पाकिस्तान में बेबस लोकतंत्र
डॉ. सतीश
वर्ष 1947 से वर्तमान समय तक पाकिस्तान एक राष्ट्र निर्माण की अशांत एवं अराजक प्रक्रिया से गुजर रहा है। वह आज भी स्थिर राजनीतिक व्यवस्था हेतु जूझ रहा है। वहॉं लोकतंत्र जैसे बेबस है। पाकिस्तान का निर्माण ‘द्वि राष्ट्र सिद्धान्त’ के आधार पर हुआ। 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग द्वारा लाहौर में एक प्रस्ताव रखा गया। जिसे ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत मुसलमानों के लिए पृथक देश पाकिस्तान की मांग की गई। ‘लड़ कर लेंगे पाकिस्तान‘, ‘दे दाता के नाम तुझको अल्ला रखे‘ इत्यादि नारों के आगोश में निर्मित पाकिस्तान अपने निर्माण से वर्तमान समय तक एक स्थिर राजनीतिक व्यवस्था नहीं दे पाया है। पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था को इस्लामिक चरमपंथ व सेना के साथ-साथ चीन व अमेरिकी हस्तक्षेप ने रौंद दिया है।
पाकिस्तान ने मदरसों को भारत के विरुद्ध घृणा संस्कृति (hate culture) के रूप में तैयार किया एवं गन कल्चर को बढ़ावा दिया, जो आज पाकिस्तान पर ही भारी पड़ रहा है। देखा जाए तो पाकिस्तान की नींव ही गलत थी, इस्लाम और लोकतंत्र साथ-साथ नहीं चल सकते। इस्लामिक देशों में लोकतंत्र नहीं चल सकता, क्योंकि वहॉं सहिष्णुता, विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभाव है। उनके लिए मजहबी कट्टरता सर्वोपरि है।
इस्लाम में शरीयत द्वारा शासन को महत्ता दी जाती है, जो कि एक मजहबी कानून है, जिसमें अल्पसंख्यकों के हितों की अवहेलना की जाती है। इस्लाम में गैर मुस्लिमों को काफिर का दर्जा दिया गया है। जबकि लोकतंत्र में जनता के हितों को प्रधानता दी जाती है, जिसमें विविधता में एकता, परस्पर सौहार्द एवं भाईचारे को महत्व दिया जाता है।
इस्लामिक कट्टरता के कारण ही पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर बर्बरता होती है। उनकी हत्या, रिलीजियस कन्वर्जन, रेप जैसे जघन्य एवं अमानवीय कृत्य आम हैं। मुसलमान आपस में भी लड़ते रहते हैं। सुन्नी मुसलमान शिया मुसलमानों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं। ऐसे ही कारणों से पाकिस्तान का विभाजन हुआ और बांग्लादेश बना। इस्लामिक चरमपंथ के चलते ही पाकिस्तान में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ती रहती हैं।
पाकिस्तानी सरकार के अत्याचार पाक अधिकृत कश्मीर के निवासियों पर भी जारी हैं, जिसके चलते वहां का शिया समुदाय भारत में विलय की मांग कर रहा है। पाकिस्तान के गिलगित – बाल्टिस्तान में पाक विरोधी नारे लग रहे हैं। फिजा में चलो, चलो कारगिल चलो के नारे बुलंद हैं। भारत से 90 किमी दूर स्कर्दू में शिया समुदाय के लोग भारत की ओर जाने वाले कारगिल हाइवे को खोलने की मांग पर अड़ गए हैं। पाकिस्तानी सेना ने इन बगावती तेवरों को देखते हुए 20 हजार अतिरिक्त जवानों को तैनात किया है एवं पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिफ मुनीर ने मुस्लिम उलेमाओं को भेजा है ताकि इन आवाजों को दबाया जा सके।
जॉन एण्डरसन एवं सैमुअल हटिंगटन के अध्ययन ने दर्शाया है कि मुस्लिम देशों में लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता। सैमुअल हटिंगटन ने अपनी पुस्तक ‘the clash of civilization’ में लिखा है कि मुस्लिम देश लोकतंत्र की आधारभूत अवधारणाओं के लिए अनुत्पादक हैं। इस्लाम लोकतंत्र के आधारभूत तत्वों व मूल्यों को नकारता है एवं मजहबी तंत्र की स्थापना करता है। इस्लामिक देशों में सहिष्णुता जैसे मूलभूत तत्वों का अभाव पाया जाता है।
इसके विपरीत भारत का उदाहरण देख सकते हैं। भारत वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा एवं सफल लोकतंत्र है। भारतीय हिन्दू संस्कृति ने यहां कि विविधताओं को स्वीकार किया एवं फलीभूत होने दिया। जिसका परिणाम है कि भारत एक वैश्विक महाशक्ति बनने के मार्ग की ओर अग्रसर हो रहा है। भारत को विश्व में सबसे सफल लोकतंत्र माना जाता है।
पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के व्यक्तित्व के संदर्भ में पाकिस्तानी इतिहासकार आयशा जलाल का मानना है कि जिन्ना में प्रारम्भ से ही तानाशाही प्रवृति मौजूद थी। आयशा जलाल इसका उदाहरण देती हुई कहती हैं कि जिन्ना ने देश के प्रधानमंत्री की बजाय गर्वनर का पद धारण किया व महत्वपूर्ण शक्तियां अपने पास रखीं, इससे जिन्ना का सर्वाधिकारवादी स्वरूप उजागर होता है।
जिन्ना ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को बढ़ावा देने वाली प्रक्रियाओं को विकसित ही नहीं होने दिया। पाकिस्तान के निर्माण के शुरुआती 11 वर्षों में एक बार भी चुनाव नहीं हुए क्योंकि पाकिस्तान की संस्थापक पार्टी मुस्लिम लीग के नेताओं को इस बात का भय था कि अगर आम चुनाव हुए तो सत्ता उनके हाथ से निकल जाएगी। पाकिस्तान की संस्थापक पार्टी मुस्लिम लीग का पाकिस्तान में जनाधार ही नहीं था। पार्टी संगठनात्मक व कार्यात्मक दोनों स्तर पर कमजोर थी। मुस्लिम लीग के नेताओं ने पार्टी के विघटित होने के भय के चलते पाकिस्तान में विरोधी दलों को पनपने ही नहीं दिया। फिलिप आओल्डेन बर्ग ने पाकिस्तान की इस अवस्था को नियंत्रित लोकतंत्र (controlled democracy) की संज्ञा दी है। इस प्रकार पाकिस्तान एक संकुचित एवं संकीर्ण विचारधारात्मक समाज बन कर रह गया।
पाकिस्तान अपने निर्माण के समय से लेकर वर्तमान समय तक प्रभावी राजनीतिक नेतृत्व के संकट से जूझ रहा है। पाकिस्तान के निर्माणकर्त्ता मोहम्मद अली जिन्ना का वर्ष 1948 में देहांत हो गया। वर्ष 1951 में प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई। इसके पश्चात देश पर सेना ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। पाकिस्तान में कई वर्षों (1958 से 1971, 1977 से 1988, 1999 से 2008) तक सेना का प्रत्यक्ष शासन रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान की राजनीति में अप्रत्यक्ष भूमिका सेना की रहती है। वर्तमान समय में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता से हटाने में भी सेना प्रमुख की नियुक्ति या सेना के साथ विवादास्पद संबंधों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
इमरान खान सेना की भूमिका को कम करना चाहते थे, सेना को यह कतई बर्दाश्त नहीं था। पाकिस्तान का कोई भी प्रधानमंत्री आज तक अपने 5 वर्ष पूर्ण नहीं कर पाया है।सामाजिक एवं नृजातीय विवाद भी पाकिस्तानी लोकतंत्र की असफलता के सूत्रधार रहे हैं।
पाकिस्तान के निर्माण के समय से ही नृजातीय विवाद बने हुए हैं, लेकिन पाकिस्तान आज तक इन नृजातिय समूहों – पंजाबी, बलूच, सिन्धी, बंगाली, पठान इत्यादि में सामंजस्य नहीं बैठा पाया है। पाकिस्तानी हुकूमत द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के मुस्लिमों का हाशियाकरण कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 1953 में पाकिस्तान की संविधान सभा के 79 सदस्यों में से 33 सदस्य बंगाली थे, लेकिन बाद में उनका प्रतिनिधित्व कम होता चला गया। पाकिस्तानी सेना व सिविल सेवा में पंजाबियों ने प्रभुत्व स्थापित कर लिया। इन सभी गतिविधियों के मूल में इस्लामिक कट्टरता प्रतीत होती है, जिसके कारण पाकिस्तान को एक विफल राज्य (failed state) माना जाता है।
पाकिस्तान में अपने निर्माण से ही भारत के विरुद्ध असुरक्षा की भावना रही है। पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में सैन्य प्रभुत्व प्रारंभ से है। वहॉं हमेशा सेना का हस्तक्षेप रहा है, जो बाद में तानाशाही में बदल गया। सेना ने भारत को शत्रु राष्ट्र के रूप में चित्रित किया। इस प्रकार सेना पाकिस्तान के अस्तित्व का मुख्य आधार बन गई। पाकिस्तान की तुलना में भारत का सैन्य दृष्टि से हमेशा बलाधिक्य रहा है। पाकिस्तानी नेतृत्व ने भारतीय सेना के समकक्ष होने की क्षमता विकसित करने पर अधिक बल दिया, जिसके कारण पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था पंगु हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान आज ऋण हेतु भीख का कटोरा लेकर पूरी दुनिया में घूम रहा है। वर्तमान समय में जुल्फिकार अली भुट्टो का कथन याद आता है, उन्होंने कहा था कि अगर भारत परमाणु बम बनाता है तो पाकिस्तान भी परमाणु बम बनायेगा, भले ही उन्हें घास की रोटी क्यों ना खानी पड़े। इस मानसिकता के चलते पाकिस्तान ने भारतीय परमाणु परीक्षण की बराबरी हेतु परमाणु परीक्षण तो कर लिया, लेकिन आज उसे घास की रोटी तक के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। पाकिस्तान में महंगाई 37.97 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। विदेशी मुद्रा भण्डार लगभग समाप्त होने की कगार पर है। भारत से प्रतिस्पर्धा के चलते पाकिस्तान आज कंगाली व बदहाली के मार्ग पर खड़ा है। पाकिस्तान पर 77.104 ट्रिलियन रुपये का कर्जा है जो पाकिस्तानी GDP का 89.7 प्रतिशत है। आज पाकिस्तान आईएमएफ (IMF) का चौथा सबसे बड़ा कर्जदार है। दूसरी ओर इस्लामिक कट्टरता ने पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर आतंकवाद पैदा करने वाला देश बना दिया है।
जिन मदरसों में भारतीय गणतंत्र में अव्यवस्था व अराजकता फैलाने वाले आतंकी समूह तैयार किये जाते रहे हैं, वे आतंकी समूह अब पाकिस्तान पर ही हमला कर रहे हैं। पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति में एक सशक्त व सफल लोकतंत्र की आशा नजर नहीं आ रही क्योंकि इस्लाम एवं लोकतंत्र एक साथ नहीं चल सकते, यह शोध द्वारा सत्यापित है।
बहुत ही तथ्यात्मक लेख..