चक्रवात और हमारा आपदा प्रबंधन
राम निवास विश्नोई
आपदाएं चाहे प्राकृतिक हों या मानव – निर्मित अनादि काल से ही मानव विकास के साथ-साथ चली आ रही हैं। मानव जाति के उद्भव से पूर्व पृथ्वी पर विचरण करने वाले प्राणी जैसे डायनासोर, मैमथ, साइबेरियन बाघ आदि के विनाश का कारण संभवत कोई आपदा ही रही होगी। इतिहासकार सिंधु घाटी सभ्यता और अन्य प्राचीन मानव सभ्यताओं के रहस्यमयी लोप को भी किसी आपदा का ही परिणाम मानते हैं, जैसे नदी का रास्ता बदलना, अकाल पड़ना अथवा महामारी का आना।
भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक स्थिति इसे दुनिया के सबसे अधिक आपदा संभावित क्षेत्रों में से एक बनाती है । देश के कुल क्षेत्रफल का 59% भाग मध्यम से गंभीर भूकंप खतरे वाले जोन में आता है। कुल भूभाग का 12 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ संभावित क्षेत्र में आता है। भारत की तटीय सीमा 7000 किलोमीटर से भी अधिक लंबी है, जो सुनामी, चक्रवात और अतिवृष्टि संभावित क्षेत्र में आती है। वहीं विशाल थार का रेगिस्तान, कच्छ का रण तथा महाराष्ट्र व कर्नाटक आदि राज्यों का वृष्टिछाया क्षेत्र भीषण अकाल का सामना करता है। इन प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त भारत जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण अपघटन के कारण मानव निर्मित आपदाओं यथा भूस्खलन, महामारी, गैस त्रासदी, दावानल , रासायनिक और तेल रिसाव आदि का भी सामना कर रहा है।
मानव के अस्तित्व का यही चमत्कार है- परिस्थितियों के अनुकूल कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता। मानव इन आपदाओं से निपटने के लिए व्यक्तिश: और साझा प्रयास करता आ रहा है, जिन्हें हम आपदा प्रबंधन का नाम देते हैं। भारत में आपदा प्रबंधन गतिविधियों का संचालन आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के आधार पर किया जाता है। जिसमें समय-समय पर विविध संशोधन भी किए गए। यह अधिनियम गृह मंत्रालय को समस्त आपदा प्रबंधन को संचालित करने के लिए नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करता है तथा राष्ट्रीय राज्य और जिला स्तर पर संस्थाओं की एक व्यवस्थित संरचना बनाता है। राष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण संस्थाओं में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिकरण (एनडीएमए), राष्ट्रीय कार्यकारी समिति, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ)। एनडीएमए आपदा प्रबंधन योजना बनाने एवं दिशा निर्देश देने वाला शीर्ष निकाय है, जबकि कार्यकारी समिति योजना निष्पादन और निगरानी संबंधी कार्य करती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान आपदाओं के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण और क्षमता विकास कार्यक्रमों का संचालन करता है तो राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल आपदाओं के समय विशेषीकृत कार्यवाही करने में सक्षम एक प्रशिक्षित और पेशेवर यूनिट है। इस अधिनियम में राज्य और जिला स्तर के अधिकारियों को भी राष्ट्रीय योजनाओं को लागू करने और स्थानीय योजनाओं को तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रबंधन अधिकरण तथा जिला स्तर पर जिला आपदा प्रबंधन अधिकरण इस हेतु नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करते हैं।
21 वीं शताब्दी के शुरुआती दो दशकों में ही भारत को कुछ प्रमुख आपदाओं का सामना करना पड़ा, जिनमें 2001 का गुजरात भूकंप, 2004 की सुनामी, 2007 की बिहार बाढ़, 2013 की उत्तराखंड बाढ़ और 2020 में आई कोविड-19 महामारी प्रमुख हैं। वर्तमान में भारत कोविड-19 महामारी की दो लहरों का सामना कर चुका है और तीसरी लहर आने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। इसी कोविड-19 काल के दौरान भारत के तटवर्ती इलाकों में दो चक्रवर्ती तूफानों ने भी भयंकर तबाही मचाई। भारत में प्रतिवर्ष उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का आगमन देखा जाता है। वर्ष 2021 में भी अरब सागर में ‘ताऊते’ और बंगाल की खाड़ी में ‘यास’ नामक चक्रवात का प्रभाव तटीय क्षेत्रों में देखा गया। उष्णकटिबंधीय चक्रवात पूर्व मानसून अवधि अर्थात मई – जून और मानसून पश्चात अवधि यानी अक्टूबर-नवंबर के दौरान अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं। इन चक्रवातों के उत्पन्न होने हेतु अधिक तापमान वाली एक बड़ी समुद्री सतह, कोरिओलिस बल की उपस्थिति, पवनों की गति में छोटे बदलाव और निम्न वायुदाब क्षेत्र अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध करवाते हैं। बंगाल की खाड़ी का तापमान अरब सागर की तुलना में अधिक रहता है। इसलिए बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की बारंबारता और भीषणता भी अधिक रहती है। वैश्विक तापन और जलवायु परिवर्तन के कारण अरब सागर की सतह का तापमान भी तीव्र गति से बढ़ रहा है, इसी का परिणाम था चक्रवात ताऊते। इससे प्रभावित क्षेत्रों में केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात के तटीय भाग शामिल हैं। इस तूफान के कारण 100 से अधिक लोगों की जानें गईं। दर्जनों आमजन और मछुआरे लापता हुए। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित राज्यों की समुद्री अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। लाखों हेक्टेयर कृषि क्षेत्र प्रभावित हुआ साथ ही साथ नागरिक आवास, कार्यालय, सड़क इत्यादि आधारभूत ढांचा भी क्षतिग्रस्त हुआ।
वहीं दूसरी ओर बंगाल की खाड़ी से सटे तटीय क्षेत्र को चक्रवर्ती तूफान ‘यास’ ने प्रभावित किया। इस तूफान के कारण उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में लाखों हेक्टर में खड़ी फसल तबाह हो गई। अतिवृष्टि के कारण कृषकों को आवास और पशुधन इत्यादि की दृष्टि से भी भारी नुकसान हुआ। समूचे क्षेत्र का बिजली नेटवर्क भी लगातार आंधी और बारिश के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ। विद्युत आपूर्ति में बाधाओं से कोयला उत्पादन में 35% तक गिरावट आयी। पूर्वी तटीय क्षेत्रों का सड़क व रेलवे नेटवर्क भी क्षतिग्रस्त हो गया जिससे इस क्षेत्र का जनजीवन और अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए।
ताऊते और यास से पूर्व भी निसर्ग, फैनी, एम्फन, भोला इत्यादि चक्रवातों ने भारत में भारी मात्रा में जानमाल की क्षति पहुंचाई। अतः भारत में मानवीय और आर्थिक क्षति को कम करने हेतु ‘चक्रवात आपदा प्रबंधन’ का विशेष महत्व है। इस हेतु राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एक विस्तृत और गहन शमन रणनीति की अनुपालना कर रहा है। एनडीएमए साइक्लोन ख़तरे की मैपिंग कर रहा है ताकि साइक्लोन सुभेद्य क्षेत्रों को पहचाना जा सके। इसके अंतर्गत पवन की गति, वर्षा की मात्रा, बाढ़ की बारंबारता आदि की मैपिंग भी शामिल है। खतरे की मैपिंग के पश्चात भूमि उपयोग की ऐसी योजना बनाई जा रही है कि सुभेद्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निर्माण कार्य नहीं किए जाए। चक्रवात संभावित तटीय क्षेत्रों पर अभियांत्रिकीय मानदंडों के अनुरूप आधारभूत ढांचा विकसित किया जा रहा है। साथ ही पुराने ढांचे की इन मानदंडों के अनुरूप रिट्रोफिटिंग भी की जा रही है। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय आधार पर ‘साइक्लोन शेल्टर’ भी तैयार किए जा रहे हैं ताकि साइक्लोन सुभेद्य समुदाय की समय पर सहायता की जा सके। साइक्लोन के साथ भारी मात्रा में वर्षा होती है, जिससे बाढ़ की स्थितियां बन जाती हैं। अतः चक्रवात प्रबंधन के साथ-साथ बाढ़ प्रबंधन उपाय को भी अपनाया जा रहा है। साइक्लोन संभावित क्षेत्रों मैं सुव्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम विकसित किया जा रहा है। पवन की गति और झंझावातों की प्रबलता कम करने के लिए वनावरण को बढ़ाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त समुद्री तटबंध और कृत्रिम पहाड़ियों के निर्माण संबंधी योजना पर भी काम किया जा रहा है। साथ ही सरकार जन सामान्य को इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूक करने हेतु ‘जन शिक्षण’ अभियान भी चला रही है ताकि इन चक्रवातों से होने वाली क्षति को कम किया जा सके और शीघ्र अनुकूलन को संभव बनाया जा सके।
उक्त दीर्घकालिक उपायों के अतिरिक्त भारत सरकार कुछ साइक्लोन प्रबंधन प्रोजेक्ट भी चला रही है। जैसे एनडीएमए द्वारा विश्व बैंक की सहायता से ‘नेशनल साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट’ 2015 में शुरू किया गया। तटीय क्षेत्रों के समग्र प्रबंधन हेतु वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ‘इंटीग्रेटेड कोस्टल जोन मैनेजमेंट प्रोजेक्ट’ की शुरुआत भी की गई तटीय क्षेत्रों के संधारणीय विकास हेतु ‘कोस्टल रेगुलेशन जोन’ का निर्माण वर्ष 2018 में किया गया। इसके अतिरिक्त भारतीय मौसम विज्ञान विभाग भी विभिन्न गतिविधियां संचालित कर रहा है जैसे चक्रवात से संबंधित भविष्यवाणी और चेतावनी जारी करना। चेतावनी जारी करने हेतु मौसम विभाग ‘कलर कोडिंग’ का सहारा लेता है, जिसके अंतर्गत चक्रवातों की गंभीरता को बढ़ते क्रम में हरे, पीले, नारंगी और लाल रंग में दर्शाया जाता है। ताकि सामान्य जन इन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने हेतु समय पर सचेत हो जाए।
भारतीय आपदा प्रबंधन अवसंरचना का ही परिणाम है कि वर्तमान में चक्रवातों से होने वाली क्षति में भारी गिरावट आई है। एनडीएमए और एनडीआरएफ विश्व स्तरीय शमन, बचाव और अनुकूलन योजनाओं के अंतर्गत कार्य कर रहे हैं। परंतु इन संस्थाओं के विस्तार और क्षमता निर्माण की महती आवश्यकता और संभावनाएं विद्यमान है। भारतीय शासन और जनमानस को इसके लिए एक लंबा सफर तय करना होगा।
(लेखक जय नारायण व्यास विवि, जोधपुर में व्याख्याता व रिसर्च स्कॉलर हैं)