कांग्रेस सरकार ने मेवात क्षेत्र के नाम से संचालित योजना का लाभ मेव आबादी तक सीमित किया

कांग्रेस सरकार ने मेवात क्षेत्र के नाम से संचालित योजना का लाभ मेव आबादी तक सीमित किया

कांग्रेस सरकार ने मेवात क्षेत्र के नाम से संचालित योजना का लाभ मेव आबादी तक सीमित कियाकांग्रेस सरकार ने मेवात क्षेत्र के नाम से संचालित योजना का लाभ मेव आबादी तक सीमित किया

जयपुर। राजस्थान में सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का एक और नमूना सामने आया है। राज्य सरकार की ओर से जो योजना पूरे मेवात क्षेत्र के विकास के लिए चलाई जाती थी, उस योजना को अब सिर्फ उन गांवों तक सीमित कर दिया गया है जहां मेव आबादी 10 प्रतिशत या इससे अधिक है।

सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत प्रदेश के विशेष आवश्यकता वाले जिलों में विकास कार्यों के लिए चार अलग बोर्ड बने हुए हैं। इनमें सीमांत क्षेत्र विकास बोर्ड, मगरा क्षेत्रीय विकास बोर्ड, डांग क्षेत्रीय विकास बोर्ड व मेवात क्षेत्रीय विकास बोर्ड शामिल हैं। इन बोर्डों के जरिए इन विशेष आवश्यकता वाले क्षेत्रों के लिए विकास कार्य कराए जाते हैं।
इन्हीं में शामिल मेवात विकास बोर्ड प्रदेश के अलवर और भरतपुर जिलों में स्थित मेवात क्षेत्र में विकास कार्य कराता है। बोर्ड के वर्तमान अध्यक्ष कांग्रेस के पूर्व विधायक और वरिष्ठ नेता जुबेर खान हैं। इनकी पत्नी साफिया जुबेर अभी कांग्रेस की विधायक हैं।

मेवात क्षेत्र के लिए यह योजना और बोर्ड कई वर्षों से संचालित है। इसमें पहले प्रावधान था कि सर्वे में चयनित मेव आबादी के गांव को सम्बन्धित ग्राम पंचायत क्षेत्र के अन्य गांवों से जोड़ कर पूरे पंचायत क्षेत्र को लाभान्वित किया जाता था। यानी विकास कार्यों का लाभ उस पूरे क्षेत्र को मिलता था, जो मेवात क्षेत्र में आता है। यही इस योजना का उद्देश्य भी था कि विकास योजना का लाभ मेवात क्षेत्र को मिले, लेकिन कुछ समय पहले बोर्ड ने यह व्यवस्था बदल दी है।

अब यह तय किया गया है कि जिन गांवों में मेव आबादी दस प्रतिशत या इससे अधिक है, उन्हीं में मेवात विकास योजना का पैसा खर्च किया जाएगा। यानी जिस गांव में मेव आबादी दस प्रतिशत या इससे अधिक होगी, उनमें योजना के अंतर्गत विकास कार्य होंगे। इस निर्णय के पीछे तर्क यह दिया गया है कि पहले की व्यवस्था में मेव आबादी विहीन गांवों में आधारभूत संरचनाएं स्वीकृत हो जाती थीं और मेव बाहुल्य क्षेत्र के गांव वंचित रह जाते थे। ऐसे में अब मेव आबादी के रहवासी ग्राम को ही योजना के अंतर्गत इकाई माना जाएगा। यानी जो योजना मेवात क्षेत्र के नाम पर संचालित है, उसे सिर्फ मेव आबादी तक सीमित कर दिया गया है, जबकि इस क्षेत्र में बहुत से गांव ऐसे हैं जहां मेवों के अलावा अन्य समुदायों के लोग भी रहते हैं। अब इन लोगों को मेवात विकास योजना का लाभ नहीं मिलेगा।

इस निर्णय का असर भी नजर आया है। पिछले दिनों बोर्ड की वार्षिक योजना के अंतर्गत 44 काम स्वीकृत किए गए हैं। इनमें से 34 काम कब्रिस्तान की चारदीवारी के निर्माण के हैं। वहीं सिर्फ चार काम श्मशान की चारदीवारी के निर्माण के हैं। पांच काम स्कूलों में कमरों के निर्माण के हैं और एक काम सड़क निर्माण का है। प्रश्न यह है कि जो योजना क्षेत्र के नाम से संचालित है, उसे सिर्फ मेव समुदाय तक सीमित कैसे किया जा सकता है? इस पूरे क्षेत्र में हिन्दू आबादी पहले ही तेजी से कम हो रही है, यहॉं मेव बहुसंख्यक हैं और हिन्दुओं के लिए क्षेत्र में रहना मुश्किल होता जा रहा है। इस तरह की कई मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ चुकी हैं, जिनमें बताया गया है कि कैसे यहां हिन्दुओं को कन्वर्जन के लिए मजबूर किया जा रहा है और नहीं मानने पर प्रताड़ित किया जा रहा है, वहीं हिन्दू मंदिरों को मस्जिदों में बदला जा रहा है।

मेवात क्षेत्र प्रदेश में साइबर ठगी का नया केन्द्र बन कर भी सामने आया है और प्रदेश की पुलिस ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है कि प्रदेश में साइबर ठगी के ज्यादातर मामले मेवात क्षेत्र से सामने आ रहे हैं।

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