हमारे किसान और गांव आत्मनिर्भर भारत का आधार हैं – मन की बात में पीएम
आकाशवाणी पर मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात की 69वीं कड़ी में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा देश का कृषि क्षेत्र, हमारे किसान और गांव आत्मनिर्भर भारत का आधार हैं। ये मजबूत होंगे तो आत्मनिर्भर भारत की नींव मजबूत होगी। उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात के कई सफल किसानों की कहानी सुनाई। हरियाणा के सोनीपत जिले के किसान कंवर चौहान की कहानी सुनाते हुए उन्होंने बताया कि एक समय था जब कंवर चौहान को मंडी से बाहर अपने फल और सब्जियां बेचने में बहुत दिक्कत आती थी। वर्ष 2014 में फल और सब्जियों को एपीएमसी कानून से बाहर कर देने पर उन्हें व अन्य किसानों को फायदा हुआ। आज वह स्वीट कॉर्न और बेबी कार्न की खेती कर रहे हैं। इससे उनकी सालाना कमाई ढाई से तीन लाख रुपए प्रति एकड़ है।
मन की बात में पीएम ने कहा कि कृषि क्षेत्र में नए सुधारों के बाद अब किसानों को नई ताकत मिली है। अब वे फल सब्जियां ही नहीं दूसरी फसलें – गेहूं, धान, सरसों, गन्ना आदि कुछ भी कहीं भी, जहॉं उन्हें अधिक दाम मिलें, बेचने के लिए स्वतंत्र हैं।
प्रधानमंत्री ने मन की बात में आज स्वयं कई कहानियां सुनाने के साथ ही कहानी सुनाने की कला की विधा की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कहानियों का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी मानव सभ्यता। कहानियाँ, लोगों के रचनात्मक और संवेदनशील पक्ष को सामने लाती हैं। उन्होंने अपने परिव्राजक जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि उस दौर में जब वे परिवारों में जाते थे तो बच्चों से जरूर बात करते थे। बच्चों को कहानी सुनाने का कहने पर वे चुटकुले सुनाते थे और उनसे भी चुटकुला सुनाने का आग्रह करते थे। इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि उन बच्चों का कहानी से कोई परिचय ही नहीं था। उनमें से ज्यादातर की जिंदगी चुटकुलों में समाहित हो गई थी।
उन्होंने कहा हमारे देश में हितोपदेश और पंचतंत्र की परंपरा रही है, जहाँ कहानियों में पशु-पक्षियों और परियों की काल्पनिक दुनिया गढ़ी गई, ताकि विवेक और बुद्धिमता की बातों को आसानी से समझाया जा सके। प्रधानमंत्री ने कहा परिवार में कहानी सुनाने की परम्परा विकसित होनी चाहिए। इसके लिए संवेदनशीलता, करुणा, पराक्रम, शौर्य, त्याग जैसे विषय चुनकर प्रति सप्ताह कहानी सुना सकते हैं। 28 सितम्बर को भगतसिंह की जयंती है। उन्होंने उनको याद करते हुए भी एक कहानी सुनाई :
“एक-सौ-एक साल पुरानी बात है। 1919 का साल था। अंग्रेजी हुकूमत ने जलियाँवाला बाग़ में निर्दोष लोगों का कत्लेआम किया था। इस नरसंहार के बाद एक बारह साल का लड़का उस घटनास्थल पर गया। वह खुशमिज़ाज और चंचल बालक, लेकिन, उसने जलियाँवाला बाग में जो देखा, वह उसकी सोच के परे था। वह स्तब्ध था, यह सोचकर कि कोई भी इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। वह मासूम गुस्से की आग में जलने लगा था। उसी जलियाँवाला बाग़ में उसने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ने की कसम खाई। क्या आपको पता चला कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ? हाँ! मैं, शहीद वीर भगत सिंह की बात कर रहा हूँ। कल, 28 सितम्बर को हम शहीद वीर भगत सिंह की जयन्ती मनाएँगे। मैं, समस्त देशवासियों के साथ साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति शहीद वीर भगत सिंह को नमन करता हूँ। क्या आप कल्पना कर सकते हैं, एक हुकूमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, इसके बारे में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी ताकतवर हुकूमत, एक 23 साल के युवक से भयभीत हो गई थी। शहीद भगत सिंह पराक्रमी होने के साथ-साथ विद्वान भी थे, चिन्तक थे। अपने जीवन की चिंता किए बगैर भगत सिंह और उनके क्रांतिवीर साथियों ने ऐसे साहसिक कार्यों को अंजाम दिया, जिनका देश की आज़ादी में बहुत बड़ा योगदान रहा। शहीद वीर भगत सिंह के जीवन का एक और खूबसूरत पहलू यह है कि वे टीम वर्क के महत्व को बख़ूबी समझते थे। लाला लाजपत राय के प्रति उनका समर्पण हो या फिर चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु समेत क्रांतिकारियों के साथ उनका जुड़ाव, उनके लिए, कभी व्यक्तिगत गौरव, महत्वपूर्ण नहीं रहा।”