वास्तविक स्वरूप में निखर रहा जम्मू-कश्मीर
वर्षों से आतंकवाद से त्रस्त जम्मू कश्मीर के नागरिक अब खुली हवा में सांस ले रहे हैं। उन्हें लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ पता चल रहा है। वहां के नागरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हिस्सा लेकर देश के विकास में अपनी सहभागिता प्रकट करने लगे हैं। यह निश्चय ही भारतीय जनमानस, युवाओं एवं प्रबुद्ध जनों की सूझबूझ का परिणाम है।
-प्रीति शर्मा
जम्मू कश्मीर में वर्षों से चली आ रही आतंकवाद एवं पृथकतावाद की समस्या इस भूमि की कटु वास्तविकता रही है, जिसका निराकरण सन 2019 में 5 अगस्त को केंद्र सरकार द्वारा अपने निर्णय के तहत अवैधानिक रूप से लागू तथाकथित अनुच्छेद 35a को हटाकर किया गया। पूर्व में जम्मू कश्मीर में अलगाववाद एवं सांप्रदायिकता के कुटिल आचरण के चलते जनता भय ग्रस्त एवं दयनीय जीवन जीने के लिए विवश थी। विडंबना यह कि पूरे देश की सीमाओं को सुरक्षित करने वाली सेना का अधिकांश भाग इस राज्य को वर्षों से सुरक्षित करने में लगा रहा है। किंतु गैर राष्ट्रीय तत्वों द्वारा प्रसारित कुंठित सूचनाएं राज्य की जनता को समय-समय पर सेना और सरकार के विरुद्ध खड़ा कर देती थीं। राज्य में एक ऐसी हवा चली हुई थी जो भारत जैसे सर्व समावेशी राष्ट्र के विरुद्ध प्रतीत होती थी।
सोशल मीडिया तथा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा प्रसारित गलत सूचनाओं का कुप्रभाव ऐसा था की भारत की भारतीयता को स्वीकार करने की अपेक्षा स्वयं को भारत से पृथक कश्मीरी कहने में राज्य के निवासी गौरव का अनुभव करते थे। किंतु अनायास ही अगस्त 2019 के बाद इन सभी नकारात्मक सूचनाओं एवं विचारों का प्रसारण एवं प्रचार बाधित एवं क्षीण होने से राष्ट्र के विरुद्ध गलत बयानबाजी का प्रभाव कम होता दिखने लगा। अन्वेषण करने पर पता चलता है कि अगस्त 2019 से पूर्व और पश्चातवर्ती परिस्थितियों का अंतर कश्मीरी मीडिया, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया पर राष्ट्र विरोधी विचारों को प्रसारित करने वाले मिथ्या अकाउंट एवं पाकिस्तान समर्थित सूचना एजेंसियों का कार्य था। भारत विरोधी सोशल मीडिया एवं अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा कश्मीर संबंधी नकारात्मक सूचनाओं को अधिक महत्व देने के कारण राज्य की जनता की मूल समस्याओं को कभी महत्त्व नहीं दिया गया था। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि कई राष्ट्र विरोधी विचारों के समर्थकों को कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से आर्थिक लाभ एवं अन्य हितों की प्राप्ति हो रही थी ।
अनुच्छेद 35a की समाप्ति तथा राज्य के विशेष उपबंध समाप्त कर दिए जाने के बाद जम्मू कश्मीर राज्य की जनता की वास्तविक इच्छा का प्रकटीकरण होने लगा है तथा जन समस्याओं की चर्चा भी मुखर हुई है। यदि समस्त समस्याओं के निराकरण का मार्ग ढूंढा जाए तो वह भारत की सर्व समावेशन एवं सौहार्द्र की संस्कृति में ही निहित है जिसका प्रत्यक्षीकरण वर्षों से भारत की समाज व्यवस्था में परिलक्षित होता आया है। भारत ने सहज एवं शांतिपूर्ण प्रयासों द्वारा जनता का विश्वास सदैव बनाए रखा है और शक्ति को महत्व देने की अपेक्षा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आलिंगन करते हुए जम्मू कश्मीर एवं संपूर्ण भारत की जनता का समर्थन प्राप्त कर इस दशकों पुरानी समस्या का निराकरण करने का प्रयास किया है। जिसके चलते भारत विरोधी मंशाओं और विचारों को हताश होना पड़ा। सोशल मीडिया तथा अन्य मंचों पर सकारात्मकता का प्रसार हुआ। धीरे धीरे जम्मू कश्मीर अपने मूल स्वरूप में उभरने लगा है। वर्षों से आतंकवाद से त्रस्त जम्मू कश्मीर के नागरिक अब खुली हवा में सांस ले रहे हैं। उन्हें लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ पता चल रहा है। वहां के नागरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हिस्सा लेकर देश के विकास में अपनी सहभागिता प्रकट करने लगे हैं। यह निश्चय ही भारतीय जनमानस, युवाओं एवं प्रबुद्ध जनों की सूझबूझ का परिणाम है।
भारत की वसुधैव कुटुंबकम एवं शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीतियों के चलते भारत के इस निर्णय के संदर्भ में शनै शनै अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त होना स्वाभाविक ही है। गत दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी यह स्वीकार किया गया कि जम्मू कश्मीर के बारे में किसी भी तरह की चिंता भारत की निजी चिंता है जिसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप अनुचित है। यह विश्वभर में भारत की शक्ति, सामर्थ्य और उसकी दूसरे देशों के साथ बढ़ती आपसी समझ का परिणाम है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि जब जनमानस पूरी तरह राष्ट्रीय विचारों के साथ होता है तो किसी भी तरह की राष्ट्र विरोधी ताकतें राष्ट्रीय शक्ति को नुकसान पहुंचाने की हिम्मत नहीं कर सकतीं।
पुनश्चः हाल ही में गूगल मैप ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) को भारत में मिला दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं नक्शे से लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) भी गायब है। यह ताजा घटना उस समय हुई है जब खबरें आईं कि दूरदर्शन पर आने वाले न्यूज बुलेटिन में अब पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान का मौसम भी बताया जाएगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)