जो किसी पर हमला करे वो किसान नहीं हो सकता

जो किसी पर हमला करे वो किसान नहीं हो सकता प्रेमसिंह बाजोर के कपड़े फाड़े

जो किसी पर हमला करे वो किसान नहीं हो सकता

जयपुर। कृषि बिलों को लेकर किसानों का आंदोलन चलते आठ माह से अधिक का समय हो गया है। हाईजैक हो चुके इस आंदोलन में कुछ ऐसे असामाजिक तत्व घुस आए हैं जो अराजकता फैला रहे हैं। इनका धरना अब आम लोगों की परेशानी का कारण बनता जा रहा है। राजस्थान में शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसानों ने दिल्ली के किसान आंदोलन के समर्थन में अपना धरना शुरू किया था, जो अब अराजकता का केंद्र बनता जा रहा है।

देश का संविधान सभी लोगों को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता देता है और विरोध करने के लिए आंदोलन की अनुमति भी। लेकिन आंदोलन के नाम पर हिंसा, शोषण और गुंडागर्दी की अनुमति किसी को नहीं है। परंतु इस तथाकथित किसान आंदोलन में अब यही सब होता दिख रहा है। बहरोड़ के किसानों के पुत्रों ने जब तथाकथित किसान नेता राकेश टिकैत की आड़ी खड़ी गाड़ी के सामने विरोध प्रदर्शन के लिए नारे लगाए तो टिकैत सर्मथकों ने उन बच्चों को पीटा और इन पढ़ने वाले 10-15 बच्चों को जेल में बन्द करा दिया। सुजानगढ़ विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव के दौरान चुनावी सभाओं में हंगामे किए और भाजपा नेताओं को निशाना बनाया।

उपचुनाव खत्म होने के बाद यह आंदोलन चला रहे तथाकथित किसान नेताओं ने घोषणा की कि हम भाजपा नेताओं का विरोध करेंगे। वे जहां भी जाएंगे, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ेगा। आंदोलन को देखते हुए इसे भी बहुत हद तक स्वीकार किया जा सकता है कि जिस भी नेता या दल से आप सहमति ना रखते हों, आप उसके नेताओं का विरोध करें, लेकिन जिस तरह से पिछले दिनों पूर्व विधायक और सैनिक कल्याण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजौर के साथ शाहजहांपुर बॉर्डर पर इन लोगों ने मारपीट की, उनके कपड़े फाड़ दिए गए और गाड़ी में तोड़फोड़ की, इसे उचित नहीं कहा जा सकता। प्रेम सिंह बाजौर उन नेताओं में गिने जाते हैं जो हमेशा किसानों और जवानों के साथ रहे हैं। वीरगति प्राप्त सैनिकों की मूर्तियां लगाने जैसा महत्वपूर्ण काम बाजौर कर रहे हैं।

जो किसी पर हमला करे वो किसान नहीं हो सकता प्रेमसिंह बाजोर के कपड़े फाड़े

इसके बाद पिछले सप्ताह भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के साथ श्रीगंगानगर में भी ऐसी ही घटना को अंजाम दिया गया। ये तथाकथित किसान गंगासिंह चौक पर धरना दे रहे थे। इसी दौरान जब कैलाश मेघवाल वहां से गुजरे तो पहले उन्हें काले झंडे दिखाए गए और फिर उनका घेराव कर उनका कुर्ता फाड़ दिया गया। बाद में पुलिस ने उन्हें तितर-बितर किया।

इससे पहले केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल रायसिंहनगर, राज्य सरकार में मंत्री रहे सुरेन्द्र पाल सिंह टीटी का भी विरोध हो चुका है और गंगानगर स्थित पदमपुर भाजपा कार्यसमिति की बैठक में तो इन तथाकथित किसानों ने महिलाओं के साथ बदसलूकी कर दी थी। इस बैठक में विधायक बिहारीलाल विश्नोई पहुंचे तो उनके साथ भी धक्का-मुक्की की गई।

इस ‘आंदोलन’ से आम जनता भी अब त्रस्त हो चुकी है। शाहजहांपुर बॉर्डर ब्लॉक होने के कारण ट्रकों को दूसरे रूट से जाना पड़ रहा है। इसके चलते सिकंदरा होते हुए अलवर जाने वाली रोड पर ट्रैफिक बढ़ गया है, और इस क्षेत्र के लोग काफी परेशान हैं। जहां इन किसानों का धरना चल रहा है, वहां के स्थानीय किसान और आम जनता भी चाहती है कि यह धरना शीघ्र समाप्त हो, क्योंकि इसके चलते उनका व्यापार, आवागमन, खेती सभी कुछ प्रभावित हो रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर के समय भी ऑक्सीजन के परिवहन में इस आंदोलन के कारण काफी परेशानी हुई थी और पुलिस को व्यवस्था सम्भालनी पड़ी थी।

किसान आंदोलन के नाम पर अब राजस्थान के शाहजहांपुर बॉर्डर ही नहीं बल्कि दिल्ली और अन्य जगहों पर भी जो कुछ हो रहा है, उसे उचित नहीं माना जा सकता। सरकार अपनी ओर से सभी सम्भव प्रयास कर चुकी है, लेकिन किसानों के नाम पर राजनीति और अब तो दबंगई करने वाले लोग जो कुछ कर रहे हैं, उससे किसानों का नाम खराब हो रहा है, क्योंकि यह तय है कि अपनी मेहनत से लोगों का पेट भरने वाला अन्नदाता किसी से मारपीट या दुर्व्यवहार नहीं कर सकता।

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