यदि जनजातीय समाज हिन्दू नहीं है तो इस देश में कोई हिन्दू नहीं है – जे. नंदकुमार

यदि जनजातीय समाज हिन्दू नहीं है तो इस देश में कोई हिन्दू नहीं है - जे. नंदकुमार

यदि जनजातीय समाज हिन्दू नहीं है तो इस देश में कोई हिन्दू नहीं है - जे. नंदकुमारयदि जनजातीय समाज हिन्दू नहीं है तो इस देश में कोई हिन्दू नहीं है – जे. नंदकुमार

उदयपुर, 17 नवम्बर। भारत में यदि जनजातीय समाज हिन्दू नहीं है तो कोई भी हिन्दू नहीं हो सकता। हर हिन्दू वनवासी ही है। वनवासी शब्द भारत की अरण्य (वन) संस्कृति का सूचक है। भारत की वेदोक्त सनातन संस्कृति का सजग वाहक आज भी जनजातीय समाज ही है, क्योंकि उनमें अभी प्रदूषण नहीं हुआ है, मलीनीकरण नहीं हुआ है। जनजाति समाज स्वयं को प्रकृति का हिस्सा मानता है। पृथ्वी को माता मानता है। भले ही वे संस्कृत के विद्वान नहीं हों, लेकिन उनकी प्रार्थना में सभी के सुख की कामना होती है। हिन्दू संस्कृति के मूलभूत तत्व उनकी परम्पराओं का हिस्सा हैं।

ये विचार प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार ने व्यक्त किए। वे गुरुवार को जनजातीय चेतना परिषद की ओर से मानगढ़ बलिदान दिवस पर ‘लोक संस्कृति और परम्परा में भारत का स्वत्व बोध’ विषय पर आयोजित संभाग स्तरीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उदयपुर के सीटीएई सभागार में आयोजित इस संगोष्ठी में उपस्थित जनजाति समाज की महिलाओं, विद्यार्थियों एवं युवाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति पर वैचारिक हमले बढ़ गए हैं। इनका सामना करने के लिए हमें डटकर खड़ा होना होगा। कवि दिनकर की पंक्तियों ‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ, जो तटस्थ है, समय लिखेगा उसके भी अपराध ’ को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि सत्य को सत्य कहना ही होगा और असत्य का प्रतिकार करना होगा।

उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज के लोकगीत हों या परम्पराएं, उनमें सम्पूर्ण भारतवर्ष के दर्शन होते हैं। इस समाज ने जब भी कोई विचार किया है, सम्पूर्ण देश के लिए किया है चाहे वह स्वतंत्रता का आंदोलन ही क्यों न हो। कभी कुछ लोगों ने कहा कि स्वाधीनता का आंदोलन उच्चवर्गीय पढ़े-लिखे लोगों का था, कुछ ने कह दिया कि उत्तर भारत में था, कुछ ने कह दिया कि स्वाधीनता के आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी नहीं थी पुरुषों की थी। स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत भी अंग्रेजों से छुटकारे के लिए जोड़ी जाती है, जबकि देश का जनजाति समाज तो उस समय ही स्वाधीनता का बिगुल बजा चुका था, जब पुर्तगालियों ने देश में कदम रखा था। 16वीं शताब्दी में दक्षिण कर्नाटक के उल्लाल (Ullal) की रानी अबक्का (अभय) ने पुर्तगालियों के विरुद्ध बिगुल फूंका था, वह भी उस समय जब उनका पति पुर्तगालियों से हाथ मिला चुका था। इतिहास का अनुसंधान करेंगे तो सामने आएगा कि रानी अबक्का ने भरी सभा में कहा था कि पति धर्म से पहले राष्ट्रधर्म है। यहां राष्ट्र महज उनके अधीन भू-भाग नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत राष्ट्र था, जिसकी जमीन पर पुर्तगालियों के कदम पड़ रहे थे। झांसी की रानी ने भी अंग्रेजों से युद्ध के पहले जो पत्र लिखे, उनमें यह लिखा है कि धर्म रक्षा के लिए युद्ध करना है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में सर्वाधिक योगदान जनजाति समाज का रहा है, वह चाहे केरल की कुरचिया जनजाति हो या जबलपुर की संथाल जनजाति। पूर्वोत्तर में भी जनजाति समाज ने स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया। लेकिन भारत की संस्कृति में विद्वेष की नीयत वाली ताकतों ने इन बातों को कभी उभर कर आने नहीं दिया। उन्होंने कहा कि यह तथ्य कितने लोग जानते हैं कि भारत का संसद भवन घुमन्तू जाति के बंजारा की जमीन पर खड़ा है।

जे. नंदकुमार ने मानगढ़ बलिदान को नमन करते हुए कहा कि गोविन्द गुरु ने भगत आंदोलन के माध्यम से जनजागरण किया। उनके आंदोलन के मूल में भी यही था कि तत्कालीन औपनिवेशिक शासन हमारे धर्म और संस्कृति को नष्ट करने का षड्यंत्र कर रहा था। उनके भगत आंदोलन में सम्प सभा में होने वाला यज्ञ सनातन संस्कृति की ही परम्परा का वाहक था। उन्होंने कहा कि यह अंग्रेज राज को एक तरह से सहयोग नहीं करने के लिए जागरण अभियान था। हम कह सकते हैं कि असहयोग आंदोलन की प्रेरणा यही भगत आंदोलन बना। गोविन्द गुरु जिस समय कह रहे थे भूरेटिया नी मानूं’ उसी समय एक व्यक्तित्व और था जिन्होंने नागपुर में ब्रिटिश राज को कहा था ‘आपको हम नहीं मानते’ और वे थे डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार।

जे. नंदकुमार ने कहा कि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाने वाली विघटनकारी शक्तियों को भारत का आगे बढ़ना नहीं सुहा रहा है। इसलिए फूट डालने के तरह-तरह के प्रयास हो रहे हैं। संविधान और न्यायालय की बातों को भी आधी-अधूरी तरह से फैलाया जाता है, जबकि सत्य कुछ और ही होता है, जब सत्य सामने रखा जाता है तो वे विषय परिवर्तन कर लेते हैं। विघटनकारी विचार हर जाति, हर भाषा को अलग बताने का प्रयास करते हैं, ताकि विद्वेष उत्पन्न हो और देश में अराजकता फैले और भारत की प्रगति बाधित हो सके, जबकि हर जाति और हर भाषा बोलने वाले भारत के हर समाज की आत्मा में भारत राष्ट्र जीवित है।

उन्होंने आह्वान किया कि इन विघटनकारी शक्तियों के लिए सज्जनशक्ति को संगठित होना होगा और पूरी शक्ति के साथ उनके सामने खड़ा होना होगा। इसके लिए युवाओं को भी देश के लिए समय समर्पण करना होगा, जो कर रहे हैं उन्हें यह समर्पण और बढ़ाना होगा।

इससे पूर्व, कार्यक्रम का आरंभ मां भारती के चरणों में दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इसके बाद जिज्ञासा समाधान सत्र हुआ, जिसमें प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर जनजातीय चेतना परिषद के संयोजक मन्नालाल रावत तथा जे. नंदकुमार ने दिए। उद्बोधन से पूर्व ‘संस्कृति सबकी एक चिरंतन खून रगों में हिंदू है’ भाव गीत की प्रस्तुति हुई तथा आभार विद्या भारती के मंत्री नारायण लाल गमेती ने व्यक्त किया। मंच परिचय राकेश डामोर व कार्यक्रम का संचालन बाबूलाल कटारा ने किया।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *