बिन बुलाए मेहमान (व्यंग्य)
शुभम वैष्णव
एक आदमी बिन बुलाए मेहमान की तरह परिचित के घर पहुंच गया। लेकिन परिचित ने उससे बात ही नहीं की। जब वह व्यक्ति अपमान का घूंट पीकर मुंह लटकाए अपने घर लौटा तो घर वालों ने तो खूब खरी खोटी सुनाई और पड़ोसी खूब हंसे।
वह अपने मन में न जाने कितने सपने सजाए अपने पड़ोसी की शिकायतें करने पहुंचा था। उसने तो सोचा था कि जब वह वहां जाएगा तो उस घर का मालिक उसे गले लगा लेगा और फूल माला पहनाकर उसका स्वागत करेगा। उसने सोचा था कि तब वह जोर-जोर से फूट-फूटकर रोएगा, अपना और अपने देश का दुखड़ा सुनाएगा। अपने पड़ोसी को कोसेगा, कश्मीर का रोना रोएगा, फिर मदद की भीख मांगेगा, साथ ही मौका पाकर चंदे के लिए अपना कटोरा आगे कर देगा।
परंतु उसके सारे इरादों पर पानी फिर गया। उसे वहां जाकर मुंह की खानी पड़ी। बेचारे से किसी ने खाने तक के लिए नहीं पूछा। वह जिससे मिलने गया था उसी ने उससे मिलने से इनकार कर दिया। सबने सोचा भला उसने इतना अपमान कैसे सहन किया होगा। लेकिन सबको याद आया कि अपमान सहने की तो इन्हें पुरानी आदत है। क्या करें अपनी आदत से मजबूर हैं। भीख मांगने और झूठे आंसू बहाने की आदत अभी तक नहीं गई। चंदा मांगने की तो जैसे लत पड़ गई है। क्या करें आदत ही ऐसी है जो जाती ही नहीं। लेकिन आज उसे समझ आ चुका था कि बिन बुलाए मेहमान बनने का क्या हश्र होता है।
सचिन ने मैदान में जैसा हश्र उसके आका इमरान खान का किया था, सऊदी अरब ने भी ऐसा ही हश्र पाकिस्तान के काका जनरल बाजवा का कर दिया है। कैसी गजब विडंबना है भारत की शिकायतें सुनाने पहुंचे जनरल की सऊदी अरब में किसी ने एक न सुनी। बिन बुलाए मेहमान की मेजबानी करने का यही सही तरीका है।