परदेश, प्रदेश और विदेश में अंतर

कमलेश कमल
परदेश, प्रदेश और विदेश में अंतर
परदेश शब्द बना है– पर और देश के संयोग से (संधि से नहीं)। ‘पर’ का अर्थ है, ग़ैर या दूसरा; जबकि ‘देश’ का अर्थ है– स्थान। कोई भी दूसरा स्थान परदेश हो सकता है। ‘परदेश जाके परदेशिया, भूल न जाना पिया’ जैसे गीत(गाना नहीं) या ‘परदेशी बाबू’ जैसे बोल में परदेश इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। यहाँ ‘परदेशी’ विशेषण है। कोई अपने भी राज्य में परदेशी हो सकता है या विदेश में भी अगर वह उस स्थान से परिचित न हो तो।
प्रदेश : प्रदेश का अर्थ है, विशेष स्थान। ‘प्र’ उपसर्ग का अर्थ है ‘विशेष’, जबकि देश स्थान का वाचक शब्द है। राजनीति-विज्ञान के अनुसार प्रदेश राज्य का समार्थक शब्द है। यह विशेष स्थान है; क्योंकि इसमें निश्चित भूभाग, जनसंख्या जैसे अवयव होते हैं। यदि आप अपने प्रदेश को छोड़कर भारत के किसी अन्य प्रदेश में बसते हैं तो आपके जन्मस्थान के लोग आपको परदेशी तो कह सकते हैं, विदेशी नहीं। ऐसे जलवायु आदि की दृष्टि से भी प्रदेशों के विभाजन हो सकते हैं।
विदेश : विदेश का अर्थ है, दूसरा देश। ‘वि’ उपसर्ग से यहाँ दूसरा, विपरीत, बरअक्स(इसे बरक्स लिखना अशुद्ध है।) इत्यादि अर्थ का बोधन हो रहा है। कोई भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य जाए तो वह ‘परदेशी’ हो सकता है, विदेशी नहीं। स्वदेशी का विलोम शब्द ‘विदेशी’ है, जो विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है। विदेश जाने के लिए देश की परिधि से बाहर जाना अनिवार्य है। जानना चाहिए कि देश शब्द ‘दिश्’ धातु से व्युत्पन्न है। इसी से दिशा, देशना, उद्देश्य इत्यादि शब्दों की निर्मिति है।