रानी फूलकंवर के साथ आठ हजार वीरांगनाओं ने किया था अग्नि प्रवेश

रानी फूलकंवर के साथ आठ हजार वीरांगनाओं ने किया था अग्नि प्रवेश

23 फरवरी 1568 : चित्तौड़ में तीसरा बड़ा जौहर

रमेश शर्मा

रानी फूलकंवर के साथ आठ हजार वीरांगनाओं ने किया था अग्नि प्रवेशरानी फूलकंवर के साथ आठ हजार वीरांगनाओं ने किया था अग्नि प्रवेश

हमारे पूर्वज भारत राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए केवल युद्ध के मैदान में ही बलिदान नहीं हुए, अपितु हजारों लाखों महिलाओं ने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिये अग्नि में प्रवेश करके भी अपना बलिदान दिया है, जिसे इतिहास में जौहर कहा गया है। ऐसे जौहर यूँ तो भारत के विभिन्न स्थानों पर हुए हैं, परंतु चित्तौड़ के गौरवशाली इतिहास में सर्वाधिक जौहर हुए हैं। जौहर की लंबी शृंखला में तीसरा सबसे बड़ा जौहर 23 फरवरी 1568 में हुआ था, जिसमें रानी फूलकंवर के साथ आठ हजार वीरांगनाओं ने अग्नि में प्रवेश किया था। तब चित्तौड़ में राणा उदय सिंह का शासन था। राणा उदय सिंह इतिहास प्रसिद्ध राणा प्रताप के पिता थे।

चित्तौड़ गढ़ के तीन जौहरों की चर्चा विश्वभर की इतिहास की पुस्तकों में भी है। अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों ने इन पर शोध किए हैं। इन जौहरों में पहला रानी पद्मावती का, दूसरा रानी कर्णावती का और तीसरा प्रमुख जौहर रानी फूलकंवर का है। इन जौहरों की स्मृति में एक मंदिर भी स्थापित है। मंदिर का नाम जौहर ज्योत है, जिसमें प्रतिदिन हजारों पर्यटक इन वीरांगनाओं के लिये अपना शीश झुका कर उन्हैंहें श्रद्धांजलि देते हैं।

इस जौहर की पृष्ठभूमि में मुगल आक्रांता अकबर का हमला था। अकबर चितौड़ को अपने अधीन करना चाहता था। इसके लिये उसने अलग-अलग समय पर अपने चार दूत भेजे। इनमें सबसे पहले आसफखाँ, फिर राजा भगवानदास, फिर राजा बीरबल और अंत में राजा टोडरमल। किन्तु बात न बनी। और मुगल सेना चित्तौड़ पर चढ़ आई। आरंभिक दो आक्रमणों का राणा ने डटकर मुकाबला किया और अकबर की सेनाओं को खाली हाथ लौटना पड़ा। इन हमलों से चित्तौड़ की सैन्य और आर्थिक शक्ति दोनों क्षीण हो गईं। तब अकबर ने अक्टूबर 1567 में तीसरा आक्रमण किया। पर सफलता हाथ न लगी।

इस बार अकबर अधिक सेना लेकर आया था। चित्तौड़ पर घेरा पड़ा रहा, जो लगभग चार महीने चला। लंबी अवधि तक घेरा रहने से किले के भीतर रसद तो छोड़ दीजिये, कुओं में पानी भी सूखने लगा। अंत में राणा उदय सिंह ने सामंतों की एक बैठक बुलाई। सबने राणा से राजकुमारों और कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ गुप्त मार्ग से निकल जाने का आग्रह किया। राजस्थान के इतिहास का विस्तृत अध्ययन करने वाले लेखक श्यामलदास के अनुसार, उदय सिंह ने अपनी सलाहकार परिषद की सलाह पर चित्तौड़ गढ़ किले को छोड़ दिया। वे गुप्त मार्ग से अरावली की पर्वत श्रेणियों की शरण में चले गये। किले में केवल पांच सौ से एक हजार के आसपास सैनिक थे, जबकि अकबर के पास सैनिकों की संख्या बीस हजार थी। कहीं कहीं किले में सैनिकों की संख्या आठ हजार और अकबर के पास एक लाख लिखी है। अब सच जो भी हो, राणा उदय सिंह ने अपने दो वीर सेनानायकों जयमल और पत्ता को सेना की कमान सौंप दी। यह घटना 20 और 21 फरवरी की मध्य रात्रि की है। राणाजी के जाते ही केसरिया पगड़ी बाँध कर साका करने का निर्णय हुआ और क्षत्राणियों ने जौहर करने का निर्णय लिया। रानी फूलकंवर की अगुवाई में 23 -24 फरवरी 1568 की मध्य रात्रि को यह जौहर हुआ। इसमें केवल क्षत्राणियों ने नहीं, अपितु किले के भीतर अन्य स्त्रियां भी सम्मिलित हुईं। इसमें वृद्ध, बच्चे सब शामिल हुए। यह संख्या लगभग आठ हजार थी। इसीलिए इस जौहर को “जन जौहर” कहा गया। आधुनिक कैलेण्डर की गणना के अनुसार यह तिथि 23 फरवरी मानी गई, परंतु जिस रात जौहर हुआ था, वह चैत्र माह के कृष्णपक्ष की एकादशी थी। इसलिये हर वर्ष इसी दिन यहां जौहर मेले की परंपरा आरंभ हुई।

रानी फूलकंवर चितौड़ के शासक उदयसिंह की पुत्रवधु, इतिहास प्रसिद्ध राणा प्रताप की पत्नी थीं और मारवाड़ के शासक मालदेव राठौर की पौत्री थीं। रानी फूलकंवर की अगुवाई में हुए इस जन जौहर में रावल पत्ता चुण्डावत की माता सज्जन कंवर, पत्नियाँ, 5 पुत्रियों व 2 छोटे पुत्रों के साथ राज परिवार की जिन प्रमुख वीरागनाओं ने अपनी आहुति दी, उनमें सज्जन बाई सोनगरी जो रावत पत्ता चुण्डावत की माता, रानी मदालसा बाई कछवाही सहसमल जी की पुत्री, जीवा बाई सोलंकिनी सामन्तसी की पुत्री व रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी, रानी सारदा बाई राठौड़, रानी भगवती बाई  (राजा ईश्वरदास की पुत्री), रानी पद्मावती बाई झाली, रानी बगदी बाई चौहान, रानी रतन बाई राठौड़, रानी बलेसा बाई चौहान, रानी बागड़ेची आशा बाई शामिल थीं।

जौहर के बाद 24 फरवरी को किले के द्वार खोल दिये गये। राजपूत शिरोमणि जयमल और फत्ता सिसोदिया के नेतृत्व में सैनिक भगवा वस्त्र पहने और तुलसी के पत्तों को मुंह में दबा कर शत्रु पर टूट पड़े और शत्रुओं को मारते मारते वीरगति को प्राप्त हुए। शाम तक युद्ध समाप्त हो गया। अकबर राणा उदय सिंह को जीवित पकड़कर अपने अधीन करना चाहता था। युद्ध की समाप्ति के बाद वह किले के भीतर घुसा, जहाँ सन्नाटा था। न तो कोष में धन था न एक भी स्त्री। इससे अकबर निराश हुआ और क्रोधित भी। इसके दो कारण थे- पहला कारण था कि चित्तौड़ गढ़ दुर्ग की घेराबंदी करने में उसका समय और साधन बहुत लगा था, किन्तु कुछ न मिला।दूसरा कारण यह था कि संख्या में कम होने के बाद भी राजपूतों ने मुगल सेना का भारी नुकसान किया था। इससे क्रोधित अकबर ने चित्तौड़ गढ़ के आसपास के गाँव को लूटने का आदेश दिया और लगभग चालीस हजार स्त्री पुरुषों को मौत के घाट उतारा।
(इस जौहर और युद्ध का वर्णन अबूफजल के अकबर नामे में भी है)

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