पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण ही स्वतंत्रता तो नहीं
मीनाक्षी आचार्य
स्वतंत्रता से जीने का अधिकार सभी को चाहिए। लेकिन जब अधिकारों को कर्तव्यों से अधिक महत्व दिया जाता है तो समाज में द्वंद पैदा होने लगते हैं। एक ऐसा ही द्वंद आज भारत में युवा पीढ़ी को कुछ सोचने समझने और करने के लिए उकसा रहा है। अक्सर युवा स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर नहीं कर पाते और पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण कर इसी को स्वतंत्रता मान लेते हैं।
पश्चिमी देशों में बिना विवाह किए लड़का लड़की के एक साथ पति पत्नी की तरह रहने को बुरा नहीं माना जाता, जिसे आज लिव इन रिलेशनशिप कहा जाता है। अब यह संस्कृतेि भारत में भी अपनी जड़ें जमा रही है और इसे वैधानिक मान्यता भी मिल गई है। भारत जैसा देश जिसकी 80 प्रतिशत से अधिक जनता गांवों-कस्बों, छोटे शहरों में रहती है, जो अभी भी ऐसी सभ्यता से कोसों दूर है, वहॉं इस कानून का कितना औचित्य है यह भी चर्चा का एक विषय हो सकता है। लेकिन इतना तो साफ है कि आज युवाओं की जो उम्र अपनी प्रतिभा निखारने, नया कौशल सीखने या करियर बनाने की है उसमें वे भविष्य की चिंता किए बिना ऐसे दलदल में फंस रहे हैं जहां से निकलना अक्सर मुश्किल हो जाता है। यदि दोनों की रिलेशनशिप विवाह में बदल जाती है तो ठीक वरना जीवन में अवसाद, तनाव और आत्मग्लानि घर करने लगते हैं। रिलेशनशिप का दौर भी कम तनावयुक्त नहीं होता। यह आजादी कुछ इस प्रकार की है जिसमें दो युवा शारीरिक रूप से तो साथ में होते हैं लेकिन सामाजिक तौर पर उनके इस रिश्ते को कोई भी मजबूती नहीं मिलती है।
लिव इन रिलेशनशिप में एक साथ शादीशुदा जोड़े की तरह रहने की आजादी है लेकिन पति-पत्नी की तरह एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी व कर्तव्यों का भाव नहीं है। सुशांत राजपूत और रिया का रिश्ता इसका ताजा उदाहरण है। रिया ने सुशांत को नशे के गर्त में और गहरे ढकेला। यदि वह उसकी पत्नी होती तो उसे नशे से दूर करने की कोशिश करती। उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखती। जिन रिश्तों में सिर्फ अधिकारों की ही बात होती है, कर्तव्यों को दरकिनार कर दिया जाता है वे रिश्ते चाहे कितने भी पवित्र क्यों ना हो उन में दरार आना स्वाभाविक है।
जानवर भी अपना कर्तव्य समझकर अपने बच्चों का भरण पोषण करते हैं। पंछी भी एक-एक तिनका इकट्ठा कर घोंसला बनाते हैं, दाने का संग्रह करते हैं, और भविष्य में उन बच्चों को उड़ान के लिए हर दांव पेंच सिखाते हैं। जीवन जीने की कड़ी में सबसे पहले कर्तव्य पालन का गुण होना चाहिए क्योंकि अधिकार तो धीरे-धीरे स्वत: ही मिलने लगते हैं। लेकिन जब हमारे निजी स्वार्थ आजादी पाने की चेष्टा में कर्तव्यों के ऊपर हावी होने लगते हैं तब देश, समाज और परिवार खोखले होते जाते हैं।
आज लिव इन रिलेशन में यही हो रहा है। युवा जब तक अपने परिवार से जुड़ा रहता है, अपने रीति रिवाजों व परम्पराओं से भी जुड़ा रहता है। लेकिन परिवार से दूर होने पर महानगरों की चकाचौंध, वहॉं के स्वच्छंद विचारों के कारण वह ऐसी परिस्थितियों में धीरे-धीरे फंसता जाता है जहां पर नशा, ड्रग्स, शारीरिक संबंध जीने का आम तरीका है। तब माता पिता की छत्रछाया व समाज के कानून एक बेड़ी के रूप में लगने लगते हैं। फिर ऐसी ही बेड़ियों को तोड़ने के लिए युवाओं को उनके अधिकारों का हवाला देकर बरगलाया जाता है और उन्हें ऐसे जाल में धकेल दिया जाता है जहां पर अक्सर अवसाद और निराशा ही हाथ आते हैं। इस कानून के कारण मां-बाप बच्चों को समझाने का अधिकार खो देते हैं। समाज इन पर रोक टोक नहीं कर सकता है और युवा बिना किसी लक्ष्य के ऐसे दलदल में फंसते चले जाते हैं।