पुस्तक समीक्षा – भारत की भारतीय अवधारणा

विमर्श प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एवं श्री नरेंद्र ठाकुर द्वारा संपादित पुस्तक ‘भारत की भारतीय अवधारणा’ में विभिन्न विद्वत जनों के विचारों का समावेशन विभिन्न शिक्षाओं के अंतर्गत किया गया है। पुस्तक में देश में चल रहे मूलभूत वैचारिक संघर्ष का संदर्भ समझते हुए राष्ट्रीय दृष्टिकोण की स्थापना करने का प्रयास किया गया है, जिसमें सांसारिक विचार प्रवाह के संदर्भ में हिंदू विचार का आधार लेते हुए वैचारिक संस्थानों तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदू मूल्यों को जीवन पद्धति में स्वीकार करने हेतु आह्वान किया गया है। विदेशी मानसिकता से प्रेरित प्रत्येक विषय को विज्ञान, युद्ध तथा विचारधाराओं के दायरे में बांधकर धर्म की संकीर्ण परिभाषा देने वाली वामपंथी प्रवृत्ति से दूर हटकर सर्व समावेशन की व्यापक अवधारणा की उपादेयता को समझना अनिवार्य है। इसके लिए राष्ट्र की अवधारणा एवं इसकी प्रासंगिकता का विस्तृत विवरण इस पुस्तक में किया गया है, जिसे प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान के स्रोतों से पुष्ट किया गया है। भारत की भारतीय अवधारणा का संदर्भ देते हुए भारत की विविधता में एकता, सर्वे भवंतु सुखिनः तथा धर्मो रक्षति रक्षित: जैसी व्यापक एवं विवेकपूर्ण संस्कृति का लक्ष्य समझाते हुए बताया गया है कि धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं बल्कि समाज की धारणा करने वाली जीवन पद्धति है और समाज की स्वतंत्रता समाज में ही निहित है, जिसे पुनः पहचानने की आवश्यकता है। हमें अपनेपन की अनुभूति सर्वजन के साथ समझते हुए विरोधी शक्तियों के दमन के लिए एकत्रित होना होगा। इसी के साथ पुस्तक में भारत में ‘अर्थ’ शब्द के प्रयोग के साथ भारतीय और अ भारतीय दृष्टिकोण का भेद व्यापक रूप से समझाया गया है और भारतीय जीवन पद्धति में अर्थशास्त्र का वास्तविक हेतु, मर्यादित साधनों की प्रासंगिकता और सामाजिक हित वर्धन के प्रति कटिबद्धता का उल्लेख बहुत ही रूचि पूर्ण ढंग से किया गया है।

वर्तमान में भारत की नींव को सुदृढ़ करने के लिए सक्रिय प्रयास करने की आवश्यकता को समझने का यह पुस्तक एक युक्तियुक्त साधन है।

प्रीति शर्मा

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