अभिव्यक्ति के नाम पर हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार कब तक?

अभिव्यक्ति के नाम पर हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार कब तक?

कौशल अरोड़ा

अभिव्यक्ति के नाम पर हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार कब तक?अभिव्यक्ति के नाम पर हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार कब तक?

मनोरंजन जगत में लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना देश में एक आम चलन सा बन गया है। यह चलन समाज के लिए अत्यंत घातक है। मनोरंजन में नयापन देने के लिए, उदारता को पथ भ्रमित करके चित्रित करने से देश, धर्म और समाज का अनादर करना इस मानसिकता और इस वर्ग की सोच बन चुका है। सामाजिक मान्यताओं को कुरीतियों का नाम देकर देश को फूहड़ संस्कृति की ओर ले जाना, उदारता के नाम पर समाज की प्रथाओं, मर्यादाओं से खिलवाड़ करना इनका एक मात्र लक्ष्य बन चुका है।

बॉलीवुड सिनेमा में ऐसी अनेकों फ़िल्में हैं जो प्रसारित होने से पूर्व ही धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप झेल चुकी हैं। हाल ही में बड़े बजट की फ़िल्म ब्रह्मास्त्र का टेलर निर्देशकों द्वारा प्रसारित किया गया, जिसमें कलाकार रणबीर कपूर मन्दिर परिसर में जूतों के साथ दिखाए गए। इतना ही नहीं हिन्दू देवी देवताओं को भी आपत्तिजनक रूप में दिखाया गया। आमिर खान की फ़िल्म पीके में भगवान शिव का मज़ाक उड़ाया गया। और अब 2 जुलाई, 2022 को भारतीय फ़िल्म निर्माता लीना मणिमेकलाई ने अपनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘काली’ के पोस्टर में हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। इस पोस्टर में अभिनेत्री मां काली के वेश में सिगरेट पीती दिखाई दे रही है। उसके एक हाथ में त्रिशूल है, दूसरे में LGBTQ समुदाय का झण्डा है।

वहीं दिलीप मंडल जैसे वामपंथी, जो देवी देवताओं को हर सांस के साथ कोसते हैं। वह इस फ़िल्म व इसकी रचनाकार के पक्ष में खड़े हैं। ऐसा नहीं की ये नास्तिक हैं, बल्कि ऐसे लोग उस समूह को शक्ति प्रदान करते हैं जो हिन्दू आराध्यों को मात्र कला के ऑब्जेक्ट के रूप में देखते हैं और बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करने को रचनात्मक स्वतन्त्रता (Creative Liberty) कहते हैं। इनके ऐसे अनेकों ट्वीट आसानी से देखने को मिल जायेंगे। फिर आप इनका विरोध करके तो देखिए। पूरा लिबरल गैंग आपके पीछे पड़ जायेगा। वैसे विवादों में रहना और विषयों को विवादित रूप में उदारता के साथ प्रकट करना, वामपंथियों की खूबी है।

काली की रचनाकारा लीना इसी विचार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ा रही हैं। इसी कारण अवॉर्ड वापसी गिरोह इनके लेखों, रचनाओं, फ़िल्मों, नारीवाद, एलजीबीटी के जीवन पर इनके कार्यों आदि का समर्थन करता है। दिलीप मंडल ही नहीं, हाल ही में चर्चा में आए ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबेर और प्रतीक सिन्हा जैसे लोग भी इनके समर्थक हैं। लीना  स्वयं  भारतीयता और भारत को अपमानित करने वाले वरवर राव, नताशा नरवाली, देवांगन कलिता, शरजीह इमाम, गौतम नवलखा, संजीव भट्ट, सुधा भारद्वाज, उमर खालिद, इशरत जहां, दिशा रवि, तीस्ता सीतलवाड़ आदि के विरुद्ध पुलिस केस का विरोध, सोशल मीडिया पर व कुछ अन्य मंचों पर कर चुकी हैं। लीना तमिल फ़िल्म निर्देशक सुसी गणेशन पर #metoo का केस दर्ज करा चुकी हैं और भारत सरकार पर फासीवादी (fascist) होने का आरोप लगा चुकी हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर सजग भारतीय जनमानस ने इस फ़िल्म का विरोध किया है और प्रसारण पर रोक की मांग की है।भारतीय उच्चायोग ने कनाडा में विरोध जताते हुए बयान जारी किया है। भारत में भी धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में फिल्म निर्माता व टीम के विरुद्ध प्राथमिकियां दर्ज हुई हैं। हिन्दू संस्कृति का गला घोटने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

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