सुदर्शनधारी योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण
वीरेंद्र पांडेय
यूँ तो इतिहास में अनेक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने एक काल विशेष में मनुष्य के जीवन स्तर को सुधारने के प्रयत्न किए। उनके कर्म और उपदेशों से मनुष्य जीवन लाभान्वित हुआ। किंतु इन सब में जिन महापुरुषों का जीवन युगातीत, कालातीत और समयातीत बना है उनमें सुदर्शनधारी योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का स्थान सर्वोपरि है। श्रीकृष्ण ने एक व्यक्ति के रूप में, समाज को साथ जोड़ते हुए मानव चरित्र की पराकाष्ठा को छुआ है। श्रीकृष्ण की बाल लीला हो, युवावस्था की लीला हो या योगेश्वर के रूप में उनके द्वारा कही गई “गीता”, इनके हर रूप ने हर युग में मानव जीवन को राह दिखाई। हमारे यहाँ ऐसी मान्यता भी है कि भगवान श्रीकृष्ण मानव जीवन के सभी चक्रों यानि जन्म, मृत्यु, शोक, खुशी आदि से गुजरे हैं, इसीलिए उन्हें पूर्णावतार कहा जाता है।
संसार के सभी ग्रन्थों में श्रीमदभवद-गीता सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसे अन्य धर्मों के लोग भी जिज्ञासा, श्रद्धा एवं रुचि से पढ़ते हैं। इसका कारण यह है कि इसमें आध्यात्मिक ज्ञान के वह सिद्धान्त, विचार व शिक्षाएं हैं, जो अन्य धर्मों से उत्कृष्ट व सबकी आत्माओं द्वारा सहज रूप से स्वीकार्य होते हैं। अन्य धर्म ग्रन्थों में गीता के समान ईश्वर, जीवात्मा, योग व कर्तव्य सम्बन्धी ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। ज्ञातव्य है कि गीता में पद्य शैली में 700 श्लोक हैं। यह महाभारत का अंग है जिसे महर्षि वेदव्यास ने लिखा है। गीता का ऐतिहासिक कथानक महाभारत की युद्ध भूमि में योगेश्वर कृष्ण के मित्र, शिष्य व सखा धनुर्धारी अर्जुन को विषाद होने पर उन्हें दी गई शिक्षा व ज्ञान है। इस ज्ञान को प्राप्त कर अर्जुन का मोह व विषाद दूर हो गया था और पूरे आत्म विश्वास एवं दृण संकल्प के साथ वह युद्ध करने के लिए समुद्यत हो गये थे।
गीता में ईश्वर, जीवात्मा, धर्म, कर्म, यज्ञ, योग, पाप, पुण्य, क्षत्रिय का धर्म आदि नाना विषयों पर अनेक सारगर्भित बातें भी हैं । प्रत्येक अध्याय का नाम योग पर आधारित है। जैसे, प्रथम अध्याय का नाम अर्जुन-विषाद योग है। इसी प्रकार क्रमश: सांख्य योग, कर्मयोग, ज्ञानकर्म-संन्यास योग, कर्म संन्यास योग, आत्मसंयम योग, ज्ञान-विज्ञान योग, राजविद्या योग, विभूतियोग, विश्वरूपदर्शन योग, भक्तियोग, क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग योग, गुणत्रयविभाग योग, पुरुषोत्तम योग, देवासुर संपद्विभाग योग, श्रद्धात्रयविभाग योग तथा मोक्षसंन्यास योग अध्यायों के नाम हैं। गीता के 18 अध्यायों में जितने प्रकार के योग बताए गए हैं, उनमें से कोई भी योग अपनाकर मनुष्य आत्मकल्याण कर सकता है।
श्रीकृष्ण ने उस समय के शक्तिशाली साम्राज्य हस्तिनापुर तथा अन्य राजाओं द्वारा हो रहे अत्याचारों का राजनीति से बखूबी जवाब दिया। उनके द्वारा अपनाए गए सिद्धांतों को आजमा कर हर देश अपनी सीमाओं को सुरक्षित कर सकता है। तथा अपने प्रजा जनों को सुरक्षित कर सकता है। वे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ जिस तरह से पांच निर्वासित लड़कों को न सिर्फ खड़ा किया, बल्कि उन्हें विजय प्राप्त कराई। वह उनके असीम आत्म बल को प्रतिबिंबित करता है। हम भगवान श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से सीख लें और अन्याय, अधर्म के विरुद्ध समस्त दुर्बलताओं को त्याग कर अपने पुरुषार्थ के सहारे उठ खड़े हों और इस भारत भूमि को आत्मनिर्भर बनाने के लिए संकल्पित हो जायें।
यत्र योगेश्वर: कृष्णों यत्र पार्थो धनुर्धर:।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्र्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।
अर्थात् जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहां गांडीव धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और धर्म है।
(लेखक सहायक आचार्य एवं शोधकर्ता हैं )