संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनी हिंदी

संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनी हिंदी

प्रमोद भार्गव

संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनी हिंदीसंयुक्त राष्ट्र की भाषा बनी हिंदी​

आखिरकार दीर्घकालिक प्रयासों के बाद भारत की राजभाषा हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बन गई है। भारत की ओर से लाए गए हिंदी के प्रस्ताव को महासभा ने मंजूरी दे दी। इसके साथ बांग्ला और उर्दू को भी इस श्रेणी में लिया गया है। अब संयुक्त राष्ट्र में सभी कामकाज और जरूरी संदेश व समाचार इन तीनों भाषाओं में उपलब्ध होंगे। इन भाषाओं के अलावा मैंडेरिन, अंग्रेजी, अरबी, रूसी, फ्रेंच और स्पेनिश पहले से ही संघ की आधिकारिक भाषाएं हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि राजदूत टीएस तिरूमती ने बताया कि हिंदी को 2018 से ही एक परियोजना के अंतर्गत संघ में बढ़ावा देने के लिए शुरुआत कर दी गई थी। इसी समय से हिंदी में संयुक्त राष्ट्र ने हिंदी में ट्विटर खाता और न्यूज पोर्टल शुरू कर दिया था। इस पर प्रत्येक सप्ताह हिंदी श्रव्य समाचार (ऑडियो बुलेटिन) सेवा शुरू कर दी गई थी। हिंदी की सेवाएं संयुक्त राष्ट्र के मंच से प्रसारित होना इसलिए आवश्यक थीं, जिससे संयुक्त राष्ट्र के महत्व को दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी भाषा जानने वाले लोगों को जानकारी हो सके। इसे सुविधाजनक बनाना इसलिए जरूरी था, जिससे संयुक्त राष्ट्र से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कानून, सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति से जुड़े मुद्दों को लोग जान सकें। इस संस्था की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को पचास देशों के एक अधिकार पत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के 193 देश सदस्य हैं।  हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र को भारत सरकार ने आठ लाख डॉलर की सहायता भी की थी।

यह वह समय है, जब हिंदी के पक्ष में अनेक अनुकूलताएं हैं। केंद्र की सत्ता में वह भारतीय जनता पार्टी है, जिसके दृष्टि-पत्र में हिंदी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का मुद्दा हमेशा रहा है। इसी दल के नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। मोदी दक्षेश नेताओं से हिंदी में द्विपक्षीय वार्ताएं करके और संयुक्त राष्ट्र संघ समेत दुनिया के अनेक देशों में हिंदी में दिए उद्बोधनों में तालियां बटोरकर दुनिया को जता चुके थे, विश्व में हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या करोड़ों में है। मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने जिस भाषा में वोट मांगे, उसी भाषा को देश-विदेश में संवाद की भाषा बनाए हुए हैं। अतएव योग दिवस को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता मिल जाने के बाद जनता की यह आशा बढ़ गई थी कि अब जल्दी ही हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिल जाएगी।

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार संयुक्त राष्ट्र की 4 अक्टूबर 1977 को संपन्न हुई बैठक में हिंदी में भाषण देने का श्रेय जाता है। तब वे विदेशमंत्री थे। इसके बाद वे सितंबर 2002 में संयुक्त राष्ट्र की सभा में हिंदी में बोले थे। लेकिन ये भाषण मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे हुए अनुवाद थे। चंद्रशेखर भी प्रधानमंत्री रहते हुए मालदीव में आयोजित हुए दक्षेस-सम्मेलन में हिंदी में बोले थे। उनका यह भाषण मूलतः हिंदी में होने के साथ मौलिक भी था। पीवी नरसिम्हा राव कई देशी-विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे, लेकिन विदेशी धरती पर हिंदी में बोलने का साहस नहीं दिखा पाए थे। मनमोहन सिंह भी हिंदी जानने के बावजूद परदेश में कभी हिंदी नहीं बोले। मोदी ही हैं, जो प्रधानमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक पूरी ठसक के साथ अलिखित भाषण देकर हिंदी का गौरव बढ़ा रहे हैं।

भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी पांच भाषाएं विश्व की 16 प्रमुख भाषाओं की सूची में शामिल हैं। 160 देशों के लोग भारतीय भाषाएं बोलते हैं। विश्व के 93 देश ऐसे हैं, जिनमें हिंदी जीवन के बहुआयामों से जुड़ी होने के साथ, विद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाई जाती है। चीनी भाषा मैंडेरिन बोलने वालों की संख्या हिंदी बोलने वालों से ज्यादा जरूर है, किंतु अपनी चित्रात्मक जटिलता के कारण, इसे बोलने वालों का क्षेत्र चीन तक ही सीमित है। शासकों की भाषा रही अंग्रेजी का शासकीय व तकनीक क्षेत्रों में प्रयोग तो अधिक है, किंतु उसके बोलने वाले हिंदी-भाषियों से कम हैं। 1945 में संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएं 4 थीं, अंग्रेजी, रशियन, फ्रांसीसी और चीनी। ये भाषाएं अपनी विलक्षणता या ज्यादा बोली जाने के बनस्पत, संयुक्त राष्ट्र की भाषाएं इसलिए बन पाई थीं, क्योंकि ये विजेता महाशक्तियों की भाषाएं थीं। बाद में इनमें अरबी और स्पेनिश शामिल कर ली गईं। विश्व-पटल पर हिंदी बोलने वालों की संख्या दूसरे स्थान पर होने के बावजूद इसे संयुक्त राष्ट्र में अब जाकर शामिल किया गया है। यही नहीं भारतीय और अनिवासी भारतीयों को जोड़ दिया जाए तो हिंदी पहले स्थान पर आकर खड़ी हो जाती है। भाषाई आंकड़ों की दृष्टि से जो सर्वाधिक प्रमाणित जानकारियां सामने आई हैं, उनके आधार पर संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाओं की तुलना में हिंदी बोलने वालों की स्थिति निम्न है, मैंडेरिन 80 करोड़, हिंदी 55 करोड़, स्पेनिश 40 करोड़, अंग्रेजी 40 करोड़, अरबी 20 करोड़, रूसी 17 करोड़ और फ्रेंच 9 करोड़ लोग बोलते हैं। स्पष्ट है, हिंदी संयुक्त राष्ट्र की अग्रिम पंक्ति में खड़ी होने का वैध अधिकार रखती है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 43.63 प्रतिशत जनसंख्या हिंदी बोलती है। यदि इसमें भोजपुरी, ब्रज, अवधी, बघेली, बुंदेली और हिंदी से मिलती भाषाएं भी जोड़ दी जाएं तो इस संख्या में 13.9 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे और यह प्रतिशत बढ़कर 54.63 हो जाएगा।

अब चूंकि हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बन गई है, इसलिए भारत को सुरक्षा परिषद् की सदस्यता मिलने की आशा भी बढ़ गई है। इसके अलावा जो अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं, उनमें भी हिंदी के माध्यम से संवाद व हस्तक्षेप करने का अधिकार भारत को मिल जाएगा। ये संगठन हैं अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन और संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल-आपात निधि (यूनिसेफ)। इन विश्व मंचों पर हमारे प्रतिनिधि यदि देश की भाषा में बातचीत करेंगे तो देश का आत्मगौरव तो बढ़ेगा ही, भारत के लोगों का यह भ्रम भी टूटेगा कि हिंदी में अंतरराष्ट्रीय संवाद कायम करने की सामर्थ्य नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र दुनिया के प्रमुख देशों के मातृभाषियों के आंकड़े जुटाने का काम आधिकारिक रूप से पहले ही कर चुका था। केंद्रीय हिंदी निदेशालय दिल्ली द्वारा इस संबंध में विशेष प्रमाणिक रिपोर्ट तैयार कराई गई थी, जो 25 मई 1999 को संयुक्त राष्ट्र भेजी गई थी। 1991 की जनगणना के आधार पर भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रंथ 1997 में प्रकाशित हुआ था। संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक भाषाओं की तकनीकी समिति द्वारा भारत सरकार को भेजे पत्र के साथ एक प्रश्नावली संलग्न करके हिंदी की स्थिति के नवीनतम आंकड़े मांगे गए थे। निदेशालय द्वारा अनेक स्तर पर तथ्यात्मक आंकड़े इकट्ठा करने की पहल की गई। इन अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर चीनी भाषा मैंडेरिन के बाद हिंदी का प्रयोग करने वालों की संख्या दूसरे स्थान पर थी। केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र को भेजी गई रिपोर्ट में  विश्व-ग्रंथों के आंकड़ों को आधार बनाया गया था। इस परिप्रेक्ष्य में एनकार्टा एनसाइक्लोलोपीडिया के अनुसार मातृभाषा बोलने वाले लोगों की संख्या बताई गई थी, मैंडेरिन 83.60 करोड़, हिंदी 33.30 करोड़, स्पेनिश 33.20 करोड़, अंग्रेजी 32.20 करोड़, अरबी 18.60 करोड़, रूसी 17 करोड़ और फ्रेंच 7.20 करोड़। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार अंग्रेजी भाषियों की संख्या 33.70 करोड़ है, जबकि हिंदी भाषियों की संख्या 33.72 करोड़ है। हालांकि गिनीज बुक ने हिंदी भाषियों की संख्या 1991 की जनगणना के आधार पर ही बताई थी। विश्व भाषाई पत्रक स्रोत ग्रंथ ‘लैंग्वेज एंड स्पीक कम्युनिटीज‘ के अनुसार तो दुनिया में 96.60 करोड़ लोग हिंदी बोलते व समझते हैं यानि हिंदी का स्थान मैंडेरिन से भी ऊपर है।

इन तथ्यपरक आंकड़ों से प्रमाणित होता है कि संख्या बल की दृष्टि से मैंडेरिन को छोड़ अन्य भाषाओं की तुलना में हिंदी की स्थिति हमेशा मजबूत रही है। हिंदी के साथ एक और विलक्षणता जुड़ी हुई है, हिंदी जितने राष्ट्रों की जनता द्वारा बोली व समझी जाती है, संयुक्त राष्ट्र की पहली चार भाषाएं उतनी नहीं बोली जाती हैं। हिंदी भारत के अलावा नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, ग्याना, त्रिनिनाद, टुबैगो, सिंगापुर, भूटान, इंडोनेशिया, बाली, सुमात्रा, बांग्लादेश और पाकिस्तान में खूब बोली व समझी जाती है। भारत की राजभाषा हिंदी है तथा पाकिस्तान की उर्दू, इन दोनों भाषाओं के बोलने में एकरूपता है। दोनों देशों के लोग लगभग 60 देशों में आजीविका के लिए निवासरत हैं। इनकी संपर्क भाषा हिंदी मिश्रित उर्दू अथवा उर्दू मिश्रित हिंदी है। हिंदी फिल्मों और दूरदर्शन कार्यक्रमों के माध्यम से भी हिंदी का प्रचार-प्रसार निरंतर हो रहा है। विदेशों में रहने वाले ढाई करोड़ हिंदी भाषी हिंदी फिल्मों, टीवी सीरियलों और समाचारों से जुड़े रहने की निरंतरता बनाए हुए हैं। ये कार्यक्रम अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, हॉलैंड, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, थाइलैंड आदि देशों में रहने वाले भारतीय खूब देखते हैं।

भाषा से जुड़े वैश्विक ग्रंथों में दर्ज आंकड़ों के अनुसार तो हिंदी को सन् 2000 के आसपास ही संयुक्त राष्ट्र की भाषा बना देना चाहिए था। लेकिन विश्व-पटल पर भाषाएं भी राजनीति की शिकार है। जो देश अपनी बात मनवाने के लिए लड़ाई को तत्पर रहे हैं, उन सभी देशों ने अपनी-अपनी मातृभाषाओं को संयुक्त राष्ट्र में बिठाने का गौरव हासिल कर लिया। लेकिन अब वैश्वीकरण के दौर में हिंदी संपर्क भाषा के रूप में भी प्रयोग होने और विज्ञापन की सशक्त भाषा के रूप में उबर गई है। भारत समेत अन्य एशियाई देश हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में अपनाने लगे हैं। कई यूरोपीय देशों में एशियाई लोगों के लिए हिंदी संपर्क भाषा के रूप में भी प्रयोग होने लग गई है। अतएव हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाना आवश्यक हो गया था।

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