वैश्विक आतंकवाद का समाधान सनातन संस्कृति में

वैश्विक आतंकवाद का समाधान सनातन संस्कृति में

प्रहलाद सबनानी

वैश्विक आतंकवाद का समाधान सनातन संस्कृति में    वैश्विक आतंकवाद का समाधान सनातन संस्कृति में

 

हाल के समय में न केवल भारत बल्कि विश्व के कई देशों यथा स्वीडन, ब्रिटेन, फ्रांस, नॉर्वे, भारत, अमेरिका आदि में इस्लामिक आतंकवाद ने तेजी से पॉंव पसारे हैं। जिसने इन देशों के नागरिकों के साथ ही वहॉं की अर्थव्यवस्था तक को विपरीत रूप से प्रभावित किया है। मजहबी कट्टरता इसका मुख्य कारण है। इनकी मजहबी किताब में ही यह बताया गया है कि इस्लाम में अल्लाह के अतिरिक्त कोई स्वीकार्य नहीं। इस्लाम को न मानने वाला प्रत्येक व्यक्ति काफिर है। मुल्ला मौलवी सिखाते हैं- काफिरों की हत्या से जन्नत मिलती है, जहॉं 72 हूरें पुरस्कारस्वरूप प्रतीक्षारत रहती हैं। शायद यही शिक्षा है जो इन मजहबियों को गैर मुसलमानों पर हमलों को उकसाती है। सरकारें भी इनके मुल्ला-मौलवियों को आर्थिक सहायता देकर उनका तुष्टिकरण करती हैं।

अभी हाल ही में भारत के कई नगरों में रामनवमी एवं हनुमान जयंती पर हिंदू नागरिकों द्वारा निकाली गई यात्राओं पर पत्थरबाजी की गई। इसकी शुरुआत राजस्थान के करौली से हुई फिर मध्य प्रदेश के खरगोन, कर्नाटक के हुबली, आंध्र प्रदेश के कुरनूल के होलागुंडा, उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के भगवानपुर के एक गांव, गुजरात के आणंद और हिम्मतनगर, पश्चिम बंगाल के बांकुरा आदि शहरों तक फैल गई। इसी प्रकार स्वीडन में भी मुस्लिम शरणार्थियों ने पुलिस वाहनों पर हमला किया एवं पुलिस की कई गाड़ियों को जला दिया। आधुनिक सूचना तंत्र व हथियारों से लैस पुलिस भी स्थिति को नियंत्रित करने में असफल रही। आज स्थिति यह है कि स्वीडन के साथ ही यूरोप के कई अन्य देशों में भी मुस्लिम शरणार्थी वहां की कानून व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। अच्छी बात यह है कि अब पूरा विश्व भी इन घटनाओं के कारणों को समझने लगा है एवं इस्लामिक आतंकियों की मजहबी कट्टरता के विरुद्ध एक होने लगा है। जैसे सूडान में इस्लाम के अनुपालन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यूरोप के कई देशों में वहां के नागरिक इस्लाम त्याग कर ईसाई बन रहे हैं। जापान ने भी इस्लाम का पालन करने वाले लोगों के लिए कड़े कानून लागू कर दिए हैं। चीन जिस तरह से मुसलमानों को हैंडल कर रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। एक समाचार के अनुसार नॉर्वे ने बड़ी संख्या में मुसलमानों को अपने देश से निकाल दिया है, इस कदम को उठाने के बाद नॉर्वे में अपराध की दर में 72 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है। वहां की जेलें 50 प्रतिशत तक खाली हो गई हैं। विश्व के कई अन्य देशों ने भी इसी प्रकार के कठोर निर्णय लिए हैं। कुछ देशों में तो वहां के नागरिकों द्वारा “मैं पूर्व मुस्लिम” नाम से आंदोलन ही चलाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत ये लोग घोषणा करने लगे हैं कि अब मैंने इस्लाम का परित्याग कर दिया है।

भारत वैसे तो हिंदू सनातन संस्कृति को मानने वाले लोगों का देश है और इसे राम और कृष्ण का देश भी माना जाता है, इसलिए यहां हिंदू परिवारों में बचपन से ही “वसुधैव कुटुम्बकम”, “सर्वे भवन्तु सुखिन:” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” की भावना जागृत की जाती है। इसी के चलते भारत ने अन्य देशों में हिंदू धर्म को स्थापित करने अथवा उनकी जमीन हड़पने के उद्देश्य से कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। भारत में तो जीव, जंतुओं एवं प्रकृति को भी देवता का स्थान दिया जाता है।

परंतु भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी मुस्लिम तुष्टिकरण व घुसपैठ के चलते मुसलमानों की जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ी है, उससे भारत में हिंदुओं की स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही है। आज भारत के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं एवं इस्लामी/ईसाई मतावलंबी बहुमत में आ गए हैं। जैसे, नागालैंड मे 8%, मिजोरम में 2.7%, मेघालय में 11.5%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, मणिपुर में 41.4%, पंजाब में 39%, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 32%, लक्षद्वीप में 2%, लद्दाख में 2% जनसंख्या हिंदुओं की रह गई है। कुछ राज्यों में तो हिंदू समाज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। जिन जिन क्षेत्रों, जिलों अथवा प्रदेशों में इस्लाम को मानने वालों की संख्या बढ़ी है, उन उन क्षेत्रों, जिलों एवं प्रदेशों में हिंदुओं की प्रताड़ना बढ़ी है। ऐसे स्थानों में या तो हिंदुओं को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया जाता है या उन पर इतने अत्याचार किए जाते हैं कि वे पलायन के लिए मजबूर हो जाते हैं। विराट भारत आज कट कट कर छोटा सा रह गया है। दूसरी ओर विश्व में इस्लाम को मानने वाले देशों की संख्या 57 हो गई है।

भारतीय चिंतन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार स्तंभों पर स्थापित है। इस दृष्टि से चाहे व्यक्ति हो, परिवार हो, देश हो अथवा विश्व हो, किसी के भी विषय में चिंतन का आधार एकांगी न मानकर एकात्म माना जाता है। भारत के उपनिषदों, वेदों, ग्रंथों में भी यह बताया गया है कि मनुष्य का जीवन अच्छे कर्मों को करने के लिए मिलता है एवं देवता भी मनुष्य के जीवन को प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। अच्छे कर्म कर मनुष्य अपना उद्धार कर सकता है इसीलिए भारतीय धरा को कर्मभूमि माना गया है जबकि अन्य धराओं को भोगभूमि कहा गया है। साथ ही, वर्णाश्रम व्यवस्था हिंदू सनातन संस्कृति का मूल बताया जाता है। हमारे शास्त्रों में यह भी वर्णन मिलता है कि सभी वर्णों तथा आश्रमों में पूर्णतः प्रतिष्ठित व्यक्ति जीवन के सर्वोत्तम लक्ष्य अर्थात मोक्ष को प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है। अन्य धर्म, भोग को बढ़ावा देते हैं जबकि हिंदू सनातन संस्कृति योग को बढ़ावा देती है। इस प्रकार हिंदू धर्म के शास्त्रों, पुराणों एवं वेदों में किसी भी जीव के दिल को दुखाने अथवा उसकी हत्या को निषिद्ध बताया गया है जबकि अन्य धर्म के शास्त्रों में इस प्रकार की बातों का वर्णन नहीं मिलता है। इसी कारण के चलते हिंदू धर्म के अनुयायी स्वभाव से बहुत कोमल एवं पूरे विश्व में निवास कर रहे प्राणियों को अपने कुटुंब का सदस्य मानने वाले होते हैं। बचपन में ही इस प्रकार की शिक्षाएं हमारे बुजुर्गों द्वारा प्रदान की जाती हैं। इसका प्रमाण भी इस रूप में दिया जा सकता है कि पूरे विश्व में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहां इस्लाम मजहब को मानने वाले लगभग सभी फिरके पाए जाते हैं। ईरान में मूल रूप से पारसी निवास करते थे, आज ईरान में केवल इस्लाम के अनुयायी ही पाए जाते हैं और पारसी उनके मूल देश में ही निवासरत नहीं हैं जबकि भारत में पारसी अच्छी संख्या में निवास कर रहे हैं। इसी प्रकार जब इजराइल पर इस्लाम के अनुयायियों का हमला हुआ था तब वहां के मूल निवासी यहूदी भी भारत में आश्रय लेने के उद्देश्य से आए थे और आज भारत में भी यहूदी बिना किसी भेदभाव के आनंद पूर्वक अपना जीवन यापन कर रहे हैं। विश्व के लगभग सभी मजहबों के विभिन्न फिरकों के अनुयायी भारत में प्रसन्नता पूर्वक निवास कर रहे हैं। इसी कारण से अब वैश्विक स्तर पर यह विश्वास बनता जा रहा है कि विश्व में तेजी से फैल रहे आतंकवाद का हल केवल हिंदू सनातन संस्कृति में ही है।

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