बदमाशों ने अपनाया नया तरीका: लाॅकडाउन का पास बनवाकर कर रहे गोतस्करी
अलवर। कोरोना संक्रमण के दौर में सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं के परिवहन के अतिरिक्त सभी प्रकार वाहनों की आवाजाही पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन इसके बावजूद बदमाशों द्वारा खुलेआम गोतस्करी की जा रही है और वो भी अनुमति लेकर।
ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है अलवर जिले में, जहां नीमराणा पुलिस ने कंटेनर में भरकर तस्करी को ले जा रहे दो दर्जन गोवंश को मुक्त कराया है। पुलिस ने सड़क किनारे खड़े कंटेनर से आवाज व बदबू आने पर उसे खुलवाया तो उसमें 25 गोवंश ठूंस-ठूंसकर भरे हुए थे। जिन्हें मुक्त कराकर गोशाला छुड़वाया है।
हैरत की बात तो यह है कि पुलिस द्वारा जब्त किए गए महाराष्ट्र नंबर के कंटेनर के ग्लास पर अजमेर प्रशासन द्वारा जारी किया हुआ पास चिपकाया हुआ था, जिसमें एक गाय व बछड़े को अजमेर से उत्तराखण्ड ले जाने की अनुमति दी गई थी। ऐसे में बदमाश लाॅकडाउन के दौरान भी गोतस्करी का नया तरीका अपनाकर धड़ल्ले से गोवंश को बूचड़खानों में बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं और पुलिस-प्रशासन भी बिना किसी जांच-पडताल के गोवंश के परिवहन की परमिशन जारी कर घालमेल में जुटा हुआ है।
यूं तो राजस्थान ऐसा पहला प्रदेश है जहां गायों की देखभाल के लिए सरकार ने अलग से गोपालन विभाग बनाया हुआ है। यहां गोतस्करी को रोकने के लिए कड़ा कानून होने के बावजूद गोतस्करी बेधड़क जारी है। गोतस्करी रोकने के लिए सरकार ने अलग से विशेष पुलिस चौकियां भी बना रखी हैं। वहीं गो तस्करों की पुलिस से मुठभेड़ की घटनाएं अलवर और भरतपुर जिलों में आए दिन होती रहती हैं। इसके बावजूद पुलिस-प्रशासन गोतस्करी पर अंकुश लगाने में विफल साबित हो रहा है।
प्रदेश में 1995 में ही गोवध निषेध और गोसंवर्धन कानून बन गया था। इसमें गो तस्करी की रोकथाम के कड़े नियम हैं। अलवर और भरतपुर जिलों के मेव बहुल इलाकों में गायों की तस्करी की घटनाओं से ही पुलिस की कार्यशैली का प्रश्न खड़े हो जाते हैं। हालांकि अनेकों बार पुलिस इन्हें पकड़ने का प्रयास भी करती है।
पिछले सप्ताह भर में अलवर व भरतपुर पुलिस ने एक सौ से अधिक गोवंश को मुक्त कराने की कार्रवाई की है। भरतपुर के डीग में पुलिस व गोतस्करों के बीच मुठभेड़ हुई, इसी प्रकार टोंक में मृत गोवंश के अवशेष मिलने के मामले सामने आ चुके हैं।
तस्करी से कमा रहे मोटी रकम
मेवात क्षेत्र के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि मोटी कमाई के लालच में राजस्थान से हरियाणा में प्रतिदिन लगभग 200 से अधिक गोवंश की तस्करी हो रही है। गो-तस्कर को एक गाय की तस्करी के बदले 20 से 25 हजार रुपए मिल जाते हैं और तस्करी के लिए पूरी चेन बनी हुई है। पिछले दिनों राजस्थान पुलिस की जांच में सामने आया था कि देश में गोमांस को विदेशों में निर्यात करने वाली लगभग 22 कंपनियां हैं। इन कंपनियों के एजेंट हरियाणा, राजस्थान में सक्रिय हैं, जो मेव समाज के युवाओं को गो-तस्करी में शामिल करते हैं। पुलिस की जांच में सामने आया कि गिरफ्तार हुए अधिकांश तस्कर हरियाणा के नूंह मेवात क्षेत्र के हैं।
गो-तस्कर आवारा गायों के साथ ही दूध देना बंद करने वाली गायों की तस्करी कर हरियाणा और उत्तर प्रदेश ले जाते हैं। अधिकांश तस्करी मेवात में हो रही है। तस्करों ने पिछले छह माह में बछड़ों की तस्करी भी बढ़ाई है। पुलिस का कहना है कि तस्करी कराने वाली बड़ी कंपनियों के एजेंट मेवात के युवाओं को आत्मरक्षा के लिए हथियार भी उपलब्ध कराते हैं। तस्कर मुठभेड़ के दौरान इन हथियारों का प्रयोग करते हैं।
बहुत ही तथ्यपरक और सुंदर तरीके से लिखा गया लेख। आश्चर्य है कि लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों में जब पुलिस एकदम मुस्तैद है और जिलों की सीमायें सील है तब भी गौतस्करों के हौसले इतने बुलंद है।
तब फिर सामान्य परिस्थितियों में तो क्या ही इनके ऊपर शिकंजा कसा जा सकेगा !