गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा, सर तन से जुदा, आखिर क्यूं?
विवेक भटनागर
वह तो भला हो गोपाल पाठा का अन्यथा बंगाल तो नेहरू ने तब ही पाकिस्तान को दे दिया होता। हमारे लिए पराक्रम का कोई विकल्प नहीं है। स्वयमेव मृगेंद्रता को जगाना ही हमारा कार्य होना चाहिए।
गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा। आखिर क्यूं लगते हैं ऐसे नारे? बंगाल में बेटियों को उठाकर ले गए और पैशाचिक कृत्य किए गए, क्यूं हुआ ऐसा? क्यूं बने बंगाल में चुनावों के बाद प्रत्यक्ष कार्रवाई जैसे हालात? आखिर समस्या कहां पर है? यह कहना कि हम तो आज में जीते हैं और मुसलमानों को भारत से निकाला नहीं जा सकता। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि वे हमें और हमारे आत्मसम्मान को तार-तार करें और हम कौमी एकता का नारा लगाएं। मजहबी भाई चारे में हिन्दू चारे की और मुसलमान भाई की भूमिका अदा करें। आखिर मुसलमान को यह शक्ति आती कहां से है? हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार बना देना भी ठीक नहीं। बंगाल में जो हुआ, वह हिन्दुओं में बसा 1946 का डर और कम्युनिस्टों द्वारा मुसलमानों का गुण्डाकरण करने का परिणाम था।
अराजक भारत या अराजक बंगाल यही वाममार्गियों का उद्देश्य है। इसमें सहयोग करते हैं वोट की राजनीति करने वाले वे दल जो राष्ट्र से अधिक अपनी स्थानीय राजनीति को अधिक महत्व देते हैं। वह ममता बनर्जी हों या के चन्द्रशेखर राव, वे चन्द्राबाबू नायडू हों या अशोक गहलोत। राजनीतिक तुष्टीकरण तो उनमें भी नजर आ जाता है, जिनसे आशा की जाती है कि वे तो कम से कम समता का व्यवहार करेंगे। मुसलमानों को उनके तीन राष्ट्र भारत दिलवा चुका है। पहला अफगानिस्तान, दूसरा पाकिस्तान और तीसरा बांग्लादेश। इसके अलावा चीन के सामने हम तिब्बत को गंवा चुके हैं। हमने अपना पड़ोस क्षत-विक्षत होने दिया और अपने ही देश के हिस्सों को पड़ोसी में बदल लिया। इसे कहते हैं हम पड़ोसी भी बदल सकते हैं। अब हम देश को बदलने की ओर हैं।
कश्मीर में 1989 में कौमी सफाई में हमारे अपने भाई बेघर हो गए, लेकिन उन्हें बेघर करने वाले आज भी शर्म नहीं करते। बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा को वहां की राजनीति का रक्त चरित्र कहकर उसे जायज ठहराने का प्रयास किया जाता है। फिर आफ द कैमरा कहते हैं कि हमारा उद्देश्य भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है। कश्मीर में हम बहुसंख्यक हो चुके हैं और अब बंगाल में तैयारी है। इसके बाद चिकन नेक काटेंगे और भारत को दो हिस्सों में बदल देंगे।
ममता की भाषा हुसैन शहीद सुरहावर्दी जैसी है। वह भारत माता की जय या वंदेमातरम् कहती नहीं देखी जाती हैं। वह बोलती है जय बांग्ला। यह नारा शेख मुजीबुर्ररहमान और हुसैन शहीद सुरहावर्दी ने प्रत्यक्ष कार्रवाई के दौरान हिन्दुओं के सामूहिक कत्ल में लगाया था। वह तो भला हो गोपाल पाठा का अन्यथा बंगाल तो नेहरू ने तब ही पाकिस्तान को दे दिया होता। हमारे लिए पराक्रम का कोई विकल्प नहीं है। स्वयमेव मृगेंद्रता को जगाना ही हमारा कार्य होना चाहिए।
राजनीतिक अधिकारों से अधिक समाज में पकड़ आवश्यक है। गोपाल पाठा ने अगर बंगाल में मुसलमानों को उन्हीं के समान हिंसक रूप नहीं दिखाया होता तो क्या वे रुकते। महिषासुर को मारने के लिए दुर्गा को रणचण्डी बनना ही पड़ता है। स्वभाव में फूलों सी कोमलता और शरीर वज्र से कठोर होने पर ही यह मृगेंद्रता हममें आती है। इस मृगेंद्रता के लिए हमने 70 वर्ष इन्तजार किया है और अब यदि हम और हमारे संगठन कहीं पर भी कमजोरी दिखाते हैं तो यह हमारी गलती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)