मत बहाओ व्यर्थ पानी
भंवरसिंह राजपुरोहित
मत बहाओ व्यर्थ पानी, कल प्यासे मर जाओगे।
नहीं बरसेगा बादल तो, अन्न कहां से उगाओगे।
बना दिये लाखों उपकरण, पर जल कैसे बनाओगे।
मत बहाओ व्यर्थ में जल, कल प्यासे ही मर जाओगे।
सूख जाएंगे पेड़-पौधे, सूख जाएगी फुलवारी।
एक कतरा पानी के लिए तरसेगी, अगली पीढ़ी तुम्हारी।
फिर से इस दुनिया पर, जीवन कैसे लाओगे।
मत बहाओ व्यर्थ में पानी, कल प्यासे ही मर जाओगे।
रोना भी होगा अगर करनी पे अपनी तो आंसू कहाँ से लाओगे।
यह धरा काली पड़ जाएगी, यदि पानी व्यर्थ बहाओगे।
मत बहाओ जल व्यर्थ, कल प्यासे ही मर जाओगे।
क्यों बन रहे कातिल सब, आने वाली पीढ़ी के।
मत रखो अपने मन से पांव, मौत की सीढ़ी पे।
खुद बनाओ अपने कल को, मत बहाओ अपने जल को।
नया सवेरा तुम अपने हाथों से लगाओगे।
मत बहाओ व्यर्थ में जल, कल प्यासे ही मर जाओगे।।
बहुत सुंदर रचना