मेवात विकास अभिकरण नूंह बना मुस्लिम विकास अभिकरण
मेवात विकास बोर्ड द्वारा संचालित मेवात विकास अभिकरण की स्थापना मेवात के विकास के लिए की गई थी। जिसका मुख्य उद्देश्य मेवात में शिक्षा, स्वास्थ्य, सामुदायिक कार्य, पशुपालन, कृषि, वन, सांस्कृतिक एवं सामुदायिक विकास, खेल एवं अन्य गतिविधियों को बढ़ावा देना है। लेकिन अभिकरण जिस तरह से काम कर रहा है उससे लगता है उसे सिर्फ मुसलमानों की ही चिंता है पूरे मेवात की नहीं।
हाल ही में यहॉं D.Ed की 50 सीटों पर प्रवेश के लिए एक विज्ञापन जारी हुआ है जिसमें लिखा है कुल सीटों का 50 प्रतिशत यानि 25 सीटें मेव मुस्लिम महिलाओं/लड़कियों के लिए आरक्षित हैं। बाकी बची 25 सीटों को लेकर निर्देश दिए गए हैं कि उन पर आरक्षण हिदायतानुसार होगा और अभ्यर्थी के चयन का आधार मेरिट होगा। इस पर कई सवाल उठते हैं- क्या वहॉं रह रहे अल्पसंख्यक हिंदू व अन्य समुदाय मेवात का हिस्सा नहीं? मेवात के उत्थान के लिए क्या वहॉं के हिंदुओं व अन्य समुदायों का उत्थान आवश्यक नहीं? मुस्लिमों द्वारा सताए जा रहे गैर मुस्लिमों पर दोहरी मार क्यों? जब भारत सेक्युलर देश है तो धर्म आधारित आऱक्षण क्यों? पहले से ही पीड़ित गैर मुस्लिम समाज पर क्या यह एक सरकारी हमला नहीं? वहॉं का गैर मुस्लिम समाज लव जिहाद, मतांतरण, अपनी धार्मिक आस्थाओं पर चोट जैसे मुद्दों पर पहले ही संघर्ष कर रहा है। क्षेत्र में जिस तरह से आए दिन उनके उत्पीड़न और उनकी बहन बेटियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं होती रहती हैं उनके कारण वे या तो पलायन कर रहे हैं या मतांतरण के लिए मजबूर हैं। बहुसंख्यक मुस्लिमों के डर से वे अपनी लड़कियों को अधिक पढ़ने भी नहीं देते। ऐसे में मेवात के उत्थान के नाम पर सिर्फ मुसलमान लड़कियों को ही आरक्षण देना कितना उचित है? सरकार की ऐसी नीतियों से वहॉं का गैर मुस्लिम समाज क्या अपने आपको कमजोर महसूस नहीं करेगा? आज मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में उठाए जा रहे कदमों से किसी को कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेवात में भी मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बताकर ऐसा भेदभाव अन्य धर्म की महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित करता है और मेवात प्रशासन पर सवालिया चिह्न लगाता है। खट्टर सरकार को इस पर एक बार विचार अवश्य करना चाहिए।