राहुल का खून अभी सूखा भी नहीं था कि जिहादियों ने सुशील की हत्या कर दी
मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना जैसी पंक्ति लिखने वाले मोहम्मद इकबाल एक मुस्लिम थे। इस्लाम का इतिहास और आज की स्थिति देखने के बाद तो ऐसा लगता है कि या तो इकबाल साहब मजहब को नहीं समझ पाए या फिर ऐसे गीत व उनकी पंक्तियॉं भी जिहाद का ही रूप रहे होंगे। इधर उधर प्रतिदिन हो रही घटनाएं बार बार यह प्रमाणित करती हैं कि मजहब वैर भी सिखाता है और हत्याएं भी कराता है।
दिल्ली के आदर्शनगर में मुस्लिम लड़की से प्रेम के चलते हुई राहुल की हत्या को लोग भुला भी नहीं पाए थे कि उसी मुहल्ले में सौ मीटर दूर तीन भाइयों पर इस्लामिक जिहादियों ने हमला कर किया। जिनमें से एक भाई की मौत हो गई।मामला 27 अक्टूबर का है। बच्ची स्पीकर पर भजन सुन रही थी जो पड़ोसी चांद और उसके परिजनों को नागवार गुजरा। उन्होंने बच्ची के साथ बदसलूकी की। बच्ची ने बड़ों को बताया तो अनिल और सुनील ने चांद व परिजनों को प्रेम से रहने के लिए समझाया। चांद को यह भी रास नहीं आया। चांद व उसके परिवार ने अनिल और उनके परिवार को सबक सिखाने की योजना बना ली।
उस दिन तीसरे भाई सुशील की पत्नी जब घर से थोड़ी दूर बने शौचालय में शौच के लिए जा रही थी तभी चांद, उसके भाई व पिता ने उसके साथ छेड़खानी की। सुशील की पत्नी के चिल्लाने पर सुशील के दोनों भाई अनिल और सुनील बाहर आए। तभी इन लोगों ने ताबड़तोड़ हमला कर दिया। अनिल बताते हैं कि उन पर व उनके भाई पर हमला करने के लिए दो लोगों ने उन्हें पकड़ा हुआ था और उन पर चाकू चलाए जा रहे थे। वे आरोपितों का नाम बताते हुए कहते हैं उन लोगों में चाँद, हसीन, अब्दुल सत्तार, अफाक, शहनवाज, शाजिद को मिला कर कुल 7-8 आदमी थे। सुशील बाहर आया तो उस पर भी चाकुओं से वार किए। जिससे सुशील ने तो वहीं दम तोड़ दिया, अनिल और सुनील गम्भीर रूप से घायल हो गए। वार करने वालों में आरोपी की मॉं भी थी।
सुशील की तीन साल पहले ही शादी हुई थी, उनके एक छोटी बच्ची भी है। जिहादी सोच ने एक सुखी जोड़ी तोड़ दी और मासूम बच्ची के सिर से पिता का साया छीन लिया। पूरा परिवार सदमे में है और हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए प्रदर्शन कर रहा है।