मतांतरण ने मेवात का मूल चरित्र ही बदल दिया
डॉ. शुचि चौहान
मेवात एक भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के कुछ सीमावर्ती स्थान आते हैं। यहॉं मेव समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं। एक समय में पूरा मेव समाज हिंदू था और अपनी बहादुरी, गोपालन और कृषि कार्यों के लिए जाना जाता था। लेकिन बार बार के मतांतरण ने मेवात के मूल चरित्र को ही बदल दिया। सन् 712 में मोहम्मद बिन कासिम के समय में पहली बार, सन् 1053 में सैय्यद सालार मसूद गाजी (महमूद गजनवी के भांजे) के समय में दूसरी बार, वर्ष 1192-93 में बल्बन के समय में तीसरी बार और 1358 में फिरोजशाह तुगलक के शासन में चौथी बार बड़े पैमाने पर हिंदुओं को मतांतरित किया गया। इन लोगों ने उस समय के हालातों से समझौता करते हुए इस्लाम तो अपना लिया लेकिन इस्लामिक तौर तरीके नहीं अपना सके। 70-80 के दशक तक भी ये काफी हद तक अपनी जड़ों से जुड़े थे। होली दीवाली जैसे सभी हिंदू त्योहार मनाते थे। बच्चों के विवाह भी हिंदू रीति रिवाजों से होते थे, पहनावा भी हिंदू था। नमाज पढ़ने में इनकी कोई रुचि नहीं थी। कइयों को तो कलमा पढ़ना भी नहीं आता था। यह बात तब्लीगी जमात को खटकती थी।
तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में ऐसे ही मतांतरित मुसलमानों को पक्का मुसलमान बनाने के उद्देश्य से हुई थी। कहते हैं किसी को पथभ्रष्ट करना हो तो उसे उसकी जड़ों से काट दो, उसे उसके मूल जुड़ाव से दूर कर दो। तलवार के बल पर इंसान के भौतिक क्रिया कलापों को तो बदला जा सकता है उसकी सोच को नहीं। इस बात को तब्लीगी जमात के संस्थापक इलियास कंधालवी ने बखूबी समझा और उसने मेव जो मतांतरित होकर भी हिंदू समाज के साथ मिलजुल कर रहते थे- को तोड़ना शुरू किया। उन्हें अपने पूर्वजों के रीति-रिवाजों से घृणा करना सिखाया गया। उन्हें अहसास कराया गया कि हिंदू काफिर हैं, तुम इनसे अलग हो। तुम्हारा रहन सहन, पहनावा, पूजा पद्धति सब कुछ हिंदुओं से अलग है। धीरे धीरे मेव मुसलमानों को शरीयत पाबंद बनाने की कोशिशें रंग लाने लगीं।
मौलाना वहीदुद्दीन लिखते हैं कि कुछ दिन तक इस्लामी व्यवहार का प्रशिक्षण देकर उन्हें ‘नया मनुष्य बना दिया गया’ और वास्तव में वहॉं के मेव मुसलमानों के रहन सहन, पहनावे व सोच में बड़ा बदलाव आया है। अब वे हिंदू त्योहार नहीं मनाते, महिलाएं बुरका तो पुरुष लम्बा कुरता और छोटा पजामा पहनते हैं। गाय पूजने वाले अब गाय काटते हैं, गोमांस खाते हैं और गोतस्करी करते हैं।
इस्लाम हर सम्भव तरीके से संख्या बल बढ़ाने पर जोर देता है। इसके लिए लव जिहाद, दुष्कर्म, अपहरण और जबरदस्ती निकाह कर देने जैसे तरीके काम में लिए जाते हैं। राजस्थान में दुष्कर्म की जितनी घटनाएं होती हैं उनकी एक बड़ी संख्या मेवात में हुए दुष्कर्मों की होती है।
कुछ समय पहले अलवर जिले की रामगढ़ तहसील का मुद्दा सुर्खियां बना जब एक नाबालिग लड़की ने बार बार के दुष्कर्म से परेशान होकर कुएं में कूदकर आत्महत्या का प्रयास किया लेकिन परिवार वालों द्वारा बचा ली गई। बाद में अनीश खान, तौफीक के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई गई। लड़की के कोर्ट में बयान होते उससे कुछ घंटे पहले लड़की के पिता की हत्या कर दी गई। इस तरह की घटनाएं यहॉं के लोगों के लिए नई नहीं हैं।
खानवा के युद्ध में राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाले हसन खां मेवाती का मेवात अब हर तरह के अपराधों का केंद्र बिंदु बन चुका है। अब यह गोतस्करी और दुष्कर्मों के लिए ही नहीं बल्कि जमीन जिहाद, वाहन चोरी, फिरौती, हत्या और ठगी के लिए भी जाना जाता है। अराजकता और दादागीरी की स्थिति यह है कि गैर मुस्लिमों का वहॉं रहना मुश्किल हो गया है। वे पलायन के लिए मजबूर हैं। पिछले कुछ वर्षों में इन स्थानों की डेमोग्राफी तेजी से बदली है। यहॉं के अनेक गॉंव या तो हिंदू विहीन हो गए हैं या होने की कगार पर हैं। इस्लामिक शिक्षा की आड़ में मतांतरण का धंधा भी खूब फल फूल रहा है। मस्जिदों व मदरसों की संख्या तेजी से बढ़ी है। राजनीतिक दलों की दखलंदाजी बढ़ने के बाद तो स्थिति भयावह हो गई है। कोई इन्हें अपना वोट बैंक मानकर राजनीतिक संरक्षण देता है तो कोई दंगा भड़कने के डर से इन मामलों में हाथ ही नहीं डालना चाहता। पीड़ितों की प्रशासन के चक्कर काटते काटते चप्पलें घिस जाती हैं, अधिकांश मामलों में कोई सुनवाई नहीं होती।
आज मेवात क्षेत्र प्रदेश का सबसे पिछड़ा इलाका है। इसके उत्थान व युवाओं के स्वावलम्बन के लिए सरकार द्वारा अनेक स्कीमें लाई गईं। वर्ष 1987-88 में क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के नाम से एक कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया जो विशेष रूप से अलवर जिले की 8 मेव बाहुल्य पंचायत समितियों – लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, तिजारा, मुण्डावर, किशनगढ़बास, कठूमर, उमरेण एवं कोटकासिम तथा भरतपुर की 4 पंचायत समितियों – नगर, डीग, कामां एवं पहाड़ी में क्रियान्वित किया जा रहा है। करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद भी यहॉं कोई सकारात्मक परिवर्तन नजर नहीं आता। अधिकांश युवा आज भी लूटमार, ठगी, फिरौती, गोतस्करी, अपहरण, वाहन चोरी जैसे अपराधों में लिप्त हैं। उन्हें इनसे इतनी कमाई हो जाती है कि वे मुख्यधारा में आना ही नहीं चाहते। दूसरी ओर इनकी मजहबी शि़क्षा इनके अंदर इतना जिहाद भर देती है कि इनका मन मस्तिष्क वहीं पर केंद्रित होकर रह जाता है। मुल्ला मौलवियों से जिहाद के नाम पर भी इन्हें भरपूर पैसा मिलता है।
हमारे राजनीतिक दल मुल्ला मौलवियों को पालते पोसते हैं। इस्लामी नेताओं, संस्थानों, संगठनों आदि को सम्मान, अनुदान, संरक्षण खूब मिलता है लेकिन यह पैसा खर्च कहॉं और कैसे हो रहा है इसका कभी कोई आंकलन नहीं होता। फलत: अंदर ही अंदर ऐसे कुचक्र चलते रहते हैं और तब्लीगी जमात जैसी जमातें व जाकिर नाइक जैसे लोग समाज को बांटने का काम करते हुए भी फलते फूलते रहते हैं।