मनोरंजन है बलात्कार?

मनोरंजन है बलात्कार?

दीप्ति शर्मा

मनोरंजन है बलात्कार?

विकलांग सोच से पोषित इज्ज़त के शिकारी बलात्कार का दंश समाज एवं देश को दिए जा रहे हैं, और लुटती, मरती, सड़कों पर लहूलुहान बेटियां न्याय के लिए आवाज़ लगाए जा रही हैं। वहशी सोच वाले ऐसे दरिंदों की सूचियां आज हमारे देश में लम्बी हो चली हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी रक्षा का आश्वासन पाने को हजारों नारियां आज भी देश के शिक्षित समाज और मर्यादित पौरुष शक्ति को आशा की दृष्टि से देख रही हैं।

कहते हैं, “जीवन के साज पे जब दर्द भरी शक्ति चीख गूंजती है तब कहीं एक नव जीवन को उदय मिलता है, और दुष्कर्म के वार से जब दर्द भरी आह चीख गूंजती है तब समस्त नारी जगत को मृत्यु दण्ड मिलता है।”

गर्भ के द्वारा जब एक नव जीवन इस सुंदर अद्भुत दुनिया में आता है तो हजारों हड्डियों के टूटने के दर्द से मॉं कराह उठती है। स्त्री सृष्टि सृजन के लिए अपने आप को मौत के दरवाज़े तक ले जाती है, तब जा कर मानव संरचना पूर्ण रूप ले पाती है। इसी के अन्तर्गत इस सृष्टि की संरचना का क्रम जारी है।

आज उसी पुण्य गर्भद्वार को आदमखोर रूपी वहशी मानुष भेड़िए सिर्फ अपने पापी कृत्यों का मनोरंजन मात्र समझ मां के सीने को हर दिन किसी न किसी कोने में निर्दयता से नोचते हुए नष्ट-भ्रष्ट करने में लगे हैं। सत्य तो यह है कि वे इस सुंदर प्रकृति, ईश्वर के सबसे बड़े आशीर्वाद को नर्क का रूप दे रहे हैं।

साल 2022 के प्रथम माह के 10 दिन ही व्यतीत हुए हैं कि ठिठुरन भरी सर्दी के कड़कड़ाते गुप्त अंधेरे में फिर कुछ राक्षसों ने अपनी वीभत्स सोच को ऐसा अंजाम दिया है मानों डंके की चोट पर बता रहे हों कि मानवता और नारी बस नोचने खसोटने की वस्तु मात्र है।

देश की राजधानी के समीप बसे राजस्थान के अलवर जिले में एक मूक-बधिर 16 साल की बच्ची से दरिंदगी की हद पार करने के बाद उसकी आत्मा को निचोड़कर एवं उसके शरीर को घावों के नुकीले प्रहार देकर राक्षसों की टोली ने उसे फेंक दिया।

माह भर की बच्ची हो या बुजुर्ग उम्रदराज महिला, आज का सच यही है कि वह सिर्फ ऐसे वहशियों के लिए एक नारी शरीर जीवंत प्राण न होकर चन्द मिनटों का भोग रूपी मांस का लोथड़ा मात्र है।

अब न जाने ये राक्षस ऐसे कृत्य को अंजाम देकर किस घर, किस शहर, किस मां की कोख को शर्मिन्दा करने कहां पहुंच गए होंगे। हो सकता है जो लोग यह सोच कर शांत अपने घरों में सुरक्षित बैठे हैं कि “बहुत बुरा हुआ, परन्तु हम कर भी क्या सकते हैं” उन्हीं हम में से किसी के आस-पास यह खौफनाक नरभक्षी अगले बर्बरतापूर्ण मनोरंजन/भोग को ढूंढ रहे हों?

बलात्कार कहने को तो नारी का घोर अपमान उसके शरीर का तिरस्कार है, परन्तु समाज और देश भुला बैठा है कि जिस नारी का बलात्कार होता है बेशक शरीर उसका होता है, परन्तु भक्षण सम्पूर्ण देश और समाज की पवित्र आत्मा का होता है।

शरीर नोचने वाले, किसी के प्राण को निर्दयता से मृत्यु के दरवाज़े तक पहुंचाने से इसलिए नहीं डरते क्योंकि वे जानते हैं की उनके आस – पास रहने वाले सब सज्जन सिर्फ घर में आवाज़ ऊंची कर सकते हैं बाहर नहीं।

वे पकड़े नहीं जाते इसलिए नहीं कि वे अदृश्य हो जाना जानते हों, अपितु इसलिए क्योंकि उन्हें संरक्षण देने वाले भी हमारे बीच ही उपस्थित होते हैं। वे डरते नहीं क्योंकि न्यायशास्त्र छोटे अपवादों को शस्त्र दिखाता है वहीं घिनौने ‌अपराधों को ‌आंख मूंद कर तारीखों के कटघरे में समय व्यतीत करवाता है।

वे हजारों की संख्या में पनप रहें है, अपनी मां की कोख से नहीं, बल्कि संवेदनाओं को ताक पर रख कर अभद्र अश्लीलता से सम्बंधित सामग्री जो सामाजिक पटल पर धड़ल्ले से व्यापार का चोला ओढ़ाकर ज़हर रूप में परोसकर दी जा रही है के कारण।

यह कैसा प्रगतिशील समाज बन रहा है जहां ज्ञान, संस्कृति, संस्कार, सम्मान, संवेदना, सुरक्षित प्रकाश कम और अज्ञान, कुसंस्कार, अपमान, असंवेदनशीलता, असुरक्षित अंधेरा ज्यादा फ़ैल रहा है।

देश की राजधानी जहरीली हवाओं से भर गई है वहीं बलात्कार जैसी दरिंदगी मानों देश की संवेदनशील जड़ों को खोखला कर रही है। सबसे हास्यास्पद स्थिति ऐसे संवेदनशील हालातों में तब पैदा होती है, जब दमघोंटू दरिंदगी की घटनाएं चटपटी कहानियां और मसालेदार किस्से तो बन जाती हैं, परन्तु सारे प्रयास सत्य – असत्य की नोंक पर हर बार महिला को ही कसौटी पर कसने में लगा दिए जाते हैं।

सवाल —– इस अतिमहत्वपूर्ण विषय पर कब एकत्रित होगा पूरा देश?

बलात्कार मनोरंजन है?

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