दरगाह और कब्रिस्तान वर्शिप एक्ट 1991 के अंतर्गत नहीं आते, सुनवायी जारी रहनी चाहिए

दरगाह और कब्रिस्तान वर्शिप एक्ट 1991 के अंतर्गत नहीं आते, सुनवायी जारी रहनी चाहिए

दरगाह और कब्रिस्तान वर्शिप एक्ट 1991 के अंतर्गत नहीं आते, सुनवायी जारी रहनी चाहिएदरगाह और कब्रिस्तान वर्शिप एक्ट 1991 के अंतर्गत नहीं आते, सुनवायी जारी रहनी चाहिए

अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे की याचिका कोर्ट में दायर होने के बाद से ही दरगाह कमेटी समेत मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं। एक ओर दरगाह कमेटी ने याचिका खारिज करने की कोर्ट में अपील दायर की है, वहीं दूसरी ओर विष्णु गुप्ता को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं।

विष्णु गुप्ता का कहना है, दरगाह और कब्रिस्तान वर्शिप एक्ट 1991 के अंतर्गत नहीं आते, सुनवायी जारी रहनी चाहिए। शुक्रवार को हुई सुनवायी के बाद अब अगली सुनवायी एक मार्च को होगी। अपनी याचिका में विष्णु गुप्ता ने दावा किया है कि दरगाह का निर्माण प्राचीन हिन्दू मंदिर को तोड़कर किया गया है। उन्होंने मंदिर होने के ऐतिहासिक साक्ष्य भी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए।

वहीं दरगाह कमेटी का कहना है कि विष्णु गुप्ता द्वारा प्रस्तुत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। शुक्रवार को कोर्ट ने विष्णु गुप्ता से उत्तर मांगा। गुप्ता ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए याचिका पर कायम रहने की बात कही। इस पर दरगाह कमेटी ने उत्तर देने के लिए समय मांगा, जिसके बाद अगली सुनवाई की दिनांक 1 मार्च तय की गई।

विष्णु गुप्ता ने दरगाह में हिन्दू मंदिर होने के तीन आधार दिए हैं

1. दरवाजों की नक्काशी और संरचना: उन्होंने दावा किया कि दरगाह के बुलंद दरवाजों की नक्काशी हिन्दू मंदिरों के दरवाजों से मेल खाती है।

2. ऊपरी संरचना: दरगाह के गुंबद और ऊपरी भाग को देखकर पता लगाया जा सकता है कि यह किसी प्राचीन हिन्दू मंदिर का अवशेष है।

3. पानी और झरने: जहां शिव मंदिर होते हैं, वहां झरने और पानी के स्रोत प्राचीन परंपरा का भाग होते हैं। गुप्ता का कहना है कि दरगाह में भी यह विशेषता उपस्थित है।

गुप्ता ने कोर्ट में 1911 में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा द्वारा लिखी गई पुस्तक “अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव” का संदर्भ दिया। इसमें दावा किया गया है कि दरगाह का निर्माण एक मंदिर के मलबे पर किया गया है। उन्होंने 1250 ईस्वी की संस्कृत पुस्तक “पृथ्वीराज विजय” का अनुवाद प्रस्तुत करने का भी दावा किया, जिसमें अजमेर के इतिहास का वर्णन है।

विष्णु गुप्ता ने कहा कि वर्शिप एक्ट 1991 केवल मस्जिद, मंदिर, गिरजाघर और गुरुद्वारों पर लागू होता है। दरगाहों और कब्रिस्तानों पर यह कानून लागू नहीं होता। उन्होंने कहा कि दरगाह का ASI द्वारा सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके

इस प्रकरण में विभिन्न पक्षकार बनने के लिए अब तक 11 अर्जियां दाखिल की गई हैं। शुक्रवार को 6 नई अर्जियां दर्ज हुईं, जिनमें अजमेर और टोंक के स्थानीय व्यक्तियों ने अपने तर्क प्रस्तुत किए।

मामले की सुनवाई अब 1 मार्च को होगी। इसमें दरगाह कमेटी और याचिकाकर्ता दोनों अपने-अपने तर्क प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही, ASI सर्वेक्षण की मांग और रिलीजियस स्थलों के अधिकारों को लेकर भी चर्चा होने की संभावना है।

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