दिल्ली के अकीला रेस्टोरेंट ने एक महिला को साड़ी में प्रवेश देने से किया इन्कार
साड़ी का नाम आते ही भारतीय नारी का पूरा व्यक्तित्व नजरों के सामने उभर आता है। सनातन काल से साड़ी भारतीय महिला का मुख्य परिधान रही है। लेकिन अब प्रोग्रेसिव कहे जाने वाले कुछ लोगों को भारतीयता की प्रतीक साड़ी से भी तकलीफ होने लगी है। हैरानी की बात है सम्भ्रांत कही जाने वाली देश की राजधानी दिल्ली के खेल गॉंव, अंसल प्लाजा स्थित अकीला रेस्टोरेंट ने जर्नलिस्ट अनीता चौधरी को रेस्टोरेंट में प्रवेश देने से मना कर दिया। रेस्टोरेंट स्टाफ का तर्क था कि यहॉं केवल स्मार्ट आउटफिट्स में ही महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं और उनकी नजर में साड़ी स्मार्ट आउटफिट नहीं है। अनीता चौधरी अकीला रेस्टोरेंट में अपनी बेटी के जन्मदिन पर परिवार सहित डिनर करने गई थीं। घटना से आहत अनीता चौधरी ने वापस आने के बाद एक वीडियो के माध्यम से सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा व्यक्त की और कई सवाल भी उठाए। उनका कहना है कि मुझे साड़ी पसंद है, मेरी मॉं भी साड़ी पहनती हैं और मेरी बेटियॉं भी। कहने की आवश्यकता नहीं, साड़ी एक भव्य, राजसी और शालीन परिधान है। वे प्रश्न करती हैं कि क्या कोई मुझे बताएगा कि स्मार्ट आउटफिट्स की सूची में कौन से कपड़े आते हैं?
समाज सेविका दीपा खंडेलवाल अनीता चौधरी की पीड़ा को सही ठहराती हुई कहती हैं, इस देश में जहॉं हर रोज पीएम को गाली देने से लेकर, गोमांस खाने और बिकनी में पार्टी करने की स्वतंत्रता पर बहस होती हो और कुछ लोग उनकी वकालत भी करते हों तो ऐसे में अनीता चौधरी को साड़ी पहनने पर अपमानित करना आहत तो करता है। साड़ी हमारी शान है, वह भारतीयता की पहचान है, वह बैकवर्ड कैसे हो गई? साड़ी तो देश ही नहीं विदेशों और विदेशियों में भी लोकप्रिय है।
यूके में रह रही डॉक्टर पायल कहती हैं कि साड़ी में महिला का रूप और लावण्य तो निखरता ही है, उसके व्यक्तित्व में भव्यता भी जुड़ जाती है। यही कारण है कि साड़ी भारतीय महिलाओं को ही नहीं विदेशी महिलाओं को भी लुभाती है। भारत आईं विदेशी मेहमान भी साड़ी पहनकर भारतीयता का एहसास करती हैं।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ की पत्नी कोबीता को बनारसी साड़ियां बहुत पसंद हैं। पिछली बार जब वे भारत आई थीं तो तनछुई और कढ़वा बार्डर वाली कई साड़ियां खरीद कर ले गई थीं।
पूर्व ब्रिटिश पीएम थेरेसा का साड़ी प्रेम भी किसी से छिपा नहीं। 2016 में जब वे भारत आई थीं तो प्राचीन श्री सोमेश्वर मंदिर साड़ी पहनकर गई थीं। 2010 में जब वह प्रधानमंत्री नहीं बल्कि गृह सचिव थीं, तब भी एक अवॉर्ड फंक्शन में उन्होंने साड़ी पहनी थी।
रूस में तो साड़ी की लोकप्रियता का कोई जवाब ही नहीं। ये उदाहरण उन लोगों के मुंह पर तमाचा हैं जो भारतीय संस्कृति को हीन बताते हैं और पाश्चात्य सभ्यता की नकल करते हैं।जबकि पश्चिमी देश चाहे भारतीय परिधान साड़ी और लहंगे हों, संयुक्त परिवार हों या योग और यहॉं का आध्यात्म, सबके मुरीद हैं।
आश्चर्य की बात है कि देश की राजधानी दिल्ली में तथाकथित प्रोग्रेसिव व एडवांस कहे जाने वाले कुछ लोगों की नजरों में हिन्दी की तरह ही साड़ी को भी दोयम दर्जा ही प्राप्त है।