पराधीन भारत में स्व का संघर्ष सैकड़ों वर्षों का- जे. नंदकुमार

पराधीन भारत में स्व का संघर्ष सैकड़ों वर्षों का- जे. नंदकुमार

पराधीन भारत में स्व का संघर्ष सैकड़ों वर्षों का- जे. नंदकुमार पराधीन भारत में स्व का संघर्ष सैकड़ों वर्षों का- जे. नंदकुमार 

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी में स्वाधीनता का अमृत महोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व मुख्यवक्ता जे. नंदकुमार ने स्वाधीनता आंदोलन के विशेष संदर्भ में स्व का संघर्ष विषय पर बोलते हुए कहा कि भारत के स्व को लेकर संघर्ष प्राचीन काल से चल रहा है। छत्रपति शिवाजी ने हिंदवी स्वराज का स्वप्न देखा था। यूरोपीय शक्तियों के विरुद्ध भी संघर्ष उस दिन से प्रारम्भ हो गया था, जब उन्होंने भारत पर कुदृष्टि डाली थी, किन्तु इतिहास के पन्नों पर उनका नाम शामिल नहीं है।

यह तीन दिवसीय स्वाधीनता का अमृत महोत्सव शनिवार, 06 अगस्त 2022 को रायपुर स्थित मारुति लाइफ स्टाइल के क्लब पेरेसो में भारतीय इतिहास संकलन समिति छत्तीसगढ़ व भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव बालमुकुंद पाण्डेय, सारस्वत अतिथि भारत में वियतनाम के राजदूत फाम सन्ह चाउ तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव ओम उपाध्याय थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति डॉ. आलोक चक्रवाल ने की। कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम का बीज वक्तव्य ओम  उपाध्याय ने प्रस्तुत किया।

मुख्यवक्ता जे. नंदकुमार ने कहा कि, पूरे विश्व में भारत के जैसा स्वतंत्रता संग्राम कहीं नहीं हुआ। भारत के छोटे छोटे राज्यों के राजाओं ने और जनता ने परकियों का विरोध किया। 1498 में वास्को डी गामा के आने के बाद से ही भारत ने यूरोपीय शक्ति के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर दिया था। 1741 में दक्षिण में त्रावणकोर के मार्तंड वर्मा ने डच शक्ति के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और उन्हें पराजित किया। वेलु चेनम्मा के बाद मरतू भाइयों ने संघर्ष का एक घोषणा पत्र जारी किया, जिसमें जम्बूद्वीप की रक्षा करने का संकल्प लिया गया था। भारत राष्ट्र की कल्पना तब से है, स्व का भाव तब से है। इन  संघर्ष करने वाले महान योद्धाओं को स्मरण करना चाहिए। केवल कुछ ही लोगों ने संघर्ष कर देश को स्वतंत्रता नहीं दिलाई है। उन्होंने कहा कि भारत के स्वाधीनता आंदोलन में स्व के विचार के कई आयाम थे, जैसा कि अरबिंदो ने कहा है, स्वतंत्रता संग्राम केवल राजनीतिक या यांत्रिक नहीं है, यह आध्यात्मिक और नैतिक है। लोकमान्य तिलक ने कहा था, स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार और वे उसे पाकर ही रहेंगे।

वियतनाम के राजदूत फाम सन्ह चाउ ने भारत के स्वाधीनता अमृत महोत्सव पर बधाई दी और कहा- यह वर्ष भारत वियतनाम संबंध के पचास वर्ष पूरे कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि, वियतनाम में फ्रांसीसियों का कब्जा रहा, उस अध्याय में वियतनाम की जनता ने भी बहुत तकलीफें सहीं। भारत के स्वाधीनता के संघर्ष ने वियतनाम को प्रेरित किया। भारत की तरह वियतनाम की संस्कृति भी प्राचीन है। महात्मा गांधी की तरह वियतनाम के नेता हुए प्रेसिडेंट हो ची मिन्ह ने स्वयं को गांधी का शिष्य बताया था।

अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के बालमुकुंद पाण्डेय ने कहा, पराधीन काल में भारत में स्व का भाव कमजोर हो गया था, लेकिन भारत के मूल चिंतन में जानने की संस्कृति है, यहां वेद की परंपरा है। इसलिए स्वाधीनता के संघर्ष में भारत में अपने स्व के जागरण का आंदोलन चला। भारत में 1929 के पहले जो स्वाधीनता आंदोलन चला, उसमें भारत की संस्कृति, आध्यात्म, समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति, भाषा के स्वाभिमान का पुट था। निःस्वार्थ भाव से पुरखों ने शास्त्र और शस्त्र के साथ स्वाधीनता के संघर्ष में अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, उनको स्मरण करने का अवसर है अमृत महोत्सव। ज्ञात- अज्ञात ऐसे गांव गांव में स्वाधीनता आंदोलन में अपना योगदान देने वालों को चिन्हित करने का काम इतिहास संकलन अभियान के द्वारा करने का संकल्प लिया गया है।

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव ने कहा- भारत का स्वाधीनता आंदोलन केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था, भारत के स्व का जागरण था क्योंकि अंग्रेजों ने भारत के इस स्व को कुचलने का प्रयास किया था। स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी में समाधि लगाने के बाद कहते हैं, मां जगदम्बा की सेवा करना और मां भारती की सेवा करने में कोई अंतर नहीं है। आनंद मठ में वर्णित यही भाव वंदे मातरम गीत में है। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

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