नाम
आपातकाल भी तो एक नामी मायावी ने ही रचाया था। 1984 में भी एक नामी-गिरामी ने सड़कों पर सिखों का कत्लेआम करवाया था। एक मौन नाम ने भी तो मौन रहकर खूब भ्रष्टाचार करवाया था।
शुभम वैष्णव
नाम की महिमा तो जगत जानता है, फिर चाहे नाम दैवीय स्वरूप लिए हुए हो या आसुरी। परंतु काम से नाम जरूर बनता है और नाम बनाया भी जाता है। नाम कमाने और गंवाने के लिए व्यक्ति में विशिष्ट योग्यताओं का होना आवश्यक है।
देखिए ना किसी ने कॉमनवेल्थ घोटाले से नाम कमाया तो किसी ने चारा घोटाले से। बोफोर्स, 2जी स्पेक्ट्रम, शारदा चिटफंड, व्यापम सबमें नाम की महिमा ही तो नजर आती है। 1983 का विश्व विजेता बनना हो या 2011 का, क्रिकेट टीम में भी अच्छे खेल से सबने खूब नाम कमाया। 2013 IPL मैच फिक्सिंग में भी कुछ नामी-गिरामी नामों का ही हाथ था।
कभी मलेरिया, प्लेग, पोलियो, चिकन पॉक्स, इबोला और एड्स ने भी खूब नाम कमाया था, अब कोविड 19 कोरोना वायरस की बारी है। नाम ही तो पहचान होती है, इसीलिए तो एक भारतीय राजनीतिक दल में एक परिवार के अलावा किसी और को अध्यक्ष के काबिल नहीं समझा जाता।
आपातकाल भी तो एक नामी मायावी ने ही रचाया था। 1984 में भी एक नामी-गिरामी ने सड़कों पर सिखों का कत्लेआम करवाया था। एक मौन नाम ने भी तो मौन रहकर खूब भ्रष्टाचार करवाया था। कभी एक दूसरे के नाम से जलने वाले नेता और दल आज हमनाम होते नजर आ रहे हैं। बेचारी EVM के नाम पर भी तो कितना शोर मचाया गया था।
कुछ लोग तो शहीद ए आजम भगत सिंह के नाम से इतना खौफ खाए थे कि मृत्यु के बाद भी उनके परिवार की जासूसी करवाई गई। यह सब नाम की ही तो महिमा है। भारत का नाम बदनाम करने की साजिश पल-पल की जा रही है और कई वर्षों से जारी है, परंतु हमारे होते हुए हमारे देश का नाम कोई बदनाम नहीं कर सकता, क्योंकि भारत एक नाम नहीं हमारी पहचान है।