पाकिस्तान में बलूचियों के मानवाधिकारों का हनन

प्रीति शर्मा

भारत जैसे समर्थ मूल्यवान लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अपरिहार्य है कि मानवाधिकार के रक्षण के लिए बलूचिस्तान की समस्या को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विमर्श के लिए रखे तथा दक्षिण एशिया की राजनीति में मानवता की रक्षार्थ 
निर्णयकारी भूमिका का प्रदर्शन करे।

वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय रूप से समस्त देशों के बीच सीमा सुरक्षा के साथ-साथ मानवाधिकार की रक्षा का प्रश्न भी मुख्य रूप से प्रचलित है। विश्व में कभी आतंकवाद, कभी नस्लभेद या कभी  प्रवासी समस्या के नाम पर जनसंहार होता रहा है। भारत जैसे शांति प्रिय एवं मानवीय गरिमा को सम्मान देने वाले राष्ट्र के पड़ोस में बलूचिस्तान निरंतर मानवाधिकार  हनन के विरुद्ध  स्वतंत्रता के पक्ष में आवाज उठाता रहा है।

प्राचीन समय में ईरान और भारत के बीच एक शक्तिशाली क्षेत्र कलात के बलूच के कई भागों को ब्रिटिश शासन  काल में विभिन्न संधियों के अधीन ईरान (1871) और अफगानिस्तान (1893) को  हस्तांतरित कर  यहां की सांस्कृतिक सामाजिक एवं आर्थिक एकता को बांट दिया गया  था। ब्रिटिश उपनिवेश बलूचिस्तान तथा  कलात के बीच मस्तंग की संधि (1876) के अधीन  बलूचिस्तान को स्वायत्तशासी क्षेत्र का दर्जा दिया गया था। सन 1948 में पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान को अवैध रूप से अपने क्षेत्र में मिला लेने के बाद से ही इस क्षेत्र में निरंतर पाक विरोधी एवं लोकतंत्र  समर्थक गतिविधियां चलती रही हैं।

गत 70 वर्षों से पाकिस्तान बलूचिस्तान में निरंतर अमानवीय अत्याचार करता रहा है। हाल ही में बलूचिस्तान में बृबचाह में हुए हिंसक विद्रोह के चलते पाकिस्तानी सेना पर पत्थरबाजी की गई तथा सैन्य निर्माणों को नष्ट कर दिया गया जिसके कारण पाकिस्तानी सेना को जान बचा कर सीमावर्ती चौकी से भागना पड़ा।

कुछ दिन पहले वहां एक 4 वर्षीय लड़की तथा उसकी मां की हत्या  कर दी गई थी, जिसका विरोध करने के लिए बलूचिस्तान में जनता एकजुट होकर सड़कों पर उतर आई थी। तत्पश्चात पाकिस्तान सेना द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए खुजदार, पंजगुर, ग्वादर, कैच क्षेत्रों में छापेमारी कर युवाओं का अपहरण किया गया। साथ ही पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान आर्मी और बलूच लिबरेशन फ्रंट को साफ करने के लिए ग्राउंड जीरो क्लीयरेंस ऑपरेशन चलाया है। बलोच सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा पेरिस स्थित गैर सरकारी संगठन बलोच वॉइस एसोसिएशन आदि द्वारा इन सभी अपहरण तथा हत्या के पीछे पाकिस्तानी सेना पर आरोप लगाए गए हैं। पाकिस्तानी सेना  द्वारा बलूचिस्तान में युवाओं के अपहरण, हत्या आदि द्वारा क्रूरता का प्रदर्शन  किया जाता रहा है।

पाकिस्तान द्वारा बलूच विद्रोहों को दबाने के लिए 1948, 1958-59,1962-63 और 1973-77 मैं कई सैन्य अभियान चलाए गए। बलूचिस्तान में पाकिस्तान से आजादी के लिए कई हथियारबंद अलगाववादी समूह भी सक्रिय हैं। पाकिस्तान ने हजारों  लोगो को नजर बंद कर सेना तथा सरकारी नौकरियों में बलोचों के प्रवेश पर रोक लगा रखी है। यही नहीं स्थानीय बलूच नेताओं के प्रभाव को खत्म करने के लिए लोकतांत्रिक नेताओं की हत्या करा कर कट्टरपंथियों को पाकिस्तान द्वारा निरंतर आर्थिक  सहायता प्रदान की गई।

तथाकथित लोकतांत्रिक देश पाकिस्तान में इस क्षेत्र में वर्षों से हिंसात्मक गतिविधियों तथा जनसंहार के चलते जन असंतोष व्याप्त रहा है। बलूचिस्तान में आधारभूत विकास एवं जनता के अधिकारों के विरोध में निरंतर चलने वाली राजनीति एवं  पाकिस्तान सरकार के अत्याचारों से स्वतंत्रता की मांग बढ़ती जा रही है।

खनिज  भंडारों तथा सामरिक दृष्टि से समृद्ध बलूचिस्तान जो ईरान अफगानिस्तान और अरब की खाड़ी के तेल तथा गैस भंडारों के निकट तथा अंतर्राष्ट्रीय तेल व्यापार के मुख्य समुद्री मार्ग  पर  स्थिति के चलते अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसे अपने अधीन रखने के लिए पाकिस्तान बलोच जनता के अस्तित्व के संघर्ष को अमानवीय रूप से दबा रहा है तथा यहां के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। बलूचिस्तान के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता नायला कादरी तथा अन्य कार्यकर्ताओं द्वारा भारत से बलूचिस्तान पर हस्तक्षेप करने की निरंतर मांग की जाती रही है  तथा भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा समय-समय पर बलूचिस्तान की जनता का समर्थन करने का स्वागत किया गया है।

विश्व में किसी भी क्षेत्र में मानवाधिकार का हनन तथा अन्याय एवं शोषण वैश्विक न्याय के विरुद्ध भयावह है। भारत जैसे समर्थ मूल्यवान लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अपरिहार्य है कि मानवाधिकार के रक्षण के लिए बलूचिस्तान की समस्या को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विमर्श के लिए रखे तथा दक्षिण एशिया की राजनीति में मानवता की रक्षार्थ निर्णयकारी भूमिका का प्रदर्शन करे। भारत निश्चय ही मानवता के लिए कर्तव्यनिष्ठ राष्ट्र के रूप में सदैव खड़ा रहा है तथा बलूचिस्तान की तरफ से कई मंचों पर भारत के हस्तक्षेप का आह्वान किया गया जिस पर  विचार करना अति आवश्यक है।

 (ये लेखिका के निजी विचार हैं)

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