियस कन्वर्जन पर ना केवल रोक लगे अपितु इसको बढ़ावा देने वाले संगठनों के भी हौंसले पस्त हों। रिलीजियस कन्वर्जन में लगे संगठनों को यह प्रावधान ही हिन्दू समाज के कन्वर्जन में सबसे बड़ी रुकावट लग रही थी, इसलिए चर्च और इस्लामी संगठनों और उनके कथित बुद्धिजीवियों द्वारा मानवीयता की आड़ लेकर मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग की जा रही है।
तो आवश्यकता इस बात की है कि मुस्लिमों को आरक्षण देने की मांग का हर स्तर पर प्रतिकार किया जाए। वरना ना केवल भारत में हिन्दुत्व कमजोर होगा अपितु भारत में रहने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रति भी अन्याय ही होगा।