श्रीराम देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक-डॉ. मोहन भागवत

श्रीराम देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक-डॉ. मोहन भागवत

24 अक्तूबर, 2023

श्री विजयादशमी उत्सव पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के उद्बोधन के मुख्य बिन्दु…..

श्रीराम देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक-डॉ. मोहन भागवतश्रीराम देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक-डॉ. मोहन भागवत

नागपुर। हमारा देश, जी-20 नामक प्रमुख राष्ट्रों की परिषद का यजमान रहा। वर्षभर सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्र प्रमुख, मंत्रीगण, प्रशासक तथा मनीषियों के अनेक कार्यक्रम भारत में अनेक स्थानों पर सम्पन्न हुए। भारतीयों के आत्मीय आतिथ्य का अनुभव, भारत का गौरवशाली अतीत तथा वर्तमान की उमंगभरी उड़ान सभी देशों के सहभागियों को प्रभावित कर गई। अफ्रीकी यूनियन को सदस्य के नाते स्वीकृत कराने में तथा पहले ही दिन परिषद का घोषणा प्रस्ताव सर्व सहमति से पारित करने में भारत की प्रामाणिक सद्भावना तथा राजनयिक कुशलता का अनुभव सबने पाया। भारत के विशिष्ट विचार व दृष्टि के कारण संपूर्ण विश्व के चिंतन में वसुधैव कुटुम्बकम् की दिशा जुड़ गई। जी-20 का अर्थकेन्द्रित विचार अब मानव केन्द्रित हो गया।

भारतीयों का गौरव व आत्मविश्वास बढ़ाने वाला कार्य

हमारे देश के खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पहली बार 100 से अधिक – 107 पदक (28 सुवर्ण, 38 रजत तथा 41 कांस्य) जीतकर हम सब का उत्साहवर्धन किया है। उनका हम अभिनन्दन करते हैं।

हमारे वैज्ञानिकों के शास्त्रज्ञान व तन्त्र कुशलता के साथ नेतृत्व की इच्छाशक्ति जुड़ गई। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष युग के इतिहास में पहली बार भारत का विक्रम लैंडर उतरा। समस्त भारतीयों का गौरव व आत्मविश्वास बढ़ाने वाला यह कार्य सम्पन्न करने वाले वैज्ञानिक तथा उनको बल देने वाला नेतृत्व संपूर्ण देश में अभिनंदित हो रहा है।

अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे

संविधान की मूल प्रति के एक पृष्ठ पर जिनका चित्र अंकित है, ऐसे धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्रीराम के बालक रूप का मंदिर अयोध्या जी में बन रहा है। श्रीराम अपने देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक हैं, कर्तव्य पालन के प्रतीक हैं, स्नेह व करुणा के प्रतीक हैं। अपने-अपने स्थान पर ही ऐसा वातावरण बने। राम मंदिर में श्रीरामलला के प्रवेश से प्रत्येक ह्रदय में अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे व सर्वत्र स्नेह, पुरुषार्थ तथा सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो ऐसे, अनेक स्थानों पर परन्तु छोटे छोटे आयोजन करने चाहिए।

वीरांगना रानी दुर्गावती

अस्मिता व ‘स्व’तंत्रता के लिए बलिदान देने वाली, उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम के साथ-साथ अपनी प्रशासन कुशलता व प्रजाहित दक्षता के लिए आदर्शभूत महारानी दुर्गावती का 500वाँ जयंती वर्ष है। भारतीय महिलाओं के सर्वगामी कर्तृत्व, नेतृत्व क्षमता, उज्ज्वल शील तथा जाज्वल्य देशभक्ति की वे देदीप्यमान आदर्श थीं।

छत्रपति शाहू जी महाराज

अपनी प्रजाहित दक्षता तथा प्रशासनपटुता के साथ, सामाजिक विषमता के जड़मूल से निर्मूलन के लिए जीवनभर अपनी संपूर्ण शक्ति लगाने वाले कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के शासक छत्रपति शाहूजी महाराज का यह 150वाँ जयंती वर्ष है।

संत श्रीमद् रामलिंग वल्ललार

देश की ‘स्व’तंत्रता की अलख अपने जीवन के यौवनकाल से ही जगाना प्रारंभ किया, गरीबों के अन्नदान कार्यक्रम हेतु जिनका सुलगाया हुआ पहला चूल्हा आज भी तमिलनाडु में प्रदीप्त है और अपना काम कर रहा है, ऐसे तमिल संत श्रीमद् रामलिंग वल्ललार का 200वाँ वर्ष इसी महीने सम्पन्न हो गया। ‘स्व’तंत्रता के साथ-साथ समाज की आध्यात्मिक सांस्कृतिक जागृति तथा सामाजिक विषमता के सम्पूर्ण निर्मूलन के लिए वे जीवनभर कार्य करते रहे।

हिमालय क्षेत्र सर्वथा रक्षणीय है

हिमालय के क्षेत्र में हिमाचल और उत्तराखंड से लेकर सिक्किम तक लगातार प्राकृतिक आपदाओं का प्राणांतिक खेल हम देख रहे हैं। भविष्य में किसी गंभीर व व्यापक संकट का पूर्वाभास इन घटनाओं के द्वारा हो रहा हो, ऐसी शंकाओं की चर्चा भी है।

देश की सीमा सुरक्षा, जल सुरक्षा तथा पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए भारत की उत्तर सीमा को निश्चित करने वाला यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है, किसी भी कीमत पर सर्वथा रक्षणीय है। सुरक्षा, पर्यावरण, जन सांख्यिकी व विकास की दृष्टि से इस पूरे क्षेत्र को एक इकाई मानकर हिमालय क्षेत्र का विचार करना होगा।

‘स्व’ आधारित ‘स्व’देशी विकासपथ अपनाएँ

अधूरी, निपट जड़वादी तथा पराकोटि की उपभोगवादी दृष्टि पर आधारित विकास पथों के कारण, मानवता व प्रकृति धीरे-धीरे परंतु निश्चित रूप से विनाश की ओर अग्रसर हो रही है. संपूर्ण विश्व में यह चिंता बढ़ी है। उन असफल पथों को त्याग कर अथवा धीरे-धीरे वापिस मोड़कर भारतीय मूल्यों पर तथा भारत की समग्र एकात्म दृष्टि पर आधारित, काल सुसंगत व अद्यतन, अपना अलग विकास पथ भारत को बनाना ही पड़ेगा. यह भारत के लिए सर्वथा उपयुक्त तथा विश्व के लिए भी अनुकरणीय प्रतिमानक बन सकेगा। उपनिवेशी मानसिकता से मुक्त होकर, अपने देश में जो है उसको युगानुकूल बनाते हुए, हम अपना ‘स्व’ आधारित ‘स्व’देशी विकासपथ अपनाएँ, यह समय की आवश्यकता है।

मणिपुर हिंसा क्यों हुई?

मणिपुर की वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो यह बात ध्यान में आती है। लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व के भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ? वर्षों से वहाँ पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है? क्या इन घटनाओं की कारण परंपराओं में दक्षिण पूर्व एशिया की भू- राजनीति की भी कोई भूमिका है? देश में मजबूत सरकार के होते हुए भी यह हिंसा किन के बलबूते इतने दिन बेरोकटोक चलती रही है? गत 9 वर्षों से चल रही शान्ति की स्थिति को बरकरार रखना चाहने वाली राज्य सरकार होकर भी यह हिंसा क्यों भड़की और चलती रही? आज की स्थिति में जब संघर्षरत दोनों पक्षों के लोग शांति चाह रहे हैं, उस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठता हुआ दिखते ही कोई हादसा करवा कर, फिर से विद्वेष व हिंसा भड़काने वाली ताकतें कौन सी हैं?

बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता

समस्या के समाधान के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता रहेगी। इस हेतु जहां राजनैतिक इच्छाशक्ति, तदनुरूप सक्रियता एवं कुशलता समय की मांग है, वहीं इसके साथ-साथ दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के कारण उत्पन्न परस्पर अविश्वास की खाई को पाटने में समाज के प्रबुद्ध नेतृत्व को भी एक विशेष भूमिका निभानी होगी। संघ के ‘स्व’यंसेवक तो समाज के स्तर पर निरंतर सबकी सेवा व राहतकार्य करते हुए समाज की सज्जनशक्ति का शांति के लिए आह्वान कर रहे हैं। सबको अपना मानकर, सब प्रकार की कीमत देते हुए समझाकर, सुरक्षित, व्यवस्थित, सद्भाव से परिपूर्ण और शान्त रखने के लिए ही संघ का प्रयास रहता है।

मंत्र विप्लव

समाज विरोधी कुछ लोग अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या वोक (Woke) यानी जगे हुए कहते हैं। परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 दशक से ही भुला रखा है। विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार, तथा संयम से उनका विरोध है. मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण सम्पूर्ण मानवजाति पर हो, इसलिए अराजकता व स्वैराचरण का पुरस्कार, प्रचार व प्रसार करते हैं। माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रम व भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है। आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस व दुर्बलता में फंसा व टूटा हुआ समाज, अनायास ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का भक्ष्य बनता है।

मंत्र विप्लव का सही उत्तर समाज की एकता

मंत्र विप्लव का सही उत्तर तो समाज की एकता से ही प्राप्त होना है। हर परिस्थिति में यह एकता का भान ही समाज के विवेक को जागृत रखने वाली वस्तु है। संविधान में भी इस भावनिक एकता की प्राप्ति एक मार्गदर्शक तत्व के नाते उल्लेखित है। हर देश में इस एकता के भाव को पैदा करने वाला अपना-अपना धरातल अलग-अलग रहता है. हमारा यह देश एक राष्ट्र के नाते, एक समाज के नाते, विश्व के इतिहास के सारे उतार चढ़ाव पार कर आज भी अपने भूतकाल के सूत्र से अविछिन्न सम्पर्क बनाए रखकर जीवित खड़ा है।

यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाक़ी नामो निशां हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा

हमारी सर्वसमावेशक संस्कृति

भारत के बाहर के लोगों की बुद्धि चकित हो जाए, परंतु मन आकर्षित हो जाए ऐसी एकता की परंपरा हमारी विरासत में हमको मिली है। उसका रहस्य क्या है? नि:संशय वह हमारी सर्व समावेशक संस्कृति है. पूजा, परंपरा, भाषा, प्रान्त, जातिपाती इत्यादि भेदों से ऊपर उठकर, अपने कुटुंब से संपूर्ण विश्वकुटुंब तक आत्मीयता को विस्तार देने वाली हमारी आचरण की व जीवन जीने की रीति है।

महापुरुष अनुकरणीय

अपनी ‘स्व’तंत्रता के 75वें वर्ष के निमित्त हमने ‘स्व’तन्त्रता संग्राम के महापुरुषों का स्मरण किया। हमारे धर्म, संस्कृति, समाज व देश की रक्षा, समय समय पर उनमें आवश्यक सुधार तथा उनके वैभव का संवर्धन जिन महापुरुषों के कारण हुआ, वे हमारे कर्तृत्व सम्पन्न पूर्वज हम सभी के गौरवनिधान हैं तथा अनुकरणीय हैं।

हमारी एकता के अक्षुण्ण सूत्र

हमारे देश में विद्यमान सभी भाषा, प्रान्त, पंथ, संप्रदाय, जाति, उपजाति इत्यादि विविधताओं को एक सूत्र में बाँधकर एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले तीन तत्व (मातृभूमि की भक्ति, पूर्वज गौरव, व सबकी समान संस्कृति) हमारी एकता का अक्षुण्ण सूत्र हैं।

देश का पैसा देश में ही काम आए

वर्ष 2025 से 2026 का वर्ष संघ के 100 वर्ष पूरे होने के बाद का वर्ष है। सभी क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक कदम बढ़ाएंगे। समाज के आचरण में, उच्चारण में संपूर्ण समाज और देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो। मंदिर, पानी, श्मशान में कहीं भेदभाव बाकी है, तो वह समाप्त हो। परिवार के सभी सदस्यों में नित्य मंगल संवाद, संस्कारित व्यवहार व संवेदनशीलता बनी रहे, बढ़ती रहे व उनके द्वारा समाज की सेवा होती रहे। सृष्टि के साथ संबंधों का आचरण अपने घर से पानी बचाकर, प्लास्टिक हटाकर व घर आँगन में तथा आसपास हरियाली बढ़ाकर हो। ‘स्व’देशी के आचरण से ‘स्व’-निर्भरता व स्वावलंबन बढ़े, फिजूलखर्ची बंद हो। देश का रोजगार बढ़े व देश का पैसा देश में ही काम आए।

हमारे अमर राष्ट्र के नवोत्थान का प्रयोजन

समाज की एकता, सजगता व सभी दिशा में निस्वार्थ उद्यम, जनहितकारी शासन व जनोन्मुख प्रशासन ‘स्व’ के अधिष्ठान पर खड़े होकर परस्पर सहयोगपूर्वक प्रयासरत रहते है, तभी राष्ट्र बल वैभव सम्पन्न बनता है। बल और वैभव से सम्पन्न राष्ट्र के पास जब हमारी सनातन संस्कृति जैसी सबको अपना कुटुंब मानने वाली, तमस से प्रकाश की ओर ले जाने वाली, असत् से सत् की ओर बढ़ाने वाली तथा मर्त्य जीवन से सार्थकता के अमृत जीवन की ओर ले जाने वाली संस्कृति होती है, तब वह राष्ट्र, विश्व का खोया हुआ संतुलन वापस लाते हुए विश्व को सुख-शांतिमय नवजीवन का वरदान प्रदान करता है। सद्य काल में हमारे अमर राष्ट्र के नवोत्थान का यही प्रयोजन है।

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