राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – एक पारिवारिक संरचना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – एक पारिवारिक संरचना

सुखदेव वशिष्ठ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – एक पारिवारिक संरचना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार  अपने जीवनकाल में राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिये चल रहे सामाजिक, धार्मिक, क्रांतिकारी व राजनैतिक क्षेत्रों के सभी समकालीन संगठनों व आंदोलनों से संबद्ध रहे व अनेक महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व भी किया। समाज के स्वाभिमानी, संस्कारित, चरित्रवान, शक्तिसंपन्न, विशुद्ध देशभक्ति से ओत-प्रोत, व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त व्यक्तियों के ऐसे संगठन जो स्वतंत्रता आंदोलन की रीढ़ होने के साथ ही राष्ट्र व समाज पर आने वाली प्रत्येक विपत्ति का सामना कर सके, इस कल्पना के साथ संघ का कार्य शुरू हुआ।

शाखा द्वारा सहज विकास 

संघ शाखा के संपर्क में आए बिना कार्य की वास्तविक भावना समझ में आनी मुश्किल है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप संघ ने भगवा ध्वज को परम सम्मान के अधिकार-स्थान पर अपने सामने रखा है।

संघ शाखा में आने से नेतृत्व के गुण पहले से ही विकसित होने लगते हैं। शाखा में गट नायक, गण शिक्षक, मुख्य शिक्षक का दायित्व संभालते संभालते स्वयंसेवक में अनुशासन का भाव और नेतृत्व के गुण उभरने लगते हैं। जिससे उनका विकास होता रहता है। स्वयंसेवकों में कई गुण विकसित होते रहते हैं। शाखा में हर रोज़ कहानी, समाचार समीक्षा आदि के कार्यक्रम में स्वयंसेवकों का बौद्धिक स्तर भी निखरता है। शाखा में जाकर सभी को एक बड़ा परिवार मिलता है। अपने से बड़ों से मार्गदर्शन और स्नेह, छोटों की देखभाल, और साथियों से सामंजस्य आदि के गुण मिलते हैं।

संघ द्वारा बच्चों और युवाओं के मानसिक शारीरिक विकास के लिये वर्ष में बाल शिविर, प्राथमिक शिक्षा वर्ग, संघ शिक्षा वर्ग, गीत प्रतियोगिता, कहानी, खेल प्रतियोगिता, घोष आदि आयोजित करता है। इसके अलावा राष्ट्रीय त्यौहारों को मनाने की परंपरा से राष्ट्र जीवन के प्रति भाव जगाने की दृष्टि से एक प्रभावी माध्यम है। शाखा में अपने क्षेत्र में प्रत्येक परिवार किस प्रकार आदर्श परिवार बन सके, उसके सभी सदस्य संस्कारवान व देशभक्त हों, इसकी चिंता होती है।

संगठन व्यवस्था का पारिवारिक स्वरूप

विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शून्य से विराट स्वरूप तक पहुंचने का एकमात्र कारण अन्य संगठनों के प्रचलित स्वरूप से भिन्न अर्थात पारिवारिक है। परिवार परंपरा, कर्तव्य पालन, त्याग, सभी के कल्याण-विकास की कामना व सामूहिक पहचान के आधार पर चलता है। परिवार के हित में अपने हित का सहज त्याग तथा परिवार के लिये अधिकाधिक देने का स्वभाव व परस्पर आत्मीयता ही परिवार का आधार है। संघ की परिवारिक कल्पना में एक मुखिया और उसके लिये परिवार का हित ही सर्वोपरि है। परिवार के बाकी सदस्यों में भी यही भावना रहती है। परस्पर आत्मीयता और विश्वास ही स्वयंसेवकों की विशेषता है। वसुधैव कुटुंबकम की मूल भावना के साथ ही स्वयंसेवक काम करते हैं।

दिनों-दिन बदलते लाइफ स्टाइल के कारण पारिवारिक सदस्यों के बीच बढ़ती दूरियों को घटाने का काम करने के लिए संघ ने कुटुम्ब प्रबोधन कार्यक्रम की शुरुआत की है। जिसके तहत स्वयंसेवक लोगों के घर जाकर उन्हें रिश्तों की कीमत समझाने का प्रयास करते है। साथ ही सप्ताह में कम से कम एक बार एक साथ बैठकर भोजन करने और एक घंटा सभी सदस्यों की समस्याओं और उपलब्धियों पर चर्चा करने के लिए भी प्रेरित करते हैं। मोबाइल और टीवी में व्यस्तता आड़े न आए, इसलिए चर्चा के दौरान इससे दूर रहने के लिए लोगों को तैयार किया जाता है।

परिवार की जरूरत और कीमत समझाने के लिए अलग-अलग आयु वर्ग के इंटरेक्टिव सेशन भी होते हैं, जिसमें लोगों को परिवार में उनकी भूमिका के अनुसार लाइफ स्टाइल में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया जाता है। काउंसलिंग सेशन में सबसे ज्यादा फोकस शादी लायक लड़के-लड़कियों पर रहता है, ताकि उन्हें बदलती भूमिका के लिए पहले से ही मानसिक तौर पर तैयार किया जा सके। परिवार के बुजुर्गों आदि के लिए अलग-अलग सेशन होते हैं, जिसमें सबको फैमिली वैल्यूज के बारे में और परिवार की अहमियत के बारे में समझाया जाता है।

सरसंघचालक मोहन भागवत के शब्दों में, “कुटुंब (परिवार) संरचना प्रकृति की ओर से दी गई है। इसलिये उसकी देखभाल करना भी हमारी जिम्मेदारी है। हमारे समाज में परिवार की एक विस्तृत कल्पना है, इसमें केवल पति, पत्नी और बच्चे ही परिवार नहीं है, बल्कि बुआ, काका, काकी, चाचा, चाची, दादी, दादा भी प्राचीन काल से हमारी परिवार संकल्पना में रहे हैं।”

संघ में मातृशक्ति

सरसंघचालक मोहन के शब्दों में , “संघ कोई सन्यासियों का संगठन नहीं है। अधिकांश स्वयंसेवक गृहस्थ कार्यकर्ता हैं। हमारी माताएं, बहनें अपनी-अपनी जगह से भी बहुत मदद सीधे संघ के कार्य को करती हैं। इतने सारे विविध कार्य चलते हैं, उसमें महिलाएं आई हैं और आगे भी आएंगी।”

संघ का स्वयंसेवक अपनी मां के आशीर्वाद से, अपनी बहन, पत्नी एवं बेटी के सहयोग से निरंतर समाज सेवा में सक्रिय रहता है। इसीलिए संघ एक परिवार है। दैनिक शाखा के अतिरिक्त संघ के सभी कार्यक्रमों में महिलाओं को आमंत्रित किया जाता है। मिलन अथवा समारोह के दौरान परिवार सामूहिक रूप से भाग लेने हेतु आते हैं। यथार्थ रूप से शाखा में महिला सदस्य नहीं है, पर संघ में है।

राहुल और संघ

राहुल गांधी कहते हैं – “मेरा मानना है कि RSS व सम्बंधित संगठन को संघ परिवार कहना सही नहीं – परिवार में महिलाएँ होती हैं, बुजुर्गों के लिए सम्मान होता, करुणा और स्नेह की भावना होती है – जो RSS में नहीं है। अब RSS को संघ परिवार नहीं कहूँगा!”

यह कथन उनका संघ के प्रति अल्पज्ञान और नासमझ को ही दिखाता है। संघ के आत्माभिव्यक्तिपूर्ण प्रतिमान ने समाज को अनेक अतुलनीय अत्याचारों और आक्रमणों के बावजूद अपनी एकता की भावना जीवित रखने में मदद दी है। जिस आपातकाल के लिये उन्होंने हाल ही में गलती मानी है, उस कठिन समय को भी स्वयंसेवक अपने परिवार की महिला शक्ति और परस्पर सम्बन्ध के चलते ही झेल पाए।

राहुल गांधी अपनी निकटवर्ती शाखा या संघ के किसी वर्ग या विभिन्न संगठनों में से किसी के साथ जुड़ें और संघ को समझें। तभी भारतीय समाज के सबसे छोटे घटक परिवार के प्रति संघ की निष्ठा को जान पाएंगे।

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