गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संदेश

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संदेश

संबोधन के कुछ अंश

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संदेश

इतनी विशाल आबादी वाले हमारे देश को खाद्यान्न एवं डेयरी उत्पादों में आत्म-निर्भर बनाने वाले हमारे किसान भाई-बहनों का सभी देशवासी हृदय से अभिनंदन करते हैं। विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों, अनेक चुनौतियों और कोविड की आपदा के बावजूद हमारे किसान भाई-बहनों ने कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं आने दी। यह कृतज्ञ देश हमारे अन्नदाता किसानों के कल्याण के लिए पूर्णतया प्रतिबद्ध है।

जिस प्रकार हमारे परिश्रमी किसान देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सफल रहे हैं, उसी तरह, हमारी सेनाओं के बहादुर जवान, कठोरतम परिस्थितियों में, देश की सीमाओं की सुरक्षा करते रहे हैं। लद्दाख में स्थित, सियाचिन व गलवान घाटी में, माइनस 50 से 60 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान में, सब कुछ जमा देने वाली सर्दी से लेकर, जैसलमर में, 50 डिग्री सेन्टीग्रेड से ऊपर के तापमान में, झुलसा देने वाली गर्मी में – धरती, आकाश और विशाल तटीय क्षेत्रों में – हमारे सेनानी भारत की सुरक्षा का दायित्व हर पल निभाते हैं. हमारे सैनिकों की बहादुरी, देशप्रेम और बलिदान पर हम सभी देशवासियों को गर्व है।

खाद्य सुरक्षा, सैन्य सुरक्षा, आपदाओं तथा बीमारी से सुरक्षा एवं विकास के विभिन्न क्षेत्रों में, हमारे वैज्ञानिकों ने अपने योगदान से राष्ट्रीय प्रयासों को शक्ति दी है। अन्तरिक्ष से लेकर खेत-खलिहानों तक, शिक्षण संस्थानों से लेकर अस्पतालों तक, वैज्ञानिक समुदाय ने हमारे जीवन और कामकाज को बेहतर बनाया है। दिन-रात परिश्रम करते हुए कोरोना-वायरस को डी-कोड करके तथा बहुत कम समय में ही वैक्सीन को विकसित करके, हमारे वैज्ञानिकों ने पूरी मानवता के कल्याण हेतु एक नया इतिहास रचा है। देश में इस महामारी पर काबू पाने में, तथा विकसित देशों की तुलना में, मृत्यु दर को सीमित रख पाने में भी हमारे वैज्ञानिकों ने डॉक्टरों, प्रशासन तथा अन्य लोगों के साथ मिलकर अमूल्य योगदान दिया है। इस प्रकार, हमारे सभी किसान, जवान और वैज्ञानिक विशेष बधाई के पात्र हैं और कृतज्ञ राष्ट्र गणतन्त्र दिवस के शुभ अवसर पर इन सभी का अभिनंदन करता है।

पिछले वर्ष, जब पूरी मानवता एक विकराल आपदा का सामना करते हुए ठहर सी गई थी, उस दौरान, मैं भारतीय संविधान के मूल तत्वों पर मनन करता रहा। मेरा मानना है कि बंधुता के हमारे संवैधानिक आदर्श के बल पर ही, इस संकट का प्रभावी ढंग से सामना करना संभव हो सका है। कोरोना-वायरस रूपी शत्रु के सम्मुख देशवासियों ने परिवार की तरह एकजुट होकर, अनुकरणीय त्याग, सेवा तथा बलिदान का परिचय देते हुए एक-दूसरे की रक्षा की है. मैं यहां उन डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य-कर्मियों, स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े प्रशासकों और सफाई-कर्मियों का उल्लेख करना चाहता हूं, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर पीड़ितों की देखभाल की है। बहुतों ने तो अपने प्राण भी गंवा दिए. इनके साथ-साथ, इस महामारी ने, देश के लगभग डेढ़ लाख नागरिकों को, अपनी चपेट में ले लिया। उन सभी के शोक संतप्त परिवारों के प्रति, मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूँ। कोरोना के मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं के रूप में हमारे साधारण नागरिकों ने असाधारण योगदान दिया है। आने वाली पीढ़ियों के लोग जब इस दौर का इतिहास जानेंगे, तो इस आकस्मिक संकट का जिस साहस के साथ आप सबने सामना किया है उसके प्रति, वे श्रद्धा से नतमस्तक हो जाएंगे।

आत्म-निर्भर भारत ने, कोरोना-वायरस से बचाव के लिए अपनी खुद की वैक्सीन भी बना ली है। अब विशाल पैमाने पर, टीकाकरण का जो अभियान चल रहा है, वह इतिहास में अपनी तरह का सबसे बड़ा प्रकल्प होगा। मैं देशवासियों से आग्रह करता हूं कि आप सब, दिशा-निर्देशों के अनुरूप, अपने स्वास्थ्य के हित में इस वैक्सीन रूपी संजीवनी का लाभ अवश्य उठाएं और इसे जरूर लगवाएं। आपका स्वास्थ्य ही आपकी उन्नति के रास्ते खोलता है।

हम अनेक देशों के लोगों की पीड़ा को कम करने और महामारी पर क़ाबू पाने के लिए, दवाएं तथा स्वास्थ्य-सेवा के अन्य उपकरण, विश्व के कोने-कोने में उपलब्ध कराते रहे हैं। अब हम वैक्सीन भी अन्य देशों को उपलब्ध करा रहे हैं।

हालांकि, हम शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अटल हैं, फिर भी हमारी थल सेना, वायु सेना और नौसेना – हमारी सुरक्षा के विरुद्ध किसी भी दुस्साहस को विफल करने के लिए पूरी तैयारी के साथ तैनात हैं. प्रत्येक परिस्थिति में, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए हम पूरी तरह सक्षम हैं।

जिस असाधारण समर्थन के साथ, इस वर्ष, भारत ने अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा-परिषद में प्रवेश किया है वह, इस बढ़ते प्रभाव का सूचक है। विश्व-स्तर पर, राजनेताओं के साथ, हमारे सम्बन्धों की गहराई कई गुना बढ़ी है।

यह हम सबके हित में है कि, हम अपने संविधान में निहित आदर्शों को, सूत्र-वाक्य की तरह, सदैव याद रखें। मैंने यह पहले भी कहा है, और मैं आज पुनः इस बात को दोहराऊंगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और विचारों पर मनन करना, हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। मैं आज पुनः इस बात को दोहराऊंगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और विचारों पर मनन करना, हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। हमें हर सम्भव प्रयास करना है कि समाज का एक भी सदस्य दुखी या अभाव-ग्रस्त न रह जाए।

समता, हमारे गणतंत्र के महान यज्ञ का बीज-मंत्र है। सामाजिक समता का आदर्श प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करता है, जिसमें हमारे ग्रामवासी, महिलाएं, अनुसूचित जाति व जनजाति सहित अपेक्षाकृत कमजोर वर्गों के लोग, दिव्यांग-जन और वयोवृद्ध, सभी शामिल हैं।

हम सबको ‘संवैधानिक नैतिकता’ के उस पथ पर निरंतर चलते रहना है, जिसका उल्लेख बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने 4 नवंबर, 1948 को, संविधान सभा के अपने भाषण में किया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ‘संवैधानिक नैतिकता’ का अर्थ है – संविधान में निहित मूल्यों को सर्वोपरि मानना।

प्रवासी भारतीय, हमारे देश का गौरव हैं। उनमें से कुछ लोग राजनैतिक नेतृत्व के उच्च-स्तर तक पहुंचे हैं, और अनेक लोग विज्ञान, कला, शिक्षा, समाज सेवा, और व्यापार के क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान कर रहे हैं।

हमारे सशस्त्र बलों, अर्ध-सैनिक बलों और पुलिस के जवान, प्रायः अपने परिवार-जन से दूर रहते हुए त्योहार मनाते हैं। उन सभी जवानों को मैं विशेष बधाई देता हूं।

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