पाथेय कण : स्वराज संघर्ष यात्रा विशेषांक (पुस्तक / पत्रिका परिचय)

पाथेय कण : स्वराज संघर्ष यात्रा विशेषांक (पुस्तक / पत्रिका परिचय)

पुस्तक / पत्रिका परिचय

पाथेय कण : स्वराज संघर्ष यात्रा विशेषांक

आश्विन शुक्ल ११, कार्तिक कृष्ण ११, युगाब्द ५१२३, वि. 2078
(16 अक्टूबर व 1 नवंबर 2021 संयुक्तांक)

पाथेय कण : स्वराज संघर्ष यात्रा विशेषांक (पुस्तक / पत्रिका परिचय)

दीपावली का पावन पर्व जितना भौतिक समृद्धि व प्रकाश का उत्सव है उतना ही अथवा उससे कहीं अधिक मन को उत्तम विचारों से आलोकित करने का भी अवसर है।

पाथेय कण राष्ट्रीय विचारों को समर्पित पाक्षिक पत्रिका है। देश व समाज के हित में वैचारिक प्रबोधन तथा विमर्श को स्थान देने के चलते पाठकों के मन में इसका अपना विशिष्ट स्थान है। पाथेय कण ‘स्वराज्य संघर्ष यात्रा’ दीपावली विशेषांक स्वाधीनता के प्रकाश की गौरवमयी गाथाओं से सुसज्जित है। एक ही अंक में स्वाधीनता से जुड़े इतने सारे विविध पक्षों पर लेखन प्रायः कम ही देखने को मिलता है।
इस अंक में राजस्थान के किसान आंदोलन, 1857 का स्वातन्त्र्य संघर्ष, स्वाभिमान जगाने वाले लेखक, कवि, पत्रकार, सर्वस्व बलिदान कर देने वाले हुतात्मा, स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वाले स्थलों, क्रांतिकारियों तथा वीरांगनाओं के विषय में शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हुए हैं। साथ ही राजस्थान के क्रांतिकारी महापुरुषों पर जारी डाक टिकटों पर दी गई जानकारी अत्यंत रोचक है। इस प्रकार यह अंक न केवल सुधि पाठकों हेतु संग्रहणीय बन पड़ा है अपितु शालेय विद्यार्थी वर्ग तथा विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

विशेषांक का प्रारंभ पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा ‘सिद्धांत और नीति’ विषय पर दिए व्याख्यान के अंशों से हुआ है। उनके कथानुसार- ” प्रत्येक राष्ट्र के लिए ‘स्व का विचार करना आवश्यक है। स्वत्व के बिना स्वराज्य का कोई अर्थ नहीं होता।” स्व की यह भावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के विजयादशमी प्रबोधन में भी अभिव्यक्त हुई है।

स्वातंत्र्य समर में ‘स्व’ की इस महत्ता को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले के लेख में विस्तार मिला है। स्वामी विवेकानंद तथा स्वामी दयानंद सरस्वती ने स्वराज्य संघर्ष को किस प्रकार प्रेरित किया अथवा 1857 के स्वातंत्र्य समर में आउवा, ऐरनपुरा, नसीराबाद इत्यादि स्थित क्रांतिकारियों ने कैसे स्वाधीनता की चिंगारी को ज्वाला में बदल दिया; बिजोलिया, बेगुन, बूंदी, अलवर, शेखावाटी, सीकर तथा अन्य स्थलों पर किसानों ने किस प्रकार विदेशी अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष किया; यह पढ़ते हुए आँखों के सम्मुख इन घटनाओं का जीवंत चित्र उभरने लगता है। तात्या टोपे का मेवाड़ आगमन, साधु वेश में अंग्रेजों को चकमा देने वाले क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक तथा अंग्रेजों द्वारा बस के नीचे कुचले गए हुतात्मा रमेश स्वामी पर तथ्यात्मक लेख इस विशेषांक में प्रकाशित हुए हैं।

प्रायः भारतीय रजवाड़ों को फिल्मों तथा आधुनिक साहित्य में खलनायक के रूप में चित्रित किया जाता है किंतु इस अर्धसत्य अथवा कहें ‘कुप्रचार’ का निस्तारण करते कई प्रामाणिक लेख इस अंक में हैं जैसे ‘स्व भाषा’ व ‘स्व-तंत्र’ को लागू करने वाले स्वाभिमानी अलवर नरेश जयसिंह प्रभाकर पर आलेख जिन्हें अंग्रेजों ने देश निकाला दे दिया था अथवा बीकानेर महाराज सादुल सिंह जो स्वतंत्र भारत का अंग बनने वाले पहले शासक थे।

राजस्थान ने मात्र तीर-तलवार ही नहीं अपितु लेखन, गायन, नाट्य व कला के विविध रूपों को भी स्वाधीनता संघर्ष का हथियार बनाया। कवि बांकिदास, कवि सूर्यमल्ल मिश्रण, शंकरदान सामौर, अर्जुन लाल सेठी तथा संपूर्ण परिवार राष्ट्र हित में बलिदान कर देने वाले महामानव केसरीसिंह बारहठ के विषय में विस्तृत लेख इस अंक का हिस्सा बने हैं। मात्र पुरुष ही नहीं अपितु नारी शक्ति भी स्वाधीनता संघर्ष में सर्वदा आगे रही। इस अंक में वीरांगना कलि देवी, अंजना देवी चौधरी, रमा देवी पाण्डे, नारायणी देवी, सत्यवती देवी, लक्ष्मी देवी आचार्य इत्यादि के शौर्य व धैर्य का परिचय मिलता है। ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान’ इस विषय पर डॉ. श्रीकांत ने अपने लेख में पूर्ण तथ्यों के साथ प्रकाश डाला है।

हुतात्मा भगत सिंह द्वारा स्वातंत्र्य वीर सावरकर के ग्रन्थ “1857 का स्वातंत्र्य समर” का प्रकाशन, बंग-भंग के विरुद्ध राष्ट्रीय एकत्व की भावना, स्वाधीनता संघर्ष में स्वदेशी की भूमिका जैसे लेख इतिहास को पुनः नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देते हैं।

इनके साथ अमृत महोत्सव की प्रासंगिकता तथा भारत निर्माण के प्रति हमारे दायित्व जैसे विषयों पर नव-विचारों का पोषण करते लेख हों या डाक टिकटों पर राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों के विषय में पाथेय कण का अपना संकलन; सभी लेख प्रामाणिकता, नवीनता, रोचकता तथा राष्ट्र के प्रति असीम श्रद्धा को रेखांकित करते हैं।

पाथेय कण के ‘स्वराज संघर्ष यात्रा विशेषांक’ को निजी साहित्य संग्रह में तो अवश्य ही स्थान दिया जाना चाहिए साथ ही दीपावली निमित्त आस-पास के बाल-वृन्द, स्वजनों, मित्र परिवार, संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों तथा विद्यार्थियों के लिए भी यह अनमोल उपहार सिद्ध होगा।

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1 thought on “पाथेय कण : स्वराज संघर्ष यात्रा विशेषांक (पुस्तक / पत्रिका परिचय)

  1. बहुत उरन भाषा शैली एवं विचार

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