ऐसे अवसर पर देश का विरोध करना, क्या संकेत देता है..?

ऐसे अवसर पर देश का विरोध करना, क्या संकेत देता है..?

प्रशांत पोळ

ऐसे अवसर पर देश का विरोध करना, क्या संकेत देता है..?ऐसे अवसर पर देश का विरोध करना, क्या संकेत देता है..?

नई दिल्ली में जी-20 सम्मेलन ने इतिहास रच दिया है। केवल इसलिये नहीं कि भारत ने इस समिट के लिये सर्वोत्कृष्ट व्यवस्था की। इसलिये भी नहीं कि कार्यक्रम प्रबंधन (ईवेंट मॅनेजमेंट) का अत्यंत सफल मॉडल भारत ने सामने रखा है। इससे पहले हुए विभिन्न जी-20 समिट में विभिन्न देशों ने कम – ज्यादा, ऐसा ही किया था। इतिहास इसलिये रचा जा रहा है क्योंकि भारत ने जी-20 को सामान्य लोगों का संगठन बना दिया है। सबकी सहभागिता का पूरा प्रयास भारत ने किया है। इस समिट से पहले भारत के 60 शहरों में विभिन्न विषयों के 220 कार्यक्रम हुए। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। इससे पहले किसी भी देश ने जी-20 को लेकर इतना उत्साह नहीं दिखाया और ना ही सभी देशों की, सभी क्षेत्रों में सहभागिता का ऐसा प्रयास किया है। साथ ही विश्व की चुनौतियों का सामना करने, भारत की पहल पर बायो फ्यूल जैसी अनेक परियोजनायें आकार ले रहीं हैं। इन सब में जी-20 के सभी सहभागी देशों को भारत का नेतृत्व स्वीकार है।

किंतु अपने देश का दुर्भाग्य यह है। कि जब सारा विश्व भारत की प्रशंसा कर रहा है, भारत का नेतृत्व मान्य कर रहा है। तब हमारे ही देश के कुछ जिम्मेदार लोग, देश – विदेश में हमारे ही देश की छवि बिगाड़ने में लगे हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।

जी-20 की इस महत्वपूर्ण समिट के समय कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी यूरोपीय देशों की यात्रा पर हैं। यह अपने आपमें अजीब है। लेकिन फिर भी मान लेते हैं, कि राहुल गांधी को, विश्व के प्रमुख नेताओं में प्रधानमंत्री मोदी की सराहना करना रास न आता हो या देखा न जाता हो। इसलिये वह भारत से बाहर चले गए। किंतु भारत के बाहर वे यूरोप में क्या कर रहे हैं?

दिनांक 8 सितंबर को राहुल गांधी ने पेरिस में फैकल्टी ऑफ साइंसेज के विद्यार्थियों से संवाद किया। इस कार्यक्रम में उन्होंने क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट के साथ मंच साझा किया।क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट जो कि एक फ्रेंच इंडोलोजिस्ट एवं राजनीतिक विज्ञान के विशेषज्ञ माने जाते हैं। किंतु इनकी मूल पहचान है – हिन्दुत्व के कट्टर विरोधी की। ये सदैव हिन्दुत्व और मोदी का विरोध सभी मंचों से व सभी माध्यमों से निरंतर करते रहते हैं। 59 वर्षीय क्रिस्टोफ ने भारत पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं। सभी पुस्तकें भारत का नकारात्मक चित्र प्रस्तुत करती हैं। ‘मोदी’ज इंडिया – हिन्दू नेशनलिज्म एंड द राईज ऑफ इथनिक डेमोक्रसी, ‘आंबेडकर एंड अनटचेबिलिटी, संघ परिवार, हिन्दू नेशनलिज्म, बीजेपी एंड कंपल्शन ऑफ पॉलिटिक्स इन इंडिया, रिलीजन, कास्ट एंड पॉलिटिक्स आदि पुस्तकें इन्होंने लिखीं। इन सभी पुस्तकों में भारत की विषमता, जाति व्यवस्था जो मानवता के विरोध में है, को दिखाने का प्रयास किया गया। इन्हें ‘मोदी हेटर’ नाम से जाना जाता है।

क्रिस्टोफ ने मालेगांव बम घटना को लेकर भी अनेक आधारहीन वक्तव्य दिये थे। कट्टर और आतंकी हिन्दुत्व कैसे सेक्युलरिज्म को दबा रहा है। यह इनका सूत्र था।

भारत की छवि को विश्व में खराब करने की मंशा से काम करने वाले क्रिस्टोफ जाफ्रेलॉट के साथ एक मंच से कार्यक्रम करते हुए राहुल गांधी क्या संदेश देना चाह रहे हैं?

यही नहीं, राहुल गांधी की इस यात्रा में उन्हें कुछ यूरोपीय सांसदों से मिलाने का कार्य फाबियो मासिओ कास्टाल्डो कर रहा है। ‘फाबियो मासिओ कास्टाल्डो’ इटालियन राजनीतिज्ञ और यूरोपीय पार्लियामेंट का उपाध्यक्ष है, जो पाकिस्तान की आईएसआई के लिये यूरोप में कार्य करता है। इसका भारत विरोध सभी जानते हैं। क्या यह सब देश के विरोध में नहीं है??

वहीं दूसरी ओर जी-20 समिट के स्थान ‘भारत मंडपम’ की प्रेस वार्ता में एक फ्रान्सीसी न्यूज चैनल ‘फ्रान्स 24’ के एंकर ने आईआईटी दिल्ली में साहित्य और दर्शनशास्त्र की सहायक प्राध्यापिका ‘दिव्या द्विवेदी’ को जी-20 समिट पर कमेंट करने के लिए बुलाया। दिव्या ने कहा, ‘ये भारत, जो आपको मीडिया की नजरों से दिखता है, ऐसा नहीं है, यह जाति व्यवस्था के कारण अत्यंत खोखला है। यहां निचले स्तर के लोगों पर भयानक अत्याचार होते हैं।’

जबकि यहां एंकर बता रहा है कि, ‘पिछले दस वर्षों में, भारत ने बहुत तेजी से विकास किया है। वह एक रिक्शावाले के साथ अपना संवाद सुनाता है कि कैसे रिक्शावाले ने कहा कि सरकार की नीतियों से उसका जीवन सरल हो गया है।

इस पर दिव्या बोलती हैं, ‘ऐसा नहीं है। भारत गत 3000 वर्षों से जातिगत व्यवस्था का शिकार है। जिसमें ऊंची जाति के लोगों ने निचली जाति के लोगों का जीवन कष्टमय किया है। आरएसएस जैसा फासिस्ट संगठन, जो बीजेपी का मातृ संगठन है, अब ‘भारत’ शब्द का प्रचार करके कट्टर राष्ट्रीयता लाना चाह रहा है।

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर अपने ही देश के बारे मे इतना असत्य और अनर्गल बोलेंगी, तो क्या यहां देशद्रोह नहीं है?

हम ‘वयम् पंचाधिकम् शतम्’ मानने वाले लोग हैं। सौ कौरवों की रक्षा करने वाले पांच पांडव बाहरी आक्रांताओं को कहते थे, ‘हम पांच नहीं, सौ नहीं, एक सौ पांच हैं।

ऐसी विचारधारा मानने वाला हमारा देश, और इसी देश में राहुल गांधी, दिव्या द्विवेदी जैसे लोग‌ देश के सम्मान को तार तार कर रहे हैं। वास्तव में यह सब अति दुर्भाग्यपूर्ण है।

ऐसे अवसर पर देश का विरोध करना, क्या संकेत देता हैं..?

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