जयपुर में 250 स्थानों पर मिल रही हैं गोबर से बनी हर्बल राखियां
जयपुर में 250 स्थानों पर मिल रही हैं गोबर से बनी हर्बल राखियां
जयपुर, 10 अगस्त। गाय का गोबर निर्यात करने के मामले में देशभर में सुर्खियां बटोरने वाले भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ ने अब एक और अनूठी पहल की है। संघ के डॉ. अतुल गुप्ता के प्रयासों से संगठन की महिला इकाई ने प्रवासी भारतीयों को भाई बहन के पवित्र रिश्तों के प्रतीक रक्षाबंधन पर गाय के गोबर से निर्मित बीज वाली हर्बल राखियों के निर्यात का निर्णय लिया। इसके बाद संगठन को अमेरिका से 40 हजार व मॉरिशस से 20 हजार गाय के गोबर से निर्मित राखियों का ऑर्डर मिला है। इसके अलावा जयपुर शहर में एक डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से 250 स्थानों पर गोबर से बनी राखियां बेची जा रही हैं।
संघ की महिला इकाई की राष्ट्रीय अध्यक्ष संगीता गौड़ ने बताया कि इस साल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गाय के गोबर से बनी राखियां आकर्षण का केंद्र रही हैं। श्री पिंजरापोल गोशाला परिसर के सनराइज ऑर्गेनिक पार्क में केवल देशी गाय के गोबर से राखियां बनाई जा रही हैं। इन राखियों से होने वाली आय से गाय की रक्षा के लिए सार्थक प्रयास किए जाएंगे। साथ ही राखियों का निर्माण होने से हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसायटी के महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी रोजगार मिलने से वे आत्मनिर्भर बनेंगी। लोगों को भी चायनीज व पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली राखियों से छुटकारा मिलेगा। इसके अलावा विज्ञान के दृष्टिकोण से हाथ मेंगोबर से बनी राखी बांधने से रेडिएशन से भी सुरक्षा मिलेगी।
केंद्रीय मंत्रियों को बांधीं गाय के गोबर से बनी राखियां
वहीं भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ की महिला इकाई की राष्ट्रीय अध्यक्ष संगीता गौड़ की ओर से केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह राठौड़, अर्जुन राम मेघवाल सहित आर के सिन्हा को गोबर से बनी हर्बल राखियां बांधी गईं। साथ ही आर के सिन्हा द्वारा गोबर से बनी हर्बल राखियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट दी गईं।
राखियों में डाले जा रहे बीज
हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी की सचिव मोनिका गुप्ता ने बताया है कि लोगों में गायों के प्रति श्रद्धा भाव प्रबल हो, इसलिए गोबर और औषधीय बीजों से राखियां बनाई जा रही हैं। इसके गोबर को अच्छी तरह धूप में सुखाया जाता है, जिससे 95 प्रतिशत तक गोबर की गंध चली जाती है। इसके बाद सूखी गोबर के बारीक चूर्ण में जटामासी, गाय का देशी घी, हल्दी सफेद चिकनी मिट्टी व चंदन मिलाया जाता है। सबसे अंत में ग्वार फली का चूर्ण मिलाकर पानी के साथ पूरे मिश्रण को आटे की तरह गूंदा जाता है। ग्वार फली गोंद का काम करती है, जिससे पूरा मिश्रण न केवल सख्त हो जाता है, बल्कि इसकी ऊपरी सतह चिकनी और चमकदार हो जाती है। पानी के लगातार संपर्क में रहने से गोंद व गोबर दोनों घुल जाते हैं। राखी तैयार होने के बाद पीछे की सतह में मोळी का धागा लगा दिया जाता है, जो कलाई में बांधने के काम आता है। पूरी प्रक्रिया में रासायनिक वस्तु का उपयोग नहीं किया जाता है।
मोनिका गुप्ता ने बताया कि ज्यादातर लोग रक्षाबंधन के कुछ देर बाद राखियां उतार कर इधर-उधर फेंक देते हैं। भाई बहन के प्यार की प्रतीक राखी कुछ दिन बाद कचरे में पहुंच जाती हैं। इसी को देखते हुए राखियों में तुलसी, अश्वगंधा, कालमेघ समेत अन्य बीज डाले जा रहे हैं, ताकि लोग राखी को इधर-उधर फेंकने के स्थान पर गमले में या घर की बाड़ी में डालें तो इससे राखी के अंदर भरे गए बीज उग कर भाई बहन के पवित्र रिश्ते की यादें ताजा करेंगे।