जो इतिहास से नहीं सीखते इतिहास उन्हें सबक सिखाता है
विनय झा
जनगणना रिपोर्ट दिखाती है कि मेवात में हिन्दू अब केवल 20 % ही बचे हैं और उनमें भी जन्मदर अत्यधिक धीमी पड़ती जा रही है । मेवात के प्रमुख तहसील अब पाकिस्तान की तरह हो गये हैं जहाँ हिन्दुओं को सड़क पर निकलने में डर लगता है ।
बल्लभ गढ़ की निकिता तोमर राजा अनंगपाल तोमर के उस वंश की थी जिसने पुत्र नहीं होने पर पुत्री के पुत्र पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली की गद्दी सौंपी थी। पृथ्वीराज चौहान को इक्ष्वाकु वंश के सम्राट अज द्वारा स्थापित अजमेरु से लेकर इक्ष्वाकु वंश के ही सम्राट दिलीप के नगर दिल्ली तक की आर्यावली पर्वत शृंखला के दोनों राज्य प्राप्त हुए, किन्तु वह राजपूतों पर ही आक्रमण करने में आजीवन लगा रहा और गोरी को हराकर भी क्षमा करता रहा — जिस कारण पूरा देश गुलाम बना ।
पाण्डवों के अज्ञातवास वाले महाराज विराट के मत्स्य जनपद का नाम कालान्तर में मीनवटी हो गया जिसका अपभ्रंश हुआ मीनवटी और बाद में मेवात। तुर्क−पठान सल्तनत काल में वहाँ के चरवाहों को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया परन्तु 1880 ईस्वी तक मेवात के मुसलमानों को नमाज पढ़ना नहीं आता था और सारे रीति−रिवाज आसपास के हिन्दुओं की तरह थे। राजा हेमचन्द्र (हेमू) की सेना में सम्मिलित होकर उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अपना रक्त बहाया था, जिस कारण मुगलों ने भी उनकी उपेक्षा की।
1857 की क्रान्ति को कुछ मूर्खों ने मुग़ल साम्राज्य पुनः स्थापित करने का अवसर समझ लिया था, यद्यपि बहादुरशाह जफ़र को केवल शायरी में रुचि थी और मेरठ छावनी के सैनिकों ने उनकी गर्दन पर दुनाली रखकर उनकी इच्छा के विरुद्ध उनको क्रान्ति का नेतृत्व सम्भालने के लिये विवश किया था। 1857 की पराजय के पश्चात मुस्लिम उच्च वर्ग में दो प्रकार की प्रतिक्रियायें हुईं। एक धारा के प्रतीक थे सैय्यद अहमद खान जो आधुनिक शिक्षा से मुसलमानों को लैस करके मुस्लिम शक्ति को बढ़ाना चाहते थे।
दूसरी धारा के प्रतीक थे तबलीगी जमात के संस्थापक मौलाना मुहम्मद इलियास के पिता मौलाना मुहम्मद इस्माइल जो मेवात के ही थे और दैनिक मजदूरी पर मेवात के गरीब मुसलमानों को अपने मदरसे में बुलाकर नमाज आदि की शिक्षा देते थे और हिन्दुओं के रीति−रिवाज और परिधान आदि त्यागने के लिये पैसा देते थे। पूरे विश्व में इस्लाम और कोरोना महामारी को फैलाने वाले तबलीगी जमात की स्थापना मेवात में ही हुई थी। दिल्ली के निजामुद्दीन में उन्होंने मुख्यालय बनाया।
डा. जाकिर हुसैन ने सैय्यद अहमद खान और तबलीगी जमात की उपरोक्त दोनों धाराओं में परस्पर गुप्त तालमेल बिठाने के लिये अलीगढ़ से आकर दिल्ली के जामियानगर को अड्डा बनाया। तबलीगी जमात से पहले मेवात के मुसलमानों का हिन्दुओं से कभी वैमनस्य नहीं रहा था, परन्तु तबलीगी जमात बनने के बाद वहाँ दंगों का सिलसिला चलने लगा। जिन्ना द्वारा वातावरण बिगाड़ने पर मेवात के मुसलमानों ने जो हुड़दंग मचाया उसपर बिगड़कर चारों ओर के हिन्दुओं ने आक्रमण करके हजारों मेवाती मुसलमानों को मार डाला। बहुत से मुसलमान वहाँ से भाग गये। परन्तु गाँधी जी ने मेवाती मुसलमानों को वापस बुलाकर मेवात में बसाने के लिये नेहरू सरकार को विवश किया। उसके बाद से मेवात में मुसलमानों की संख्या आश्चर्यजनक गति से बढ़ती जा रही है। साल 2011 की जनगणना में भी एक दशक में वहाँ मुसलमानों की संख्या में 45 % तथा वहाँ के हिन्दुओं में केवल 16 % की वृद्धि दर्ज की गयी।
1947 में भी मेवात के नगरों में हिन्दुओं का व्यापार आदि पर आधिपत्य था और मुसलमान अपने चरवाहे पूर्वजों की तरह गरीबी में जीवन बिताते थे। परन्तु 1947 ई⋅ के पश्चात सुनियोजित तरीके से मुसलमानों को मेवात के नगरों में बसाया जाने लगा और मुसलमानों की दुकानों से ही मुसलमानों को खरीदारी करने की सीख मुल्लाओं द्वारा दी जाने लगी। जनगणना रिपोर्ट दिखाती है कि हिन्दू अब केवल 20 % ही बचे हैं और उनमें भी जन्मदर अत्यधिक धीमी पड़ती जा रही है। मेवात के प्रमुख तहसील अब पाकिस्तान की तरह हो गये हैं जहाँ हिन्दुओं को सड़क पर निकलने में डर लगता है।
1947 ई के पश्चात वहाँ के मुस्लिम नेता काँग्रेस में रहे हैं और आज भी काँग्रेस में हैं। बल्लभगढ़ मेवात से बाहर है किन्तु मेवातियों का दुस्साहस अब बहुत बढ़ गया है। जिस मेवाती युवक ने बल्लभगढ़ आकर तोमर बच्ची की हत्या की है उसका परिवार काँग्रेसी है और उसमें कई नेता हैं। उस परिवार पर भी मुकदमा चलना चाहिये क्योंकि उन्हीं लोगों के उकसावे पर यह काण्ड हुआ है, बच्ची के परिवार का कहना है कि उन नेताओं का दवाब था कि बेटी दे दो और मुकदमा मत करो। इतना आरोप पर्याप्त है मुकदमे के लिये।
बल्लभगढ़ चुप बैठने वाला नहीं है, मुगलों के दाँत खट्टे करने वाले भरतपुर के महाराज सूरजमल का वह गढ़ है जहाँ आज भी उनके वंशज रहते हैं। तबलीगी जमात का आरम्भ करने के लिये मेवात को इस कारण चुना गया था चूँकि दिल्ली के पास मुस्लिम बहुल जनसंख्या केवल वहीं थी। परन्तु उस जनसंख्या में सऊदी अरब वाले संस्कार नहीं थे, जिसे भरने का दायित्व तबलीगी जमात ने लिया। तबलीगी जमात का मानना है कि हिन्दुस्तान का पहनावा और रीति−रिवाज भी कुफ्र हैं और सउदी अरब के लोगों की नकल करना ही इस्लाम है। इनलोगों को देशभक्ति कुफ्र लगती है। तो फिर देशभक्तों को गद्दारों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये?
सरकारें केवल उनकी सुनती हैं जो सरकारों को सुनाने की कला जानते हैं। भगतसिंह ने सच कहा था कि सरकार बहरी होती है, बिना धमाके के नहीं सुनती। हमें बारूद वाला बम नहीं फोड़ना है, हमारे उद्घोष में ही बम का बल होना चाहिये।
आपका पोस्ट पूरा पढ़ा है। सामयिक ज्वलंत घटना के परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक सत्य और तथ्य से सामान्य जन को अवगत कराने के लिए अनन्त साधुवाद!